हमारे इस संदर्भ में कुछ प्रासंगिक सवाल :-
1. सवाल यह उठता है कि फिर इस पूरी प्रक्रिया की प्रासंगिकता क्या रह गई है ?
2. क्या यह एक नियोजित षड्यंत्र है कुछ राजनीतिक दलों को लाभ पहुंचाकर लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाने का ?
3. अगर अंतिम निर्णय ईआरओ के विवेक पर छोड़ा गया है तो क्या बहुत बड़ी संख्या में भाजपा और जेडीयू की सरकार दबाव बनाकर वोटर लिस्ट में मनमानी नहीं करेगी?
4. क्या हाल ही में बिहार में स्पेशल समरी रिवीजन वोटर लिस्ट का नहीं किया गया है । जिसमें 6 जनवरी 2025 में अंतिम प्रकाशन मतदाता सूची का किया गया है जिसके तहत:-
1.घर-घर जाकर सर्वेक्षण
2.भौतिक स्थल पर जाकर सत्यापन
3 . दावों और आपत्तियों की सूची का प्रदर्शन और साझा करना
4 . प्रारूप और अंतिम मतदाता सूची को राजनीतिक दलों के साथ साझा करना.
जब यह पूरी प्रक्रिया जनवरी में ही की जा चुकी है तो फिर वही प्रक्रिया चुनावों के ठीक पहले फिर करना संदेह पैदा करने वाली है .चुनाव आयोग को तुरंत इस निर्णय को वापस लेना चाहिए, क्योंकि जो खबर इस प्रक्रिया को लेकर बिहार के विधानसभा क्षेत्रों से आ रही है कि लोग ख़ुद किसी भी प्रकार का फॉर्म भरने में समर्थ नहीं है वो चिंता बढ़ाने वाली है। संवाददाता सम्मेलन में प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम के अलावे विधान परिषद में दल के नेता व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मदन मोहन झा, नेशनल मीडिया पैनलिस्ट पूर्व विधान पार्षद प्रेम चंद मिश्र, मीडिया विभाग के चेयरमैन राजेश राठौड़, सोशल मीडिया विभाग के चेयरमैन सौरभ सिंहा, असित नाथ तिवारी, मंजीत आनंद साहू, प्रो विजय कुमार सहित अन्य नेतागण मौजूद रहें.

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