डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा की अध्यक्षता और जी.वी. मावलंकर विधायी निकाय के रूप में अध्यक्षता करते थे। संविधान निर्माण के लिए अनेकों समितियों का गठन किया गया था। प्रक्रिया व नियम समिति, संचालन समिति, झंडा समिति, कर्मचारी एवं वित्त समिति के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे। क्रेडेंशियल समिति के अध्यक्ष ए.के. अय्यर, कार्य समिति के अध्यक्ष के.एम. मुंशी, राज्य (वार्ता) समिति, संघ संविधान समिति और संघ शक्ति समिति के अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू, संविधान सभा के कार्यों के अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर थे। मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यक, प्रांतीय संविधान समिति, जनजातीय क्षेत्र और बहिष्कृत क्षेत्र पर सलाहकार समिति के अध्यक्ष सरदार बल्लभ भाई पटेल थे। इस प्रकार संविधान सभा की प्रमुख समितियाँ और उनकी उप-समितियों ने संविधान सभा में भारतीय संविधान के प्रमुख पहलुओं पर विचार किया था और अन्ततः ड्राफ्टिंग समिति के अध्यक्ष होने के नाते डा. बाबा साहिब आंबेडकर को मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी।
संविधान का निर्माण एक टीम-वर्क कार्य था। हम ड्राफ्टिंग कमेठी के अध्यक्ष डा. बाबा साहिब आंबेडकर के साथ-साथ उन महान व्यक्तियों को भी नहीं भूल सकते हैं जिन्होंने भारत के संविधान को बनाने में अपनी अहम् भूमिका का निर्वाह किया था। दिनांक 25 नवंबर 1949 को डॉ. अंबेडकर ने कांस्टीट्यूएंट असेंबली के अपने समापन भाषण में भारतीय संविधान के प्रारूप में सर बी.एन. राव की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया था। डॉ. अंबेडकर ने उल्लेख किया कि संविधान के सफल निर्माण का श्रेय केवल उन्हें ही नहीं है, बल्कि सर बी.एन. राव को भी है, जिन्होंने संविधान सलाहकार के रूप में कार्य किया और संविधान सभा के लिए एक मसौदा तैयार किया। उन्होंने बी.एन. राव के प्रारंभिक कार्य और प्रारूप समिति के योगदान के महत्व पर उद्बोधन दिया था तथा उन्होंने संविधान सभा के सभी अध्यक्षों और सदस्यों के सामूहिक प्रयास और बल के फलस्वरूप संविधान को अंतिम रूप देने का भाषण दिया था। देश के राजनीतिक दलों और जातिगत आधार पर स्वार्थपूर्ण खेल खेलने वालों से निवेदन है कि वह डा. बाबा साहिब आंबेडकर के दिनांक 25 नवंबर 1949 को दिए कांस्टीट्यूएंट असेंबली के भाषण को पढ़े।
वस्तुतः हो यह रहा है कि राजनीतिक और सत्ता प्राप्ति के उद्देश्य से एक विशेष वर्ग को प्रभावित करने के लिए डा. आंबेडकर का नाम उपयोग किया जा रहा है। आज यदि डा. आंबेडकर जी जीवित होते तो वह इस हेतु कतई सहमति नहीं देते। वह जातिगत आधार पर चुनावी लाभ लेने के लिए अपने नाम से कभी किसी आर्मी संगठन बनाने की सहमति नहीं देते। गौर करने योग्य है कि इसमें समस्त अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के लोग शामिल नहीं हैं। हम बाल्मीक समाज को अनदेखा नहीं कर सकते हैं, यही तथाकथित लोग उनके साथ परहेज क्यों करते हैं? यह एक राजनीतिक षड्यंत्र है और जातिगत द्वेष की भावना को निर्मित कर रहे हैं। डा. बाबा साहिब आंबेडकर हमारे भी हैं, हम उनके प्रति श्रद्धा रखते हैं। चिंताजनक तो यह है कि जिस तरह "जय श्री राम" बोलने पर यदि किसी एक राजनीतिक दल से जोड़ा जाता है, तो उसी तरह "जय भीम" बोलने पर भी किसी एक राजनीतिक दल से जोड़ने की भावना प्रकट करता है। चिंताजनक यह भी है कि संवैधानिक पदों पर और शासकीय कर्तव्यों के निर्वाहन में पदस्थ भी "जय भीम" के नारे लगाते हैं।
हम उन महान नेतृत्व करने वाले नेताओं को भी नहीं भूल सकते जिन्होंने भारत के संविधान निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह किया। जगह-जगह डा. बाबा साहिब आंबेडकर की मूर्तियां लगाने का कोई विरोध नहीं है, लेकिन संविधान सभा के उन नेताओं की मूर्तियां स्थापित करने से क्यों परहेज कर रहे हैं, जिन्होंने भारत का संविधान बनाने में अपना ज्ञान और सामग्री परोसी थी। इसके पीछे केवल जातिगत राजनीति और सत्ता सापेक्ष दृष्टिकोण और जातिगत संघर्ष कराने को प्रेरित करता है।
राजेन्द्र तिवारी,
दतिया (म.प्र.)
फोन 9425116738, 6267533320
email- rajendra.rt.tiwari@gmail.com
लेखक एक पूर्व शासकीय एवं वरिष्ठ अभिभाषक व राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक आध्यात्मिक विषयों के चिन्तक व समालोचक हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें