- भाकपा सांसद का भागवत से सवाल
कुमार ने पत्र में कहा, ‘‘मैं आपको यह पत्र आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारियों द्वारा हाल में दिए गए उन बयानों के मद्देनजर लिख रहा हूं, जिनमें उन्होंने हमारे संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के स्थान पर संदेह जताया है।’’ कुमार ने कहा, ‘‘ये सिद्धांत मनमाने ढंग से नहीं थोपे गए हैं, बल्कि ये आधारभूत आदर्श हैं जो भारत के शोषितों के अनुभवों और महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, डॉ. बी.आर. आंबेडकर और कई अन्य नेताओं की दूरदर्शी कल्पना से उपजे हैं, जिन्होंने एक न्यायपूर्ण, बहुलवादी गणराज्य बनाने का प्रयास किया।’’ भाकपा नेता ने कहा कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में धर्मनिरपेक्षता विविधता में एकता सुनिश्चित करती है, जबकि समाजवाद हमारे प्रत्येक नागरिक को न्याय और सम्मान का वादा करता है। उन्होंने कहा, ‘‘इन मूल्यों का उपहास करना या इन्हें अस्वीकार करना, औपनिवेशिक शासन से हमारे राष्ट्र की मुक्ति के समय भारत के लोगों से किए गए वादे को नकारना है।’’
कुमार ने कहा, ‘‘हमने उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई, जनांदोलनों में भाग लिया और बाद में हमारे संविधान के निर्माण में पूरे दिल से सहयोग किया। इसके विपरीत, आरएसएस ने इन संघर्षों का मखौल उड़ाया, राष्ट्रीय ध्वज का विरोध किया और भारतीय समाज को लोकतांत्रिक बनाने के लिए बनाई गई हर प्रगतिशील नीति को कमजोर किया।’’ उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि ‘परिवार’ (आरएसएस से जुड़े संगठनों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द)राजनीति को सांप्रदायिक बनाने, सार्वजनिक संस्थाओं को नष्ट करने और अति-राष्ट्रवाद के मुखौटे में कॉर्पोरेट समर्थक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए व्यवस्थित रूप से काम कर रहा है।’’ भाकपा नेता ने सवाल किया, ‘‘इस संदर्भ में, मैं आपसे स्पष्ट रूप से पूछना चाहता हूं: क्या आरएसएस वास्तव में भारतीय संविधान और इसके मौलिक मूल्यों को स्वीकार करता है? या क्या यह एम एस गोलवलकर के लेखन से प्रेरणा लेता है, जिन्होंने लोकतंत्र और समानता को भारतीय संस्कृति के लिए विदेशी बताया और नाजी जर्मनी को एक आदर्श के रूप में पेश किया?’’
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