न्यायमूर्ति गवई ने अपनी हाल की मणिपुर यात्रा को याद करते हुए कहा कि एक वृद्ध महिला ने अपने घर में उनका स्वागत किया और इससे उन्हें देश की एकता एवं आत्मीयता का एहसास हुआ। उन्होंने कहा कि न्यायाधीश भी देश के नागरिक हैं और पहलगाम में हुई वीभत्स घटना के बारे में जानने के बाद उन्होंने प्रधान न्यायाधीश खन्ना से परामर्श किया तथा मौतों पर शोक व्यक्त करने के लिए शीर्ष अदालत की ओर से बयान जारी करने का निर्णय लेने के वास्ते पूर्ण न्यायालय की बैठक बुलाई। उन्होंने कहा, ‘‘आखिरकार, हम भी देश के जिम्मेदार नागरिक हैं और ऐसी घटनाओं से प्रभावित होते हैं... हम भी नागरिक के तौर पर चिंतित हैं। जब पूरा देश शोक मना रहा है, तो उच्चतम न्यायालय अलग नहीं रह सकता।’’ मनोनीत प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि युद्ध निरर्थक है। उन्होंने रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष का उदाहरण देते हुए कहा कि इससे कोई ठोस लाभ नहीं होने वाला। न्यायाधीशों द्वारा संपत्ति की घोषणा किए जाने के मुद्दे पर न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि शीर्ष अदालत के 33 में से 21 न्यायाधीशों ने अब तक अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक कर दिया है और शेष अन्य भी जल्द ऐसा करेंगे। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को भी ऐसा करना चाहिए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा से जुड़े नकदी बरामदगी विवाद पर उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति ने उन्हें दोषी ठहराया है और इस मुद्दे को आगामी कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तथा प्रधानमंत्री के पास भेजा गया है। हालांकि, जब उनसे पूछा गया कि क्या इस मामले में कोई प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है, उन्होंने विवाद पर कोई टिप्पणी करने से इनकार किया। कॉलेजियम और अनुशंसित नामों को केंद्र द्वारा मंजूरी न दिए जाने से संबंधित प्रश्न पर उन्होंने कोई विशिष्ट टिप्पणी करने से इनकार किया। न्यायपालिका में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के जवाब में उन्होंने कहा कि संवैधानिक पदों पर नियुक्तियों में आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
नई दिल्ली (रजनीश के झा)। मनोनीत प्रधान न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने रविवार को कहा कि वह सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी तरह का पद नहीं लेंगे। उन्होंने संविधान को सर्वोच्च बताकर इस बहस पर विराम लगा दिया कि संसद या न्यायपालिका में से कौन श्रेष्ठ है। न्यायमूर्ति गवई 14 मई को देश के प्रधान न्यायाधीश का पद ग्रहण करेंगे और वह इस पद पर पहुंचने वाले पहले बौद्ध होंगे। उन्होंने यहां अपने आवास पर पत्रकारों के साथ अनौपचारिक बातचीत में कहा कि शीर्ष अदालत के न्यायाधीश पहलगाम आतंकवादी हमले के बारे में सुनकर स्तब्ध थे। उन्होंने प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना के अनुपस्थित रहने के कारण उनके द्वारा बुलाई गई पूर्ण न्यायालय बैठक का भी जिक्र किया। न्यायमूर्ति गवई ने लंबित मामलों से लेकर अदालतों में रिक्तियों, न्यायाधीशों द्वारा राजनीतिक नेताओं सहित आम लोगों से मुलाकात और न्यायपालिका के खिलाफ बयानों जैसे मुद्दों पर बात की। उन्होंने कहा, ‘‘जब देश संकट में हो तो उच्चतम न्यायालय अलग नहीं रह सकता। हम भी देश का हिस्सा हैं।’’ राजनीतिक नेताओं और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस बयान के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में कि संसद सर्वोच्च है, उन्होंने कहा, ‘‘संविधान सर्वोच्च है। केशवानंद भारती मामले में 13 न्यायाधीशों की पीठ ने भी यही कहा है।’’ न्यायाधीशों द्वारा सेवानिवृत्ति के बाद राज्यपाल जैसे राजनीतिक पद स्वीकार करने से संबंधित प्रश्न पर न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘मेरी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है... मैं सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद नहीं लूंगा।’’ उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधान न्यायाधीश के लिए राज्यपाल का पद प्रोटोकॉल के हिसाब से प्रधान न्यायाधीश के पद से नीचे है।
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