विचार : वंशानुगत रोगों पर भारी आजकी जीवनशैली - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 30 जून 2025

विचार : वंशानुगत रोगों पर भारी आजकी जीवनशैली

Rajendra-prasad-sharma
अब वंशानुगत बीमारियों से भी भारी हमारी बिगड़ती जीवनशैली होती जा रही हैं। वंशानुगत बीमारियों से ज्यादा जानलेवा बीमारियां हमारी बदलती जीवनशैली के कारण होती जा रही है। हमारा खान-पान, रहन-सहन, प्रकृति से दूरी, बदलती जीवनचर्या यह सब वंशानुगत बीमारियों पर भारी पड़ती जा रही है। वंशानुगत बीमारियों से तो राहत प्राप्त की जा सकती है पर हमारी जीवनशैली के कारण होने वाली बीमारियां साइलेंट अटैक का काम करती है और पता ही नहीं चलता कि कब जानलेवा बन जाती है। जानी मानी पत्रिका नेचर मेडिसिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट से साफ हो गया है कि अब जीन से ज्यादा जीवन पर खतरा खराब या अव्यवस्थित जीवनशैली के कारण हो गया है। यह माना जाता रहा है कि कुछ बीमारियां वंशानुगत या यों कहे कि आनुवांशिकी के कारण जन्मजात होती है व उम्र के साथ वे अपना असर दिखाना आरंभ कर देती है वहीं बदलती जीवनशैली और हमारा रहन-सहन, आहार-विहार उससे भी गंभीर असर दिखाने लगा है। विशेषज्ञों की माने तो जीन प्रभावित लोग बेहतर और संतुलित जीवनशैली से अपनी जीवन रेखा को बड़ा कर सकते हैं वहीं बदलती जीवनशैली के कारण असामयिक मौत की संभावनाएं 78 फीसदी तक अधिक हो गई है। दरअसल नेचर मेडिसिन पत्रिका में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शौधार्थियों के आलेख में यह दावा किया गया है। शोधार्थियों द्वारा यूके बायोबैंक से 5 लाख लोगों का आंकड़ा प्राप्त कर यह निष्कर्ष निकाला है। शोधार्थियों द्वारा 164 फैक्टर और जेनेटिक जोखिमों का विस्तृत अध्ययन किया है। भारत भी इससे अछूता नहीं हैं। जीवनशैली और आहार-विहार में बदलाव के कारण ही आज हार्ट संबंधी रोग, कैंसर, डाइबिटिज, ब्लड प्रेशर, अनिद्रा, डिप्रेशन और इसी तरह की कई बीमारियां आम होती जा रही है। क्या बच्चे, क्या युवा और क्या बुजुर्ग इन बीमारियों से अछूते नहीं रह पा रहे हैं। कल तक रईसों और उम्र के पड़ाव के अवसर पर होने वाली बीमारियां पूरी साम्यवादी सोच के साथ किसी को भी अपने दायरें में लेने लगी है। यहां तक कि युवाओं के मौत के आंकड़ें को बढ़ाने में हमारी जीवनशैली खास भूमिका निभाने लगी है।


एक समय था जब सूर्योदय से पहले उठने और रात नो साढ़े नो बजे तक सो जाने की सामान्य परंपरा रही है तो प्रातःकाल भ्रमण, दिन में भोजन के बाद कुछ समय के लिए आराम और रात को खाना खाने के बाद थोड़ी चहल कदमी अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरुरी मानी जाती थी। स्वास्थ्यवर्द्धक खाद्य सामग्री और खान-पान में संयम के साथ ही शुद्धता पर जोर दिया जाता था। जिस तरह की हमारी कार्यशैली होती थी या यों कहे कि जिस तरह का श्रम किया जाता था उसी अनुरुप भोजन पर भी जोर दिया जाता था ताकि शरीर को तदनुरुप पोष्टिक तत्व मिल सके। आज हालात में तेजी से बदलाव आया है। रसोई और रसोई सामग्री की शुद्धता और गुणवत्ता की बात तो करना ही बेमानी होगा। मिलावट या फिर रासायनिक खाद-कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग के कारण वस्तुओं की गुणवत्ता में कमी आना तो स्वाभाविक ही है इसके साथ ही चंद लाभ के लिए खाद्य सामग्री में मिलावट आम होती जा रही है। इसके साथ ही प्रदूषित वातावरण बीमारियों का कारक तो बन ही रहा है इसके साथ ही दवाएं भी बेअसर होती जा रही है। यह वास्तविकता है जिसे हम नकार नहीं सकते। एक शोध के अनुसार केवल धुम्रपान के कारण ही 21 तरह की बीमारियां जकड़ सकती है तो पारिवारिक व रोजगारपरक तनाव के चलते 17 तरह की बीमारियां सीधे सीधे प्रभावित करती है। आज हमारे खान-पान का बदलाव तो इसी से समझा जा सकता है कि जंक फूड या बाहर खाना खाना हमारी प्राथमिकता बनता जा रहा है शहर के किसी भी कोने में निकल जाओं तो शाम से लेकर देर रात तक फास्ट फूड-जंक फूड और इसी तरह के रेस्ट्रा या स्ट्रीट वेंडर्स के ठेलों पर भीड़ दिखाई दे जाएगी। घर का खाना तो अब बच्चों की पंसद से दूर होता जा रहा है। रही सही कसर ऑनलाइन प्लेटफार्म ने पूरी कर दी और अब तो आधी रात को भी गली मोहल्लों में स्वीगी या इसी तरह की संस्था से जुड़े कार्मिक को आसपास ही खाद्य सामग्री सप्लाई करते हुए आसानी से देखा जा सकता है। फास्ट फूड या जंक फूड के मामलें में यह जानना या मालूम करना तो बेमानी हो जाता है कि आप द्वारा मंगाई जा रही सामग्री चाहे वह पिज्जा हो, डोसा हो, पाव भाजी हो या और कुछ, उसमें प्रयोग में लाई जाने वाली सामग्री की गुणवत्ता और स्वास्थ्य के मानकों पर कितनी खरी होगी। ऐसा नहीं है कि आज ही ऐसा होने लगा हो, पहले भी कचोरी, समोसे, जलेबी, मिर्च बड़ा आदि आदि के प्रति लोगों का रुझान रहता आया है। पर एक सीमा तक ही उनके उपयोग की सलाह दी जाती थी। आज तो जब जी चाहा ऑनलाइन आर्डर दिया और चंद समय में हाजिर।


जहां तक शुद्ध हवा और शुद्ध पानी का प्रश्न है तो आज आरओ और बोतलबंद पानी की गुणवत्ता पर प्रश्न उठाये जाने लगे हैं। प्रदूषण के कारण शुद्ध हवा की बात करने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। भले ही पार्कों में कितने ही घूम आओं या जीम में जाकर वर्कआउट कर आओं पर सवाल यही है कि आपके आसपास शुद्ध हवा तो अब रही ही नहीं। वाहनों की प्रदूषित धुआं, एसी सहित इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं के कारण वातावरण का बढता तापमान और इसी तरह के अनेक कारण गिनाये जा सकते हैं। रही सही कसर मोबाइल फोन और सोशल मीडिया ने पूरी कर दी है। अब तो एक घर में ही चार नहीं अनेक कोने हो गए। पिता एक तरफ अपने मोबाइल में मशगूल है तो मां अलग, बेटा-बहू अलग व बच्चों को भी इसी तरह से एक ही कमरे में बैठे होने के बावजूद एक दूसरे से अंजान की जैसी हालात में देखना आम है। सबसे खास यह कि सोशल मीडिया पर किस पोस्ट पर किसने लाइक किया या किसने इग्नोर किया यह तक तनाव का कारण बनता जा रहा है। खैर यह लंबी बहस का विषय हो जाता है।

सो टके का सवाल यही है कि यदि हमें अपनी जीवन डोर लंबी करनी है तो समय रहते हमारी जीवनशैली और खान-पान को बदलना होगा। जीवनशैली के कारण जो असामयिक मौत और बीमारियों के आंकड़ें सामने आ रहे हैं वह सबके सामने हैं। लोगों को समय रहते बदलाव लाना होगा ताकि जीन पर भारी पड़ती जीवनशैली के नकारात्मक असर को कम किया जा सकें।




डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

स्तंभकार

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