प्रोफेसर गोपेश्वर सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि पृथ्वी राज जी द्वारा लिखित यह पुस्तक दो अंग्रेज आईसीएस अधिकारियों द्वारा तुलसीदास पर लिखी गई अति महत्वपूर्ण टिप्पणियों का हिंदी में अनुवाद है। इन आईसीएस पदाधिकारी का नाम एफ एस ग्राउस और जी ए ग्रियर्सन है । इन्हीं विद्वान अधिकारियों के लेखन और अनुवाद के बदौलत जो 1880-1886 में की गई थी तुलसीदास के प्रसिद्धि इंग्लैंड और यूरोप में फैल गई और उन्हें पूर्व के देश के एक महान साहित्यकार के रूप में जाना जाने लगा । इन अधिकारियों द्वारा लिखित लेख अब तक हिंदी पाठकों के समक्ष उपलब्ध नहीं था। इस दृष्टिकोण से प्रोफेसर पृथ्वीराज सिंह का कार्य महत्वपूर्ण और सराहनीय है। जामिया मिलिया हिंदी विभाग के प्रोफेसर दुर्गा प्रसाद गुप्त ने कहा भारतीय ज्ञान परंपरा के सभी स्रोतों को हमें इकट्ठा कर उचित सम्मान देना होगा । चाहे वे देसी विद्वानों द्वारा कार्य किया गया हो या विदेशी विद्वानों द्वारा ।
प्रोफेसर राजेश पासवान ने कहा कि तुलसीदास शेक्सपियर के समकालीन थे और इन दो अंग्रेज विद्वानों द्वारा लिखी गई टिप्पणियों से इंग्लैंड के लोगों ने जाना कि तुलसीदास शेक्सपियर की तरह ही पौर्वात्य बड़े कवि हैं । यह कार्य महत्वपूर्ण है और एक लंबे अरसे से छूटा हुआ था जिसे प्रोफेसर पृथ्वीराज सिंह ने हिंदी के पाठकों के समझ उपस्थित किया है। अपने लेखकीय वक्तव्य में प्रोफेसर सिंह ने कहा कि यह पहला अवसर है जब स्थानीय छपरा का कोई प्रकाशन संस्थान दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले में आया हो और उसकी किताबों का लोकार्पण किया गया हो। उन्होंने आगे कहा कि जब वे ग्रियर्सन द्वारा लिखित व संपादित भाषा सर्वेक्षण पर कार्य कर रहे थे तब उनकी दृष्टि ग्रियर्सन द्वारा लिखी गई तुलसीदास पर टिप्पणियों पर पड़ी। इस तरह ग्रियर्सन के कई अति महत्वपूर्ण कार्य अभी तक हिंदी जगत में उपलब्ध नहीं हैं । वे बड़े-बड़े लाइब्रेरियों में सीमित हैं और अंग्रेजी में ही हैं । उनकी योजना है उन सभी कार्यों को हिंदी जगत के सामने ला सकें । इस लघु लोकार्पण समारोह का संचालन भोजपुरी के प्रसिद्ध कवि मनोज भावुक द्वारा किया गया।
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