- इंटीरियर डेकोरेशन में वास्तविक हरियाली बनी पहली पसंद...
फिर भी, आशा की किरण यही है कि प्रयास शुरू हो चुके हैं। देर से ही सही, पर लोग अब चेतने लगे हैं। सरकारी संस्थान, कॉर्पोरेट सेक्टर, शैक्षणिक संस्थाएं और आवासीय सोसाइटीज़ अब छोटे-छोटे प्रयासों से बड़े बदलाव की नींव रख रही हैं। वर्टिकल गार्डन, रूफटॉप फार्मिंग, ग्रीन क्लासरूम, टेरेस प्लांटेशन जैसी पहलें केवल सजावटी प्रयोग नहीं हैं,ये भविष्य के लिए की जा रही जिम्मेदारियाँ हैं। दिल्ली के पड़ोसी शहर नोएडा ने इस दिशा में एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। उत्तर प्रदेश में आने वाला यह शहर अब देश के हरित और व्यवस्थित शहरों में गिना जा रहा है। वहाँ की चौड़ी, साफ-सुथरी सड़कों के दोनों ओर घने पेड़ों की कतारें, सुव्यवस्थित ग्रीन बेल्ट्स और डिवाइडरों की हरियाली मन को मोह लेती है। वहाँ के सार्वजनिक स्थानों पर हरित योजना स्पष्ट दिखाई देती है।यह साबित करता है कि अगर इच्छाशक्ति हो तो कंक्रीट के जंगलों में भी ऑक्सीजन के झरोखे बनाए जा सकते हैं। पर इसी मार्ग में बहती यमुना नदी ने चिंतन के लिए मजबूर कर दिया। दिल्ली और नोएडा को बांटती यह जीवनधारा अब झाग, बदबू और गंदगी से भरी दिखी। कभी पूजा की जाने वाली यह नदी अब शहरों की गटर बन चुकी है। हरित प्रयासों के साथ-साथ जल शुद्धि और संरक्षण भी उतना ही अनिवार्य है। यमुना को पुनर्जीवित करना केवल पर्यावरण नहीं, संस्कृति और आत्मा को पुनः जीवन देना है।
दुनिया में इस समय लगभग 3.04 ट्रिलियन पेड़ हैं, यानी प्रति व्यक्ति लगभग 422 पेड़। भारत में यह संख्या घटकर 28-30 पेड़ प्रति व्यक्ति रह जाती है, और दिल्ली जैसे शहरों में यह संख्या 5 से भी कम है। यह आंकड़े चेताते हैं कि यदि अभी नहीं जागे, तो अगली पीढ़ी के लिए हवा सिर्फ इतिहास की बात बन जाएगी। Microsoft जैसी कंपनियों द्वारा किया गया यह हरित प्रयोग केवल एक संस्था का दायित्व नहीं, सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है। जब एक दफ्तर अपने इंटीरियर को ऑक्सीजन देने वाले पौधों से सजाता है, तो वह सिर्फ CSR नहीं करता, बल्कि हमें यह याद दिलाता है कि हमारी सबसे जरूरी जरूरतें प्रकृति से आती हैं, मशीनों से नहीं। अब समय आ गया है कि हम केवल शिकायत करने वाले नहीं, समाधान देने वाले नागरिक बनें।एक पौधा लगाएँ, एक गमला सजाएँ,एक बालकनी हरा करें,एक दीवार को वर्टिकल गार्डन में बदलें। और जहाँ हो सके, एक नदी के लिए आवाज़ उठाएँ..।अब समय आ गया है कि हम पर्यावरण के प्रदूषण को रोकने में जिस भूमिका का भी निर्वहन कर सकते है,वो करे।क्योंकि अब भव्यता सिर्फ इंटीरियर डिज़ाइन से नहीं,भव्यता अब हरियाली से है। और हवा अब कोई मुफ़्त उपहार नहीं,शुद्ध हवा अब जीवन का अधिकार है।
बृजेश सिंह तोमर
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरण चिंतक है)


कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें