सभा को संबोधित करते हुए भाकपा–माले जिला सचिव कॉमरेड ध्रुव नारायण कर्ण ने कहा कि रोहित जी का सपना था गरीबों, किसानों, मज़दूरों की ताक़त को संगठित कर भाजपा–नीतीश सरकार की जनविरोधी नीतियों को ध्वस्त करना। आज जब यह सरकारें गरीबों को नागरिकता और अधिकार से बेदखल करने की साज़िश कर रही हैं, तब रोहित जी का यह सपना और भी प्रासंगिक हो जाता है। माले ने संकल्प लिया है कि जब तक पार्टी ज़िंदा है, तब तक गरीबों के अधिकारों की लड़ाई कभी खत्म नहीं होगी। इस अवसर पर भाकपा–माले नेता मयंक कुमार यादव ने कहा कि कॉमरेड रोहित मिश्रा हर गरीब और मज़दूर के दिल में बसते हैं। उनका जीवन सादगी, संघर्ष और कम्युनिस्ट विचारधारा का जीवंत प्रतीक था। बेनीपट्टी अनुमंडल में वे अकेले ही आंदोलन की मशाल जलाए हुए थे। आज हमने संकल्प लिया है कि उनके सपनों का लाल झंडा हम और बुलंद करेंगे और मधुबनी ज़िले में भाकपा–माले गरीबों के मान–सम्मान और अधिकार की लड़ाई को और धार देंगे। CPIM बेनीपट्टी के सचिव कॉमरेड पवन भारती जी ने कहा कि कॉमरेड रोहित मिश्रा एक अकेला व्यक्ति थे जो कि पूरे बेनीपट्टी अनुमंडल में जो कि लाल झंडा का मजबूत स्तम्भ थे वो ओर सरल शोभाव से भरे इंसान थे कोई भी परेशानी हो या कोई ऐसा काम हो जिसमें उनको कोई घबराहट नहीं देखते थे! सभा में मौजूद भाकपा - माले के युवा नेता अजीत कुमार ठाकुर, आलोक रंजन, सनिता जी, दीपक यादव जी, सरबन राम, अवध भंडारी, मिथिलेश यादव, सुनील ठाकुर,तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं ने लाल झंडे तले शपथ ली कि कॉमरेड रोहित मिश्रा का सपना हर हाल में साकार किया जाएगा।
बेनीपट्टी/मधुबनी (रजनीश के झा)। भाकपा–माले के वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता और क्रांतिकारी साथी कॉमरेड रोहित मिश्रा के सरक दुर्घटना में निधन हो गया पर आज अरेर चौक पे श्रद्धांजलि एवं संकल्प सभा का आयोजन किया गया। सभा का संचालन प्रखंड सचिव कॉमरेड श्याम पंडित ने किया। कॉमरेड रोहित मिश्रा जीवनपर्यंत कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़े रहे। 70 वर्ष की उम्र में भी वे नौजवानों की तरह लाल झंडे की विचारधारा और संघर्ष को बुलंद करते रहे। दुर्भाग्यवश हाल ही में सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया। सभा को संबोधित करते हुए भाकपा–माले पोलित ब्यूरो सदस्य एवं बिहार विधान परिषद सदस्य कॉमरेड शशि यादव ने कहा कि कॉमरेड रोहित मिश्रा लाल झंडे के एक सशक्त स्तंभ थे। उनका जीवन संघर्षशील जनता के अधिकारों की लड़ाई को समर्पित था। वे हमेशा इस बात को लेकर चिंतित रहते थे कि बेनीपट्टी अनुमंडल में अफ़सरशाही और कथित वामपंथी ताकतों की चाटुकारिता ने आंदोलन को कमजोर किया है। लेकिन उन्हें विश्वास था कि भाकपा–माले ही जनता की वास्तविक आवाज़ बनेगी और संघर्षों को मुकाम तक पहुँचाएगी।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें