विचार : बेरोजगारों को छलनी करती ‘रीट’ की अपमानजनक रीत - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 6 मार्च 2025

विचार : बेरोजगारों को छलनी करती ‘रीट’ की अपमानजनक रीत

देश के सबसे बड़े प्रदेश में शिक्षक भर्ती पात्रता परीक्षा (रीट) के दौरान नियम-कायदों और व्यवस्था-अनुशासन के नाम पर परीक्षार्थियों के साथ किया जाने वाला व्यवहार उनके आत्मसम्मान और गरिमा को ठेस पहुँचाने वाला है। अब इस व्यवस्था को लेकर गहन विमर्श की आवश्यकता है।


बीते फरवरी का अंतिम सप्ताह देश के सबसे बड़े प्रदेश के लाखों युवा बेरोजगारों के लिए एक बार फिर मानसिक रूप से छलनी करने वाला साबित हुआ। उनके साथ यह पहली बार नहीं हुआ, लेकिन यह पहली बार हुआ है कि अब इस बारे में न सिर्फ़ आपत्ति जताई जा रही है बल्कि विरोध के स्वर भी मुखर हो उठे हैं। संदर्भ है राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की ओर से आयोजित राजस्थान शिक्षक पात्रता परीक्षा यानी ‘रीट’ का। राजस्थान के स्कूलों में  शिक्षक भर्ती की पात्रता के लिए आयोजित होने वाली इस परीक्षा में हर वर्ष लाखों युवा बैठते हैं। इस वर्ष यह परीक्षा 27-28 फरवरी को 41 जिलों के 1731 केंद्रों पर हुई। जिसमें 24,29,882 परीक्षार्थी शामिल हुए। वैसे तो ‘रीट’ पिछले कई वर्षों से विभिन वज़हों से चर्चा या विवाद का विषय रही है। इनमें ‘पेपर लीक’ प्रकरण की चर्चा तो देश भर में रही थी। फरवरी 2017 में ‘रीट’ का पेपर लीक होने के कारण परीक्ष रद्द करनी पड़ी थी। बाद में जून में पुनः परीक्षा हुई। पेपर लीक मामले में कई लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था। इस घटना के बाद परीक्षा के दिन राज्य में नेटबंदी की जाने लगी, इसके बावजूद  2021 में गंगापुर सिटी से परीक्षा के पेपर फिर लीक हो गए। उस कांड के तार राजधानी के शिक्षा संकुल से भी जुड़े थे और इसमें सरकारी कर्मचारी,अधिकारी तक शामिल थे, जिससे स्कूल-लेक्चरर से लेकर हैड कॉन्स्टेबल भी जुड़े पाए गए। वर्ष 2022 में भी एक बड़े नेता ने स्क्रीन शॉट्स के ज़रिए इस परीक्षा के पेपर लीक होने के आरोप लगाए तो 2023 में जोधपुर से 37 ऐसे लोगों को गिरफ़्तार किया गया जो ‘रीट’ के पेपर लीक करने की कोशिश में थे। जहाँ पेपर लीक जैसी घटनाएं महीनों से परीक्षा की तैयारी करने वाले लाखों निर्दोष युवाओं को निराश, हताश करने के साथ ही उन्हें असहनीय पीड़ा पहुंचाने वाली थीं, वहीं इन घटनाओं के बाद परीक्षा केंद्रों पर परीक्षार्थियों के साथ व्यवस्था और नियम-कायदों के नाम पर जो व्यवहार किया जाने लगा, वो कोढ़ में खाज या जले पर नमक छिड़कने से कम नहीं है। कुछ आपराधिक मानसिकता वाले तत्वों के कारण परीक्षा केंद्रों पर नियम-कायदों और व्यवस्था-अनुशासन के नाम पर पहले से मानसिक तनाव से गुज़र रहे युवको-युवतियों को असहज करने वाला व्यवहार अपमानजनक और शर्मनाक है। हालांकि बोर्ड पहले ही परीक्षार्थियों को ड्रेस कोड आदि के बारे में सूचित कर देता है। नकल रोकने और पारदर्शिता के नाम पर लागू किए गए कड़े-नियम-कायदों का पालन करके आने के बावजूद परीक्षार्थी युवक-युवतियों के साथ के इस बार जो व्यवहार किया, वो उनकी गरिमा,आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने वाला ही नहीं, बल्कि उनकी धार्मिक-सांस्कृतिक भावनाओं को भी ठेस पहुंचाने वाला भी था। मसलन, 28 फरवरी को डूंगरपुर में दो युवक परीक्षार्थियों के जनेऊ उतरवा दिए गए, कइयों की कलाई से कलावे उतरवा लिये तो अलवर में एक युवती परीक्षार्थी के कुर्ते के बटनों पर कैंची चला दी गई। कई विवाहित युवतियों के मंगलसूत्र पर भी आपत्ति की गई तो अनेक युवतियों के बालों में लगी ‘हेयर क्लिप‘ भी उतरवा दे गई। हैरान करने वाली बात यह है कि उदयपुर के एक केंद्र में जब दो युवतियों की ‘नोज़-पिन’ ( लौंग,कील) नहीं उतरी तो उनके नाक पर पारदर्शी टेप चिपका दी गई और उसके बाद ही उन्हें परीक्षा देने के लिए अंदर जाने दिया गया। ऐसे में उन युवक-युवतियों के मानसिक संताप का अनुमान लगाना कठिन नहीं है। अंदाज़ा लगाइए कि पहले ही परीक्षा के तनाव से गुज़र रहे इन युवाओं ने कितनी शर्मिंदगी महसूस की होगी। महत्वपूर्ण यह है कि ये सारे प्रतीक चिन्ह सनातन धर्म-संस्कृति के अटूट हिस्से मने जाते हैं। स्वाभाविक रूप से परीक्षा केंद्रों पर युवाओं से हुए इस व्यवहार के बाद आपत्तियां दर्ज करवाने और विरोध के स्वर मुखर होने के बाद एक महिला शिक्षक को निलंबित करने और एक हैड कॉन्स्टेबल को लाइन हाजिर करने जैसी कार्रवाई भले ही की गई लेकिन अनेक सवाल अब भी मौजूं हैं कि अदद एक नौकरी का सपना लेकर आने वाले युवाओं के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार क्यों किया जाता है ? नकल रोकने के तमाम आधुनिक साधन-उपाय होने के बावजूद के साथ ये रवैय्या व्यवस्था की कई खामियों को उजागर करता है। परीक्षा केंद्र पर परीक्षार्थी के चेहरे की पहचान तकनीक का इस्तेमाल करने, प्रवेश-पत्र पर लगी फोटो का बारकोड के जरिए अभ्यर्थी से मिलान करने, फिंगर प्रिंट लेने के अलावा परीक्षा केंद्रों पर सीसीटीवी से निगरानी के बावज़ूद युवाओं के साथ ऐसे व्यवहार का कोई तार्किक आधार नहीं है। यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि परीक्षा देने आए विद्यार्थी-अभ्यर्थी स्वाभाविक रूप से पहले से ही मानसिक तनाव में होते ही हैं, उस पर अगर परीक्षा नौकरी के लिए हो तो इस तनाव का बोझ बढ़ ही जाता है, ऐसे में जब उनके साथ कड़ी पाबंदियों के साथ कड़ा व्यवहार होता हो तो इसका नकारात्मक असर सीधा उसकी परीक्षा पर पड़ता है। समय आ चुका है कि सरकार इस व्यवस्था पर अब गंभीरता से विशेषज्ञों के साथ विमर्श करे और ऐसी सरल और पारदर्शी व्यवस्था बनाए कि परीक्षा केंद्र पर बेरोजगारी के दंश से त्रस्त परीक्षार्थी सहज और तनावमुक्त होकर आत्मसम्मान के साथ परीक्षा दे और मुस्कराता हुआ लौटे। 


 


Harish-shivnani


 हरीश शिवनानी

(वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार)

ईमेल : shivnaniharish@gmail.com

संपर्क :. 9829210036

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