अब आई है एक नई क्रांति—ग्रीन स्टील।
सोचिए अगर स्टील बनाने के लिए कोयले की जगह कोई ऐसा ईंधन हो, जो धरती को ज़हरीला न बनाए। कोई ऐसी प्रक्रिया जिसमें ग्रीनहाउस गैसें कम निकलें, हवा साफ़ रहे और ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से आए?
यही है ग्रीन स्टील।
इसमें स्टील बनाने के लिए इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस (EAF) जैसे आधुनिक तकनीक का उपयोग किया जाता है, जो स्क्रैप मेटल और बिजली से काम करता है। और अगर वो बिजली सौर, पवन या हाइड्रोजन से आए, तो समझिए—आपने स्टील को लगभग ‘हरा’ बना दिया।
GEM की नई रिपोर्ट क्या कहती है?
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (GEM) की रिपोर्ट ने दुनिया को एक चेतावनी दी है—“2030 तक अगर स्टील उत्पादन की 38% क्षमता ग्रीन हो जाए, तो हम जलवायु लक्ष्यों की दिशा में एक बड़ी छलांग मार सकते हैं।” और हम उस लक्ष्य के बेहद करीब हैं—36% तक। लेकिन अब ये आख़िरी दो प्रतिशत भारत के कदमों पर टिका है।
क्यों?
क्योंकि भारत, आज की तारीख में, दुनिया की सबसे बड़ी स्टील विस्तार योजनाएं बना रहा है। भारत की नई निर्माणाधीन परियोजनाएं दुनिया के कुल विस्तार का 40% हिस्सा हैं। लेकिन इनमें से ज़्यादातर कोयले पर आधारित हैं।
भारत बना है अब “gamechanger”—या तो राह दिखाएगा, या रुकावट बनेगा
अगर भारत अपने पुराने कोयला-आधारित मॉडल पर चलता रहा, तो न सिर्फ ये परियोजनाएं सबसे ज़्यादा कार्बन उत्सर्जन करेंगी, बल्कि दुनिया 2030 का “ग्रीन स्टील” लक्ष्य भी चूक जाएगी।
GEM की रिपोर्ट बताती है—
"भारत जैसा करेगा, वैसा ही दुनिया करेगी। So goes India, so goes the world."
सवाल उठता है—क्या भारत तैयार है?
भारत के पास दो रास्ते हैं:
1. पुराना रास्ता: जहां स्टील को ‘सस्ता और जल्दी’ बनाना पहली प्राथमिकता रहे—कोयले से, ज़हरीली हवा से।
2. नया रास्ता: जहां नीति, निवेश और तकनीक को साथ लाकर भारत ग्रीन स्टील का अगुवा बने—एक ऐसी इंडस्ट्री खड़ी करे जो न सिर्फ मजबूत हो, बल्कि नैतिक भी।
इस नई दिशा में ऑस्ट्रेलिया और ब्राज़ील पहले ही आगे बढ़ चुके हैं। उनके पास न सिर्फ लौह अयस्क है, बल्कि ग्रीन हाइड्रोजन और अक्षय ऊर्जा की ताकत भी है। अगर भारत चाहे, तो वह इन देशों के साथ साझेदारी कर सकता है—ग्रीन स्टील के कच्चे माल और तकनीक के लिए।
और कहानी का नायक कौन है?
आप।
आप, यानी नीति निर्माता, आप, यानी निवेशक, आप, यानी पत्रकार, इंजीनियर, उद्योगपति और युवा नागरिक—जो यह तय करेंगे कि अगली बार जब कोई पुल बने, कोई ट्रेन चले या कोई इमारत खड़ी हो, तो वो सिर्फ मजबूती का नहीं, संवेदनशीलता का प्रतीक भी हो।
चलते चलते...
ये लड़ाई अब स्टील और स्टेटस क्वो की है। या तो हम कोयले के धुएं से घिरे स्टील टावर बनाएंगे, या फिर ग्रीन स्टील से वो पुल जो हमें एक साफ, सुरक्षित और जिम्मेदार भविष्य की ओर ले जाएं। भारत को अब सिर्फ स्टील बनाना नहीं है—उसे मिसाल बनानी है।
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