इन्फ्लुएंस मैप के रणनीतिक भागीदारी के मानदंड के हिसाब से, इस आँकलन में शामिल 20 कंपनियों में से 17 कंपनियों की नीति भागीदारी का स्तर 25% से कम रहा है। इसका साफ़ मतलब है कि जलवायु को लेकर कंपनियों द्वारा की जाने वाली सकारात्मक बयानबाजी है। वास्तव में सक्रिय नीति-समर्थन में नहीं बदल रही हैं। यह एक ठोस सक्रिय नीति हस्तक्षेप के अमली जामे में, जो बदलाव ला सकें नहीं तब्दील हो रही है। उदाहरण के लिए, 20 में से 9 कंपनियों ने भारत के 2030 तक 500 गीगावाट रिन्युब्ल एनर्जी लक्ष्य का समर्थन किया। लेकिन सिर्फ़ 5 कंपनियां भारत की कार्बन क्रेडिट और ट्रेडिंग प्रणाली (CCTS) में सक्रिय थीं। इस विश्लेषण में भारत के आठ सबसे प्रभावशाली उद्योग संगठनों भी हैं। जिनमें एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (ASSOCHAM), भारतीय उद्योग परिसंघ (CII), और भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (FICCI) शामिल हैं। इन आठों में से कोई भी संगठन पेरिस समझौते के ग्लोबल वार्मिंग के 1.5°C सीमा लक्ष्य को हासिल करने के लिए आवश्यक विज्ञान-आधारित नीति मार्गों के साथ पूरी तरह से मेल नहीं खाता। हालांकि, आठ में से सात संगठनों ने आंशिक रूप से इससे मेल खाती जलवायु नीति भागीदारी का प्रदर्शन किया। इस समूह में CII अग्रणी के रूप में उभरकर सामने आता है, जो अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान जैसे प्रमुख अर्थतंत्रों के विपरीत है, जहां बहु-क्षेत्रीय उद्योग संगठन आमतौर पर जलवायु नीति में भागीदारी के मामले में पीछे रह जाते हैं।
SIAM (सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स) को इस विश्लेषण में सबसे कम स्कोर मिला। हालांकि इसने हालिया इलेक्ट्रिक वाहन (EV) नीतियों का समर्थन किया है, लेकिन इसका पिछला रिकॉर्ड पेट्रोल/डीजल मानकों का विरोध और आंतरिक दहन इंजन (ICE) वाहनों के पक्ष में रहा है। यह स्थिति उसके कुछ सदस्य जैसे महिंद्रा एंड महिंद्रा के जलवायु नीति में कहीं अधिक सकारात्मक योगदान के बिल्कुल विपरीत है। ऐसे विरोधाभास वैश्विक प्रवृत्ति का हिस्सा हैं, जहां उद्योग संगठन अपने सदस्यों के ‘lowest common denominator’ रुख को ही अपनाते हैं — यह निवेशकों के लिए चिंता का विषय है। भारत इस समय अपने 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य की दिशा में महत्वपूर्ण मोड़ पर है, और सरकार लगातार नई जलवायु नीतियां लागू कर रही है, जिनमें राष्ट्रीय कार्बन बाजार का गठन शामिल है। कंपनियों और उद्योग संगठनों की नीति की वकालत इन पहलों की सफलता में अहम भूमिका निभाएगी। भारत में व्यवसायों के बीच बदलाव या ट्रांजीशन का विरोध कम होना, ReNew जैसी कंपनियों के लिए वैश्विक स्तर पर नेतृत्व का अवसर प्रस्तुत करता है। बिज़नेस रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग (BRSR) से जुड़े मौजूदा दिशानिर्देश कंपनियों को जलवायु नीति भागीदारी की गतिविधियों को अधिक पारदर्शिता से उजागर करने का एक बेहतरीन शुरुआती कदम मुहैया कराती हैं। हालांकि, इन्फ्लुएंस मैप के नवीनतम विश्लेषण में पाया गया कि केवल छह कंपनियों ने BRSR में उन वैकल्पिक सवालों का जवाब दिया जो प्रत्यक्ष जलवायु नीति भागीदारी गतिविधियों के खुलासे के लिए आमंत्रित करते हैं। जबकि उन्होंने अन्य अनिवार्य प्रश्नों—जैसे उद्योग संगठनों की सदस्यता जैसे सवालों का जवाब ज़रूर दिया। InfluenceMap भारत में अपनी नई India Platform के माध्यम से नीति-निर्धारण में कॉरपोरेट भागीदारी की स्थिति को ट्रैक करता रहेगा।
विवेक पारिख, इंडिया प्रोग्राम लीड, इन्फ्लुएंस मैप ने कहा:
“भारत में कॉरपोरेट क्षेत्र का इन्फ्लुएंस मैप द्वारा किया गया पहला मूल्यांकन दर्शाता है कि जलवायु नीति का कोई स्थापित या संगठित विरोध मौजूद नहीं है। ऐसे में, आगे की सोच रखने वाली कंपनियों के पास एनर्जी ट्रांज़िशन को आगे बढ़ाने और विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक में ‘फर्स्ट मूवर’ होने का लाभ हासिल करने का एक बड़ा अवसर है। यह इस ओर भी ध्यान दिलाता है कि कंपनियां अभी क्या कदम उठा सकती हैं ताकि वे इस रास्ते पर आगे बढ़ सकें—जैसे यह समझना कि सरकारों के सामने उनके हित कैसे प्रस्तुत किए जा रहे हैं—क्योंकि शोध यह दर्शाता है कि यह प्रस्तुतिकरण भारतीय कॉरपोरेट क्षेत्र की शीर्ष स्तर की जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए किए गए वायदों से मेल नहीं खा रहा है। इसके साथ ही, वे BRSR जैसे तंत्रों का पूरा इस्तेमाल कर सकते हैं। जो जलवायु नीति में भागीदारी से संबंधित खुलासों में पारदर्शिता बढ़ाने का एक अहम माध्यम है।

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