- रसोईया संघ ने कहा कि 1650 में दम नहीं 10 हजार के नहीं,आशा वर्कर और विद्यालय रसोइयों को मिले न्यूनतम मजदूरी व राज्यकर्मी का दर्जा अभिलंब दिया जाए
आशा कार्यकर्ताओं की प्रमुख मांगें:
2023 के समझौते के अनुसार मासिक मानदेय ₹1,000 से बढ़ाकर ₹10,000 किया जाए। पिछले छह महीनों से लंबित मानदेय का तत्काल भुगतान सुनिश्चित किया जाए। सेवा निवृत्ति की आयु 65 वर्ष निर्धारित की जाए और सेवा निवृत्ति के समय ₹10 लाख का पैकेज सुनिश्चित किया जाए। विभिन्न कार्यों के लिए मिलने वाली प्रोत्साहन राशि का पुनरीक्षण हो। आशा कार्यकर्ताओं को ₹21,000 मासिक मानदेय की गारंटी दी जाए।
विद्यालय रसोइयों की प्रमुख मांगें:
बिहार में केंद्रीय किचन प्रणाली को खत्म किया जाए और एनजीओ आधारित भोजन योजना को बंद किया जाए। 12 महीनों के लिए नियमित मासिक मानदेय का भुगतान हो (वर्तमान में केवल 10 महीनों का भुगतान होता है)। विद्यालय रसोइयों को शिक्षा विभाग में चतुर्थ वर्ग कर्मचारी का दर्जा दिया जाए। ड्रेस के रूप में साल में दो सेट साड़ी देने की गारंटी किया जाए। सामाजिक सुरक्षा के अंतर्गत ₹3,000 मासिक पेंशन और स्वास्थ्य बीमा की व्यवस्था की जाए। रसोइयों के साथ सम्मानजनक व्यवहार सुनिश्चित हो और धमकी या अपमानजनक रवैये पर रोक लगे। स्कूलों की संख्या और छात्र संख्या के अनुपात में पर्याप्त रसोइयों की बहाली की जाए। इस कार्यक्रम में शामिल छेदी पासवान, धीरेन्द्र लाल कर्ण, राजीव कुमार, नीलम सिंह, अनिल सिंह, दिनेश ठाकुर, महेंद्र सिंह, इंद्र कुमार, जीवछ यादव, साबित देवी, पुनीता देवी, सोनी देवी, कनक लता, शशी देवी, आमला देवी, काली देवी, चंदा देवी, रिंकी कुमारी, पूनम कुमारी, कमरू निशा, आदि शामिल हुए। आशा कार्यकर्ता और रसोइया संघ ने स्पष्ट किया कि यह आंदोलन उनके अधिकारों की रक्षा और सम्मानजनक भविष्य की गारंटी के लिए जारी रहेगा, जब तक कि सरकार उनकी मांगों पर ठोस कार्रवाई नहीं करती।

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