मधुबनी (रजनीश के झा)। आज संत शिरोमणि नरहरी दास (गोस्वामी तुलसीदास जी के गुरु महाराज) जयन्ती पखवाड़ा मधुबनी मे जे एन कालेज के समीप मनाया गया। इनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए भाजपा नेता तथा स्वर्णकार विचार मंच के राष्ट्रीय परिषद के सदस्य स्वर्णिम गुप्ता ने बताया की स्वर्णकार कुल में जन्मे संत सिरोमणि नरहरि सोनार जी का जन्म 13वी शताब्दी मे पंढरपुर, वर्तमान मे महाराष्ट्र मे हुआ था, ये महान कवि संत तथा स्वर्णकला मे दक्ष थे तथा शिव के भक्त थे। प्राचीन मतों के अनुसार एक घटना क्रम मे वर्णित है कि भगवान बिठोबा जो भगवान विष्णु जी का एक रूप हैं उनके मंदिर की प्रतिमा के लिए वहाँ के जमींदार ने पुत्र रत्न प्राप्ति की मन्नत पूरी होने पर कमरबंद चढाएगा। जमींदार व्यापारी ने नरहरि जी से इसे बनाने का अनुरोध किया लेकिन ये शिव के अलावे किसी को नहीं मानते थे और न ही विट्ठल के मंदिर जाते थे, वो जमींदार से बोले आप मंदिर जाकर नाप ले आओ मै बना दूंगा लेकिन वो छोटा पर गया फिर जमींदार के आग्रह पर पट्टी बांध कर मंदिर के ग्रभ गृह मे अकेले प्रवेश किए तथा बिठोबा की प्रतिमा को छुआ उन्हें एहसास हुआ की उसके पांच सिर और दस भुजाए हैं और गर्दन के चारो ओर सर्प के आभूषण हैं। बाघ के वस्त्र पहने हैं और शरीर राख़ से ढका हुआ था। नरहरि जी को अपने आराध्य भगवान शिव की प्रतिमा का एहसास हुआ और देखने के लिए पट्टी हटा दी परन्तु सामने बिढोबा की मूर्ति दिखी फिर से पट्टी लगाया तो शिव की छवि दिखी। अन्तः ज्ञान जागृत हो उठा भगवान की लीला को समझ गए की भगवान शिव और विष्णु दोनों की शक्तियां एक दूसरे में समाहित हैं और भक्ति भाव से प्रेरित होकर स्तुति गीत की रचना कर डाला और ईश्वरी भक्ति में लीन हो गए उनकी इसी भक्ति से प्रभावित होकर संत सिरोमणि की उपाधि मिली। गोस्वामी तुलसीदास जी इनकी ईश्वरी भक्ति से प्रभावित होकर इनको अपना गुरु स्वीकार किया। इस मौके पर गरिमामयी उपस्तिथि प्रदीप प्रसाद आकर्षण कुमार अमित कुमार किशोर साह तथा स्वराज कुमार रहे।
शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025
मधुबनी : संत शिरोमणि नरहरी दास जयंती धूमधाम से मनाया गया।
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