- "जनता की बिजली, जनता के पास रहे"—25 करोड़ कर्मचारी संगठनों के साथ बनारस में गरजा आंदोलन
- वक्ताओं ने चेताया अगर सरकार ने निजीकरण की प्रक्रिया नहीं रोकी, तो यह संघर्ष निर्णायक आंदोलन में बदलेगा
बनारस में नारे गूंजे— 'मुख्यमंत्री संवाद करो', 'बिजली का निजीकरण बंद करो'
प्रदर्शनकारियों के हाथों में बैनर और तख्तियां थीं जिन पर लिखा था— 'बिजली बिकेगी नहीं, संघर्ष झुकेगा नहीं', 'जनता की बिजली जनता को दो', 'बिजली का निजीकरण बंद करो', और 'बिजली की लूट बंद करो'। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि निजीकरण से— बिजली दरों में भारी वृद्धि होगी, ग्रामीण क्षेत्रों की सेवा प्रभावित होगी, संविदा और अस्थायी कर्मियों की नौकरी खतरे में पड़ेगी, और आईटीआई, डिप्लोमा, बीटेक जैसी तकनीकी पढ़ाई कर रहे लाखों छात्रों का भविष्य अनिश्चित हो जाएगा।
देशव्यापी आंदोलन का हिस्सा बना काशी
प्रदर्शनकारियों ने बताया कि बनारस समेत पूरे पूर्वांचल में विरोध प्रदर्शन चरम पर रहा। पावर हाउस, वितरण खंड कार्यालयों और बिजली स्टेशनों से कर्मियों ने कार्य का बहिष्कार कर भिखारीपुर धरना स्थल पर भाग लिया। आंदोलन को रेलवे, बैंक, बीमा और शिक्षक संगठनों से भी नैतिक समर्थन मिला।
सभा को इन नेताओं ने किया संबोधित
सभा में ई. मायाशंकर तिवारी, ई. अनिल कुमार, ई. रामाशीष, राजेश सिंह, विजय नारायण हिटलर, अंकुर पाण्डेय, दीपक गुप्ता, रविन्द्र यादव, सौरभ श्रीवास्तव, चंदन विश्वकर्मा, मो. हारिश, उदयभान दुबे, जयप्रकाश, गजेंद्र श्रीवास्तव सहित कई वक्ताओं ने संबोधित किया।
आंदोलन के अगले चरण की चेतावनी
संघर्ष समिति ने सरकार को स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यदि मांगें नहीं मानी गईं, तो अगला चरण होगा विद्युत आपूर्ति से विरत होकर पूर्ण कार्य बहिष्कार। फिर इसके लिए सरकार स्वयं जिम्मेदार होगी। वक्ताओं ने कहा, अब आंदोलन केवल बिजली विभाग का नहीं, यह लोकतंत्र और जनहित की रक्षा का प्रश्न है। यह सिर्फ तारों में नहीं, दिलों में दौड़ रही चेतना है।
सरकार के सामने विकल्प— संवाद या संघर्ष
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या सरकार इस जनचेतना का सम्मान करते हुए कर्मचारियों से संवाद करेगी या फिर टकराव की स्थिति को और गहरा होने देगी। बनारस से उठी यह आवाज़ अब राष्ट्रीय मंच पर गूंज रही है. "जनता की बिजली, जनता के पास रहे!"

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