सीहोर : आस्था के साथ निकाली गई भव्य शोभा यात्रा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 27 जनवरी 2025

सीहोर : आस्था के साथ निकाली गई भव्य शोभा यात्रा

  • भगवान शिव को कठिन जतन से नहीं पवित्र मन और भाव से मनाया जा सकता : कथा वाचक पंडित राघव मिश्रा

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सीहोर। भगवान शिव को कठिन जतन से नहीं पवित्र मन और भाव से मनाया जा सकता है। बहुत से भक्त यह सोंचते है कि यदि सम्पूर्ण पूजा सामग्री एकत्रित नही हो पाती है तो पशुपतिनाथ का व्रत अधूरा रह जायेगा और भगवान शिव हम से प्रसन्न नहीं होंगे, लेकिन भोलेनाथ के भक्तों को यह चिंता अपने मन से निकाल देनी है। जिस प्रकार से एक पिता अपने पुत्र की चिंता करता है उसी प्रकार से भगवान शिव अपने भक्तों की चिंता रखते हैं, उन्हें प्रसन्न करने के लिए भक्तों को बहुत कठिन परिश्रम नहीं करना है अगर एक लोटा जल भी हमने भोलेनाथ को प्रेम से अर्पित किया है तो वह ही बहुत है। इसलिए जितनी भी पूजा सामग्री आप एकत्रित कर सकते है उसी पूजा सामग्री से पशुपतिनाथ जी की पूजा कर सकते है। उक्त विचार शहर के बड़ा बाजार स्थित अग्रवाल पंचायती भवन में अग्रवाल महिला मंडल और मध्यप्रदेश अग्रवाल महासभा के संयुक्त तत्वाधान में जारी पांच दिवसीय शिव महापुराण के अंतिम दिवस कथा वाचक पंडित राघव मिश्रा ने कहे। इस मौके पर अग्रवाल महिला मंडल की अध्यक्ष श्रीमती ज्योति अग्रवाल, मध्यप्रदेश अग्रवाल महासभा की अध्यक्ष श्रीमती अंजू अजय अग्रवाल, मंजू शैलेश अग्रवाल, रेणु पंकज मोदी, श्रीमती शौभना सन्नी महाजन आदि ने महाआरती की। कथा के विश्राम पर भव्य रूप से शोभा यात्रा निकाली गई। यात्रा में भगवान शिव की झांकी आकर्षण के रूप में थी।


कथा के समापन अवसर पर पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि सौभाग्यशाली होते हैं वैसे लोग जो अपने जीवनकाल में इन 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर पाते हैं। पुराणों के अनुसार शिवजी जहां-जहां स्वयं प्रकट हुए थे, उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रातकाल और संध्याकाल के समय इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम लेते हैं, उनके पिछले सात जन्मों के पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से धुल जाते हैं। मानव का जीवन भगवान की भक्ति के लिए हुआ है और इस कलियुग में भक्ति से बड़ा कुछ नहीं है। कर्म के साथ भगवान की भक्ति करें। शिव महापुराण कथा जीवन की व्यथा मिटाने वाली है, परंतु यह जीवन के व्यथा कब मिटाती है, जब प्राणी सत्य मार्ग का अनुसरण करें और सत्य मार्ग पर चलता हुआ अपने माता पिता की सेवा करें साधु संतों की सेवा करें और देश की सेवा भी करें सदैव दया भाव रख अपना जीवन निर्वाह करता रहे। लोग अपने हिसाब से जीवन जी रहे हैं। एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हैं। अपने कर्म के लिखे को भोलेनाथ की पूजा करके हटाने का प्रयास करना चाहिए न कि एक-दूसरे को नीचा दिखाने और हराने का कार्य करना चाहिए। इंसान अपने जीवन के प्रति सजग नहीं है। वह इस बात से अनभिज्ञ ही हो चुका है कि उसके जीवन का केवल मात्र एक ही उद्देश्य है प्रभु प्राप्ति, लेकिन वह इन सब बातों से बहुत दूर जा चुका है। इंसान अपने जीवन को केवल खाने पीने और मौज मस्ती करने के साधन के रूप में ही स्वीकार कर चुका है। जबकि हमारे समस्त धार्मिक ग्रंथों में इस मानव तन को दुर्लभ कहा गया। आज मनुष्य समाज में जाग्रति की महती आवश्यकता है, जो व्यक्ति जागरूक नहीं है वह जीवन को सार्थक नहीं कर सकता है। यह जागरण तभी होगा जब उसे सदगुरु मिलेंगे। फिर ही इंसाफ की सोई हुई चेतना का पुनर्जागरण होगा। संत इंसान के भीतर ही उस परमात्मा के साक्षात्कार दर्शन करवा देते हैं।

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