करगिल युद्ध के नायक कैप्टन सौरभ कालिया की पाकिस्तानी सेना द्वारा क्रूरतापूर्वक हत्या किये जाने के 26 वर्ष बाद भी उनके पिता पाकिस्तान को ‘जिनेवा कन्वेंशन’ के उल्लंघन के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में घसीटने के अपने प्रयास में जुटे हैं। कैप्टन सौरभ के 78 वर्षीय पिता डॉ. एनएन कालिया पाकिस्तान की हिरासत में उनके बेटे के साथ की गई उस दरिंदगी के खिलाफ आज भी न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। अगर आज कैप्टन सौरभ कालिया जिंदा होते तो अपना 49वां जन्मदिन मना रहे होते। ‘हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी संस्थान’ (आईएचबीटी) के सेवानिवृत्त वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. कालिया का कहना है कि उन्हें देश के राजनीतिक नेतृत्व व न्यायिक प्रणाली पर पूरा भरोसा है और उन्हें उम्मीद है कि इस जघन्य अपराध के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाएगा। डा. कालिया ने उन दिनों को याद करते हुए कहा, “उसकी शहादत का कोई सानी नहीं है और इसका नतीजा ये हुआ कि एक पूरा राष्ट्र उठ खड़ा हुआ, देश में देशभक्ति की ज्वाला भड़क उठी और सशस्त्र बलों की हुंकार से देश पर मर मिटने के लिए देशवासियों का खून खौलने लगा।’’ ‘4-जाट रेजिमेंट’ से जुड़े लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया साल 1999 में मई महीने के तीसरे सप्ताह में करगिल के काकसर में एक टोही मिशन के लिए पांच सैनिकों के साथ गए थे। पूरी टीम लापता हो गई और उनके लापता होने की पहली खबर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में असकारदु रेडियो पर प्रसारित की गई। लेफ्टिनेंट सौरभ और उनकी टीम में शामिल सिपाही अर्जुन राम, बनवार लाल, भीकाराम, मूला राम और नरेश सिंह के पार्थिव शरीर नौ जून को भारत को सौंप दिए गए। अगले दिन यानी 10 जून को ‘पीटीआई-भाषा’ ने पाकिस्तान की बर्बरता की कहानी को उजागर किया। लेफ्टिनेंट सौरभ को मरणोपरांत कैप्टन का दर्जा दिया गया था। जवानों के पार्थिव शरीर जब लौटाये गये तो उनके महत्वपूर्ण अंग गायब थे, आंखें निकाल ली गई थीं, नाक, कान और जननांग काट दिए गए थे। दोनों देशों के बीच सशस्त्र संघर्ष के इतिहास में इस तरह की निर्दयता पहले कभी नहीं देखी गई थी और भारत ने अपने सैन्य कर्मियों के साथ की गयी इस बर्बरता पर भारी आक्रोश व्यक्त किया था और इसे ‘अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन’ करार दिया था।
सोमवार, 30 जून 2025
करगिल में शहादत के 26 वर्ष बाद भी कैप्टन सौरभ कालिया के पिता न्याय की आस में
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