दिल्ली : विकास के दूसरी तरफ के दृश्य खींचते हैं शिरीष खरे, विश्व पुस्तक मेले में परिचर्चा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

दिल्ली : विकास के दूसरी तरफ के दृश्य खींचते हैं शिरीष खरे, विश्व पुस्तक मेले में परिचर्चा

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दिल्ली (रजनीश के झा)। चर्चित पत्रकार और लेखक शिरीष खरे एवं साहित्यकार पल्लव के बीच विश्व पुस्तक मेले में संवाद व परिचर्चा का आयोजन हुआ। इस दौरान शिरीष खरे की दो चर्चित पुस्तकों— 'एक देश बारह दुनिया' और 'नदी सिंदूरी' पर विस्तार से चर्चा की गई। कार्यक्रम का संचालन पल्लव ने किया। पल्लव ने चर्चा की शुरुआत करते हुए पूछा कि 'एक देश बारह दुनिया' का शीर्षक कैसे तय हुआ। इस पर शिरीष खरे ने बताया, "इस पुस्तक में बारह रिपोर्ताज शामिल हैं, जो भारत की विविध सामाजिक-सांस्कृतिक वास्तविकताओं को उजागर करते हैं। मैंने पहले लेखन किया और फिर इसे शीर्षक दिया।" उन्होंने आगे कहा कि पत्रकारिता के दौरान उन्हें महसूस हुआ कि जो लोग विकास के लिए सबसे अधिक मेहनत करते हैं, वे ही विकास से कोसों दूर होते हैं। उनकी यह पुस्तक इसी यथार्थ को दर्शाती है और उनके सफर के अनुभवों का दस्तावेज़ है। 'नदी सिंदूरी' – एक अलग विधा की ओर - पल्लव ने शिरीष से पूछा कि एक रिपोर्ताज लेखक से कहानीकार बनने का सफर कैसे तय हुआ? इस पर शिरीष ने कहा, "2017 में जब मैंने 'राजस्थान पत्रिका' छोड़ी, तो मेरी लेखनी कुछ समय के लिए रुक गई थी। मैं कुछ नया लिखना चाहता था, लेकिन रिपोर्टिंग से हटकर। इसी क्रम में 'नदी सिंदूरी' आई।" उन्होंने बताया कि 'नदी सिंदूरी' मध्य प्रदेश की एक छोटी नदी से जुड़ी कहानियों का संग्रह है, जो मुख्य रूप से आदिवासी समाज की कहानियों को समेटे हुए है। यह उस दौर की कहानियाँ हैं जब इंटरनेट आम नहीं था। रचनात्मकता और यथार्थ की सच्चाई- चर्चा में कथाकार नवनीत नीरव ने शिरीष खरे की लेखन यात्रा पर प्रकाश डालते हुए बताया कि उन्होंने अब तक हजार से अधिक रिपोर्ट लिखी हैं और उनके पास समाज की अनगिनत कहानियाँ हैं। इसी बीच लेखक राहुल हेमराज ने पूछा कि 'नदी सिंदूरी' में कितना फिक्शन है और कितना नॉन-फिक्शन? इस पर शिरीष ने स्पष्ट किया कि उनकी कहानियाँ अनुभवों पर आधारित हैं और सच्चाई के करीब हैं। गोरखपुर के सिद्धार्थ विश्वविद्यालय की डॉ. रेणु त्रिपाठी ने उनकी लेखनी की सराहना करते हुए कहा, "बहुत कम रचनाएँ ऐसी होती हैं, जिनमें सच्चाई की तपिश को महसूस किया जा सके। शिरीष खरे ने अपनी कृतियों में बहुत संवेदनशील रिपोर्ताज लिखे हैं।" कार्यक्रम में लेखन, समाज और विचारधाराओं के अंत पर भी चर्चा हुई। शिरीष खरे ने इस संदर्भ में कहा, "जीवन सफल भले न हो, लेकिन सार्थक जरूर होना चाहिए।" इस परिचर्चा में साहित्य, पत्रकारिता और समाज के विभिन्न पहलुओं पर विचार साझा किए गए, जिससे श्रोताओं को समकालीन लेखन की जमीनी हकीकत से रूबरू होने का अवसर मिला। अंत में मीरा जौहरी ने सभी वक्ताओं का आभार व्यक्त किया।

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