देशभर में होली की तैयारियां चल रही हैं. होलिका दहन से आठ दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाता है. शास्त्रों में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहा गया है. इस साल होलाष्टक मृगशिरा नक्षत्र और वृषभ राशि में चंद्रमा की स्थिति में 7 मार्च से शुरू होने जा रहा है. इस दौरान आठ विशेष रात्रियां होती हैं। मान्यता है कि होलाष्टक पर शुभ काम बंद हो जाते हैं. इन आठ दिनों में ग्रहों की स्थिति बदलती है। इस दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव में रहते हैं। इनके उग्र होने से कारण मनुष्य की मानसिक स्थिति पर नकारात्मक बदलाव आता है और अनुकूल फल प्रदान नहीं करते है। इस दौरान किसी भी तरह का शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है। कहते है अगर कोई व्यक्ति होलाष्टक के दौरान कोई मांगलिक काम करता है तो उसे कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं व्यक्ति के जीवन में कलह, बीमारी और अकाल मृत्यु का साया भी मंडराने लगता है। हालांकि होलाष्टक में दान का शुभ कार्य किया जा सकता है. साथ ही इस समय आप अन्न दान कर सकते हैं. होलाष्टक में आप ब्राह्मणों को भोजन करवा सकते हैं. साथ ही साथ नैमित्तिक कर्म भी कर सकते हैं. मूल रूप से ग्रहों की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी कर सकते हैं
होलाष्टक में क्या काम नहीं करना चाहिए
होलाष्टक के दौरान शादी-विवाह, सगाई और गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
होलाष्टक में नया घर, भूमि, वाहन और पैसों का निवेश आदि कार्य नहीं करने चाहिए।
होलाष्टक के दौरान मुंडन, नामकरण भी नहीं करना चाहिए।
होलाष्टक में दुकान या कोई नया बिजनेस की शुरुआत भी नहीं करना चाहिए।
होलाष्टक के दौरान लोगों को ब्रह्मचर्य बनाए रखने की सलाह दी जाती है।
होलाष्टक के दौरान सोने-चांदी, वाहनों आदि की खरीदारी से भी परहेज करना चाहिए.
इन दिनों में आध्यात्मिक और धार्मिक कामों से जुड़े रहना चाहिए।
इस दौरान भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
इस अवधि में भगवत गीता का पाठ जरूर करना चाहिए।
इन दिनों में हवन करना भी पुण्यदायी माना जाता है।
इस दौरान जरूरतमंद लोगों को पुराने कपड़े और चप्पलें आदि दान करनी चाहिए।
इस अवधि में तामसिक भोजन जैसे - लहसुन, प्याज, अंडा और मांस आदि का सेवन करने से बचना चाहिए।
इस दौरान घर और मंदिर को प्रतिदिन साफ करना चाहिए।
इस अवधि के दौरान विवाद करने से बचना चाहिए।
ये काम कर सकते है
होलाष्टक का समय विशेष रूप से जीवन में सुधार और सकारात्मक बदलाव लाने के लिए उत्तम होता है। इस समय किए गए धार्मिक कार्य और उपाय न केवल आशीर्वाद की वर्षा करते हैं, बल्कि आर्थिक परेशानियों को भी दूर करते हैं। होलिका दहन तक किए गए प्रयास आपके जीवन को खुशहाल बना सकते हैं। इसलिए होलाष्टक में गरीब और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करना चाहिए। होलाष्टक के दौरान पूजा और जप कराना शुभ माना जाता है। होलाष्टक में विष्णु सहस्रनाम, हनुमान चालीसा या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए। होलाष्टक के दौरान पितरों का तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वजों की विशेष कृपा प्राप्त होती है। होलाष्टक के दौरान किए गए ये उपाय और अच्छे कार्य जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं, विशेष रूप से आर्थिक परेशानी को दूर करने में मददगार होते हैं। इस दौरान विशेष उपाय करने से जीवन में सुख, समृद्धि और उन्नति प्राप्त होती है। यह समय भगवान विष्णु और नरसिंह भगवान की पूजा के लिए उत्तम माना जाता है. आप ध्यान, योग और मंत्र जाप करके सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ा सकते हैं. इस दौरान “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय“ मंत्र का जाप करें. घर में पीली सरसों, हल्दी की गांठ, गुड़ और कनेर के फूल से हवन करें. धन-संबंधी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए भगवान नृसिंह की पूजा करें. श्रीसूक्त का पाठ करना भी बहुत शुभ माना जाता है.
धार्मिक एवं तांत्रिक मान्यता
धार्मिक दृष्टि से यह समय भक्ति, तपस्या और संयम का माना गया है। इस दौरान देवी-देवताओं की साधना, जप और व्रत करने से विशेष लाभ मिलता है। तांत्रिक दृष्टि से यह समय सिद्धियों और साधनाओं के लिए उपयुक्त माना जाता है, लेकिन शुभ कार्यों के लिए नहीं। होलाष्टक के दिनों में माता रानी की कृपा बनी रहने के लिए हमें चांदी से संबंधित वस्तुएं खरीदना चाहिए, जिससे घर में आर्थिक तंगी नहीं आती है।
वैज्ञानिक मान्यता
होलाष्टक की परंपरा के पीछे सिर्फ धार्मिक कारण ही नहीं है बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। इनके अनुसार होलाष्टक का विज्ञान प्रकृति और मौसम के बदलाव से जुड़ा हुआ है। इन दिनों वातावरण में बैक्टीरिया वायरस अधिक सक्रिय होते हैं। सर्दी से गर्मी की ओर जाते इस मौसम में शरीर पर सूर्य की पराबैगनी किरणें विपरीत प्रभाव डालती हैं। होलिका दहन पर जो अग्नि निकलती है वो शरीर के साथ साथ आसपास के बैक्टीरिया और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर देती है। क्योंकि गाय के गोबर से बने कंडे, पीपल, पलाश, नीम और अन्य पेड़ों की लकड़ियों से होलिका दहन होने पर निकलने वाला धुंआ सेहत के लिए अच्छा होता है। इसलिए होलाष्टक के दिनों में उचित खान-पान की सलाह दी जाती है।
ब्रज में 10 को खेली जायेगी होली
विश्व प्रसिद्धि ब्रज की होली तीन मार्च से शुरू हो रही है। तीन मार्च को रंगों और गुलाल से सराबोर करने बाली साधु संतों की होली होगी। यह होली रमणरेती आश्रम महावन में खेली जाएगी। जबकि 7 मार्च को बरसाना में लड्डू होली खेली जाएगी। यह होली देखने देश-विदेश के लोग मथुरा हर साल आते हैं। बरसाना में आठ मार्च को लठ्ठमार होली खेली जाएगी। वहीं, नंदगांव में 9 मार्च को लठ्ठमार होली खेली जाएगी। 10 मार्च को रंगभरनी एकादशी से ही ब्रज में रंगीली होली की शुरुआत होती है और सारे प्रमुख मंदिरों में लगातार होली में रंग गुलाल उड़ना शुरू हो जाता है। 10 मार्च श्री कृष्ण जन्मभूमि होली खेली जाएगी। 10 मार्च को वृंदावन में बिहारी जी रंग भरनी एकादशी होली की शुरुआत होगी। 10 मार्च को ही द्वारकाधीश में कुंज बनाया जाएगा जिसमें भगवान को बिठाकर रंगों से होली होगी। 11 मार्च को गोकुल में छड़ीमार होली होगी। 12 मार्च द्वारकाधीश मंदिर के बगीचे में रंगीली होली होगी। 13 मार्च होली का पंडा होगा। इसमें जलती होली से पंडा मथुरा से करीब 55 किमी दूर फॉलेंन और बठेन गांव में जलती हुई होली से प्रहलाद रूप में निकलेगा। 13 मार्च को प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर से चतुर्वेदी समाज का डोला निकलेगा। इसमें रंग गुलाल से होली होती है। 14 मार्च को धुलेंडी होगी। 15 मार्च को दाऊजी का हुरंगा जहां का देवर भाभी का कपड़ा फाड़ होली होगी। हुरंगा देश भर में प्रसिद्ध है। बता दें कि मथुरा में राधा रानी की जन्मस्थली ऐतिहासिक नगरी बरसाना में होली का जश्न शुरू हो गया है। महाशिवरात्रि की शाम को बुधवार को पहली चौपाई (गायन और संगीत पार्टी) हुई, जिसके बाद सड़कें अबीर और गुलाल के रंगों से भर गईं। दूसरी चौपाई 7 मार्च को होगी, जो ‘लड्डू मार होली’ की शुरुआत होगी। इसके बाद 8 मार्च को लठ्ठमार होली होगी। ब्रज मंडल में होली उत्सव 40 दिनों तक जारी रहेगा।
होली के रंग हजार
मथुरा और वृंदावन में भी 15 दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है। कुमाऊं की गीत बैठकी में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियां होती हैं। यह सब होली के कई दिनों पहले शुरू हो जाता है। हरियाणा की धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है। बंगाल की दोल जात्रा, चौतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। जलूस निकलते हैं और गाना बजाना भी साथ रहता है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र की रंग पंचमी में सूखा गुलाल खेलने, गोवा के शिमगो में जलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा पंजाब के होला मोहल्ला में सिक्खों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की परंपरा है। वैसे होली को लेकर देश के विभिन्न अंचलों में तमाम मान्यतायें हैं और शायद यही विविधता में एकता की भारतीय संस्कृति का परिचायक भी है। उत्तर पूर्व भारत में होलिका दहन को भगवान कृष्ण द्वारा राक्षसी पूतना के वध दिवस से जोड़कर पूतना दहन के रूप में मनाया जाता है तो दक्षिण भारत में मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने कामदेव को तीसरा नेत्र खोल भस्म कर दिया था और उनकी राख को अपने शरीर पर मल कर नृत्य किया था। तत्पश्चात कामदेव की पत्नी रति के दुख से द्रवित होकर भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया, जिससे प्रसन्न हो देवताओं ने रंगों की वर्षा की। इसी कारण होली की पूर्व संध्या पर दक्षिण भारत में अग्नि प्रज्जवलित कर उसमें गन्ना, आम की बौर और चन्दन डाला जाता है। यहां गन्ना कामदेव के धनुष, आम की बौर कामदेव के बाण, प्रज्वलित अग्नि शिव द्वारा कामदेव का दहन एवं चन्दन की आहुति कामदेव को आग से हुई जलन हेतु शांत करने का प्रतीक है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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