विशेष : रोज़गार की जद्दोजहद में असंगठित क्षेत्र के दुकानदार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 16 फ़रवरी 2025

विशेष : रोज़गार की जद्दोजहद में असंगठित क्षेत्र के दुकानदार

Unemployeement
राजस्थान देश के उन चुनिंदा राज्यों में है जहां सबसे अधिक पर्यटक आते हैं. इसके लगभग सभी ज़िले पर्यटन मानचित्र में विशिष्ट स्थान रखते हैं. लेकिन जयपुर पर्यटन नगरी होने के साथ साथ राज्य की राजधानी भी है. यहां का हवा महल अपनी अनोखी वास्तुकला के कारण दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है. सालों भर पर्यटकों की भारी भीड़ के कारण यहां रोज़गार के भी काफी अवसर उपलब्ध होते हैं. होटल से लेकर कपड़े और स्थानीय स्तर पर तैयार किये जाने वाले सामान भी खूब बिकते हैं. जिससे न केवल बड़े स्तर के दुकानदार बल्कि छोटे स्तर के असंगठित दुकानदारों की भी इससे रोज़ी रोटी चलती है. जयपुर आने वाले पर्यटक यहां के पारंपरिक पोशाकों के साथ साथ मोजड़ी भी खरीदते हैं. जिन्हें बड़े दुकानदारों के अलावा फुटपाथ पर अस्थाई दुकान लगाकर भी लोग बेच कर आय के साधन अर्जित करते हैं. राजस्थान की मोजड़ी देश विदेश में प्रसिद्ध है. यह एक प्रकार की जूती है जो बहुत ही हल्की होती है. इसे हाथों से तैयार किया जाता है. इस पर बहुत ही बारीकी से कढ़ाई की जाती है और फिर मोतियों तथा अन्य सजावटी सामान जोड़े जाते हैं. इसके अतिरिक्त कई मोजड़ियों पर नक्काशी और कशीदाकारी भी की जाती है. अस्थाई दुकान लगाकर इसे बेचने वाले नरेश कुमार बताते हैं कि इन मोजड़ियों की सालों भर मांग रहती है. हालांकि शादी और कुछ ख़ास त्योहारों में इसकी बिक्री बढ़ जाती है. वहीं दिसंबर से फ़रवरी तक विदेशी सैलानियों की अधिक संख्या आने से भी उनकी काफी मोजड़ियां बिकती हैं. टोंक के ग्रामीण क्षेत्र के रहने वाले 55 वर्षीय नरेश बताते हैं कि हाथों से तैयार किये जाने के कारण यह काफी महंगे होते हैं. वह इन्हें बड़े दुकानदारों से खरीद कर बेचते हैं. जिसमें इन्हें बहुत अच्छी आमदनी नहीं हो पाती है. वह कहते हैं कि सीज़न के अन्य दिनों में इसकी मांग तो रहती है लेकिन बिक्री में काफी गिरावट आ जाती है. जिससे घर का खर्च निकालना भी मुश्किल हो जाता है. 


Unemployeement
नरेश बताते हैं कि एक मोजड़ी की सबसे कम कीमत भी करीब एक हज़ार रूपए के आसपास होती है. अक्सर देसी पर्यटक इसे कम दामों पर खरीदना चाहते हैं, लेकिन अगर हम इसके दाम कम कर देंगे तो हमारी खरीदारी की लागत भी नहीं निकल पाएगी. इसलिए मैं अक्सर विदेश पर्यटकों को इन्हें बेचने को प्राथमिकता देता हूं. कई बार कुछ देसी पर्यटक भी इसे मुंह मांगी कीमत पर खरीद लेते हैं. जिससे हमारी अच्छी बिक्री हो जाती है. वह कहते हैं कि मशीनी युग में अब मोजड़ी हाथ की जगह मशीन से तैयार की जाती है. जिसमें वह खूबसूरती नहीं होती है जो हाथों से तैयार किये हुए मोजड़ी में नज़र आती है. रोज़गार के संबंध में नरेश बताते हैं कि गांव में रोज़गार का कोई साधन नहीं होने के कारण करीब बारह वर्ष पहले वह जयपुर आ गए थे. आठ साल उन्होंने इन मोजड़ी बनाने वाले कारखाना में काम भी किया है. जब इन्होने अपना स्वरोज़गार शुरू करने का निर्णय लिया तो इसी को बेचने का विचार किया क्योंकि यहां काम के अनुभव की वजह से इन्हें माल खरीदने में आसानी होती है. नरेश कहते हैं कि अनुभव के आगे पैसे की कमी आ जाती है. आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने के कारण वह स्थाई दुकान खोलने में भी सक्षम नहीं हैं. रोज़गार की इस जद्दोजहद में 30 वर्षीय विकास भी लगातार परिश्रम कर रहे हैं. हवा महल के सामने वह प्रतिदिन खड़े होकर बच्चों के खिलौने बेचते हैं. वह बताते हैं कि घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण उन्हें 15 वर्ष की उम्र में ही पढ़ाई छोड़कर रोज़गार में लगना पड़ा था. अब उनका अपना परिवार भी हो चुका है. ऐसे में उन्हें दोगुनी मेहनत करनी पड़ती है. वह बताते हैं कि सामान बेचकर उन्हें प्रतिदिन 600 से 700 रूपए तक की आमदनी हो जाती है. जिससे परिवार का गुज़ारा चल जाता है. विकास बताते हैं कि वह अपने अस्थाई दुकान को कभी हवा महल और कभी पास के गोविंद जी मंदिर के पास लगाते हैं. इस मंदिर में बड़ी संख्या में महिलाएं अपने बच्चों के साथ गोविंद जी के दर्शन करने आती हैं. जिससे वह उनके लिए सामान खरीदती हैं. इसकी वजह से उनकी अच्छी बिक्री हो जाती है. विकास कहते हैं कि अन्य दुकानदारों की अपेक्षा उनके सामान अधिकतर देसी पर्यटक ही खरीदते हैं. इसलिए उनके लिए पर्यटन मौसम का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. सालों भर उनके सामानों की एक समान बिक्री रहती है.


Unemployeement
नरेश और विकास की तरह ही 58 वर्षीय किशन कुमार भी हवा महल के पास अपनी अस्थाई दुकान लगाते हैं. जहां वह प्लास्टिक के सामान और खिलौने बेचते हैं. जयपुर के ग्रामीण क्षेत्र के रहने वाले किशन की दुकान में अधिकतर घर के काम में आने वाले सामान होते हैं. जैसे बच्चों के टिफिन, फूलदान, किचन से जुड़ी सामग्रियां आदि होती हैं. किशन बताते हैं कि 28 वर्ष पूर्व उन्होंने बच्चों के खिलौने बेचने से अपना व्यवसाय शुरू किया था. धीरे धीरे उन्होंने मार्केट की मांग के अनुरूप इसमें घर से जुड़े सामानों को भी रखना शुरू किया. इससे उनकी अच्छी आमदनी होने लगी. वह कहते हैं कि देसी विदेशी पर्यटकों की ज़रूरतों के अनुसार उन्होंने अपनी दुकान में सामान रखना शुरू किया. विदेशी पर्यटकों को जहां सबसे अधिक फूलदान पसंद आते हैं वहीं देसी पर्यटक बच्चों के खिलौने समेत घर के काम आने वाले सामान खरीदने को प्राथमिकता देते हैं. केंद्रीय श्रम और रोज़गार मंत्रालय के ई-श्रम पोर्टल के अनुसार असंगठित क्षेत्र से जुड़े देश में करीब तीस करोड़ से अधिक मज़दूर रजिस्टर्ड हैं. इनमें सबसे अधिक 53.6 प्रतिशत महिलाएं और करीब 46.4 प्रतिशत पुरुष हैं. इनमें सबसे अधिक 18 से 40 साल के युवा हैं. रजिस्टर्ड असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश से है जबकि इस मामले में राजस्थान छठे नंबर पर है. नरेश, विकास और किशन की तरह ऐसे हज़ारों लोग हैं जो असंगठित क्षेत्र के तहत सड़क किनारे फुटपाथ और अन्य जगहों पर अपनी अस्थाई दुकान के माध्यम से रोज़गार की जद्दोजहद कर रहे हैं. 





Mansha-gurjar-charkha-feature


मंशा गुर्जर

जयपुर, राजस्थान

(चरखा फीचर्स)

कोई टिप्पणी नहीं: