- बिहार में अचानक कहां से आ गये बांग्लादेशी, नेपाल व म्यांमार के लोग, एसआईआर के नाम पर लोगों में आतंक पैदा किया जा रहा है।
- 31 जुलाई को पटना में होगा कर्ज मुक्ति सम्मेलन
2019 में चुनाव आयोग ने संसद को लिखकर दिया कि 2016-2019 में विदेशी मतदाता की कोई नहीं है। केवल 2018 में 3 ऐसी शिकायतें थीं। ऐसे में बिहार में 2025 में कहां से विदेशी मिल रहे हैं? बिहार के गांव-गांव में मुसहर मिलेंगे, क्या उन्हें म्यांमार का बना दे रहे हैं? बिहार के प्रवासी मजदूरों व मुसलमानों को बांग्लादेशी बोल दे रहे हैं। यह तो बंगाल के प्रवासी मजदूरों की समस्या है। उन्हें देश के दूसरे हिस्से में बांग्लादेशी कहा जा रहा है बांग्ला भाषा के कारण। अब हिंदी बोलने वाले मजदूर भी बांग्लादेशी कैसे हो गए? यह लोगों की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश हो रही है। नेपाल के साथ बेटी-रोटी का रिश्ता है। हमारी हर आशंका एक-एक दिन करके पुष्टि हो रही है। यह संविधान के साथ खिलवाड़ हो रहा है। हमारे साथी भी घर-घर जा रहे हैं। चुनाव आयोग हर बार याद दिलाता है कि डॉक्यूमेंट देना ही होगा। अभी नहीं तो अगस्त में देना होगा। बिहार के गरीबों के पास कौन दस्तावेज हैं? यहां के लोगों को जो दस्तावेज मिल सकते हैं वह है आवासीय व जाति प्रमाण पत्र। वह मिल नहीं रहा है। आयोग जो दस्तावेज मांग रहा है, वह है नहीं। जो लोग दस्तावेज मांग रहे हैं, वे दे नहीं रहे। आधार, राशन, वोटर कार्ड को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद आयोग मान नहीं रहा है। इसका मतलब है बिहार के लाखों लोगों का नाम कटना तय है। ईआरओ को जो अधिकार दिया गया है, स्थानीय जांच के आधार पर फैसला करने का, इसमें कोई पारदर्शिता नहीं रहेगी। यह चुनाव चुराने की पूरी कोशिश हो रही है। इसलिए बिहार के लोग नारा लगाने लगे हैं - चुनाव चोर गद्दी छोड़।
बिहार में अच्छी बात है कि शुरू से ही लोगों को पता चल रहा है। हमारी अपील है कि अपने मताधिकार की रक्षा कीजिए और चुनाव चुराने की साजिश को नाकाम बनाइए। हर रोज हत्या, बलात्कार; कहीं कोई न्याय नहीं। जहां अपराधियों-भ्रष्टाचारियों का राज कायम हो गया है, महिलाओं में कर्ज के कारण आत्महत्या हो रही है। यह चुनाव तो सरकार बदलने वाला चुनाव है। वैसे में यह अराजकता का माहौल बना दिया गया है। इसे ठीक करना है। गांधी जी के परपोते तुषार गांधी को गांधी जी के चंपारण में ही वहां उनको अपमानित किया गया, बाहरी कहकर। उनको भी कह देंगे कि आप बांग्लादेशी हैं। सच्चाई से इतना डर क्यों? बिहार में खराब राजनीतिक माहौल बनाने की कोशिश हो रही है भाजपा द्वारा। एक-एक मतदाता के मताधिकार की गारंटी हो। चुनाव आयोग ने भी हमारे पास पत्र भेजा है। अलग-अलग मिलना चाहते हैं। हम यही बात बोलेंगे - एसआईआर वापस लेना होगा। 2024 के मतदाता सूची के आधार पर 2025 का चुनाव सही ढंग से संपन्न हो। बिहार में शांति से चुनाव हो। उन्होंने एनडीए द्वारा 2025 से 2030 तक एक करोड़ रोजगार देने की बात पर तंज करते हुए कहा कि पहले मोदी सरकार यह बताए कि हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का वादा क्या हुआ?
ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी ने कहा बिहार में महिलाओं की स्थिति लगातार बदतर हो रही है। गरीबी के कारण महिलाएं कर्ज के बोझ से दबी हैं। जीविका समूह से सरकार बात तो करती है, लेकिन महिलाओं से जो वसूली होती है, वह खत्म नहीं हुई। माइक्रोफाइनेंस कंपनियों की बाढ़ आई हुई है। एक कर्ज चुकाने के लिए दूसरा-तीसरा कर्ज ले रही हैं। एक-एक गांव में 18-18 कंपनियां हैं। किश्त वसूली का दबाव इतना ज्यादा है कि लोग आत्महत्या कर रहे हैं या पलायन। 31 जुलाई को पटना में कर्ज मुक्ति सम्मेलन आयोजित किया जाएगा।
एमएलसी शशि यादव ने कहा कि बेटियों के साथ लगातार उत्पीड़न हो रहा है। वोटर लिस्ट वेरीफिकेशन में महिलाओं को बहुत समस्या हो रही है, खासकर 2003 के बाद जिनकी शादी नहीं हुई थी। सरकार स्कीम वर्करों की बात करती है, पर करती कुछ नहीं। रसोइया मात्र 1650 रुपये में काम कर रही हैं। जीविका, आशा, आंगनबाड़ी सभी की हालत खराब है। सरकार ने जीविका का कंट्रीब्यूटरी सिस्टम अब तक खत्म नहीं किया है। 30 जून को गरीबों को उजाड़ने के खिलाफ विधान परिषद में आश्रय अभियान होगा। इस चुनाव में ये सभी तबके एकजुट होकर लड़ेंगे। संवाददाता सम्मेलन में का. धीरेन्द्र झा व केडी यादव भी उपस्थित थे.

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