वाराणसी : न निजीकरण चाहिए, न महंगी बिजली, बनारस में उपभोक्ता हुए एकजुट - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

वाराणसी : न निजीकरण चाहिए, न महंगी बिजली, बनारस में उपभोक्ता हुए एकजुट

  • 33122 करोड़ सरप्लस फिर भी दर बढ़ाने की तैयारी, उपभोक्ता परिषद बोली—हाथ में आएगी हथकड़ी, बिजली अफसर एसी में बैठे, ट्रांसफार्मर जलते रहे—722 हादसे फिर भी चुप्पी
  • लाखों कनेक्शन लेट, मुआवजा नहीं मिला—कानून को ताक पर रख रही बिजली कंपनियां, उपभोक्ता परिषद की दो टूक—निजीकरण असंवैधानिक, दरों में 45% कटौती होनी चाहिए

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वाराणसी (सुरेश गांधी). पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (पीवीवीएनएल) के निजीकरण और बिजली दरों में प्रस्तावित वृद्धि को लेकर शुक्रवार को वाराणसी में आयोजित जनसुनवाई में उपभोक्ताओं, उद्योगपतियों और किसानों ने जमकर विरोध दर्ज कराया। उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग के तत्वावधान में हुई इस सुनवाई में उपभोक्ता संगठनों ने एक स्वर में कहा कि न निजीकरण स्वीकार है, न दरों में बढ़ोतरी। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने सुनवाई में मौजूद रहते हुए आरोप लगाया कि निजीकरण की प्रक्रिया पूरी तरह असंवैधानिक और उपभोक्ता विरोधी है। उन्होंने कहा कि देश का कोई भी कानून ऐसी प्रक्रिया की अनुमति नहीं देता, जिसका मकसद सिर्फ उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाना हो। जनसुनवाई की अध्यक्षता विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन अरविंद कुमार और सदस्य संजय कुमार सिंह ने की। इस दौरान पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के एमडी शंभू कुमार और पावर कॉर्पोरेशन के मुख्य अभियंता ने प्रस्तुतीकरण दिया, लेकिन इसके बाद माहौल पूरी तरह बदल गया।


33122 करोड़ का सरप्लस, फिर भी बढ़ोतरी क्यों?

अवधेश वर्मा ने बताया कि प्रदेश के उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर 33122 करोड़ रुपये सरप्लस जमा है। ऐसे में बिजली दरों में 45 फीसदी की कमी होनी चाहिए, न कि बढ़ोतरी। उन्होंने कहा कि निजीकरण का मकसद घाटे की आड़ में मुनाफे वाली कंपनियों को चुनिंदा पूंजीपतियों को सौंपना है, जो उपभोक्ताओं के साथ अन्याय है।


निजीकरण की प्रक्रिया गलत और असंवैधानिक

उपभोक्ता परिषद ने सुनवाई में कहा कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 17 के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार को आयोग से पूर्व अनुमति लेनी थी, जो नहीं ली गई। इसके विपरीत धारा 131 से 134 तक का उपयोग किया जा रहा है, जो सिर्फ एक बार राजकीय विद्युत परिषद के विघटन के समय के लिए लागू की गई थीं। यह पूरे प्रस्ताव को ही कानून के विरुद्ध बनाता है।


कई आईएएस पर भ्रष्टाचार के आरोप, जल्द लगेगी हथकड़ी—उपभोक्ता परिषद

परिषद अध्यक्ष ने कहा कि कुछ नौकरशाह निजीकरण के पीछे सक्रिय हैं और उद्योगपतियों के साथ सांठगांठ करके भ्रष्टाचार कर रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि "जिस दिन सच्चाई सामने आएगी, उस दिन इन्हें हथकड़ी लगेगी।" उन्होंने बिहार का उदाहरण देते हुए कहा कि स्मार्ट मीटर घोटाले में बिहार के तत्कालीन ऊर्जा सचिव संजीव हंस को जेल जाना पड़ा था। वैसी ही स्थिति यूपी में बन रही है।


बिजली चोरी, जले ट्रांसफार्मर और दुर्घटनाओं का भी खुलासा

उपभोक्ता परिषद ने बताया कि पूर्वांचल में हर साल 1628 करोड़ की बिजली चोरी होती है। वर्ष 2022-23 में जहां 80 ट्रांसफार्मर जले, वहीं 2023-24 में यह संख्या 78 रही। यह तकनीकी अक्षमता और लापरवाही का उदाहरण है। वर्ष 2023-24 में 722 विद्युत दुर्घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें जान गंवाने वालों की संख्या 250 से अधिक बताई जा रही है।


मुआवजा अब तक क्यों नहीं मिला?

वर्ष 2022-23 में 18372, वर्ष 2023-24 में 51437 और वर्ष 2024-25 में 28509 उपभोक्ताओं को 30 दिन बाद कनेक्शन मिला, जो नियमानुसार मुआवजा योग्य है। बावजूद इसके किसी को भी मुआवजा नहीं दिया गया।


"बिजली नहीं है तो जवाब में मिलता है जय श्रीराम"

अवधेश वर्मा ने ऊर्जा मंत्री पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जब उपभोक्ता बिजली नहीं होने की शिकायत करते हैं, तो उन्हें जवाब मिलता है—“जय श्रीराम।” उन्होंने कहा, "क्या यही रामराज्य है?"


सरकारी बकाया 4489 करोड़, फिर घाटे की दुहाई क्यों?

उपभोक्ता परिषद ने खुलासा किया कि सरकारी विभागों पर पिछले तीन वर्षों में 4489 करोड़ रुपये का बकाया है और 8115 करोड़ की सब्सिडी अभी भी सरकार द्वारा विद्युत निगम को नहीं दी गई है। फिर यह कहना कि कंपनी घाटे में है—एक छलावा है। उन्होंने कहा कि कंपनियों ने उपभोक्ताओं से बकाया राशि के आधार पर लोन भी लिया है, जबकि यदि बकाया वसूला जाए तो बिजली कंपनियां लाभ में आ जाएंगी। उन्होंने तीखा आरोप लगाया कि “कुछ आईएएस अफसर निजीकरण के पीछे बुरी तरह फड़फड़ा रहे हैं, क्योंकि उन्हें उद्योगपतियों से सांठगांठ कर लाभ पहुंचाना है। आने वाले समय में इन्हीं अफसरों के हाथ में हथकड़ी होगी।” उन्होंने बिहार के पूर्व ऊर्जा सचिव संजीव हंस के जेल जाने का उदाहरण दिया।


छोटे दुकानदारों के लिए अलग स्लैब की मांग

परिषद ने मांग की कि जो छोटे उपभोक्ता 1 किलोवाट तक का कनेक्शन लेते हैं और 100 यूनिट तक बिजली खपत करते हैं, उनके लिए घरेलू श्रेणी में अलग स्लैब बनाया जाए, जिससे उन्हें बिजली चोरी के झूठे मामलों से बचाया जा सके। इसके बावजूद घाटे का हवाला देकर निजीकरण करना जनहित के साथ धोखा है।


जनसुनवाई में हुई उपभोक्ता एकजुटता

वाराणसी की जनसुनवाई में उपभोक्ता संगठनों ने न सिर्फ पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के खिलाफ आवाज उठाई, बल्कि आर्थिक, कानूनी और तकनीकी आधारों पर इसे गलत ठहराया। अब यह देखना होगा कि नियामक आयोग और राज्य सरकार इस विरोध को कैसे लेती है?  बनारस की यह सुनवाई इसलिए भी खास रही क्योंकि यह प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और ऊर्जा मंत्री—तीनों का साझा क्षेत्र है। बावजूद इसके निजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना सवालों के घेरे में है। परिषद अध्यक्ष ने कहा—"यदि उपभोक्ता परिषद संवैधानिक रूप से न लड़ रही होती, तो आज यहां अडानी का कोई प्रतिनिधि आयोग के मंच पर बैठा होता।"  पूर्वांचल के उपभोक्ताओं ने साफ कहा है कि अब वे चुप नहीं बैठेंगे। न निजीकरण बर्दाश्त किया जाएगा और न बिजली दरों में मनमानी बढ़ोतरी। जनसुनवाई में जो तथ्य सामने आए हैं, वे सरकार और आयोग दोनों के लिए चेतावनी हैं।


फैक्ट फोकस  

33122 करोड़ : उपभोक्ताओं का सरप्लस फिर भी बिजली महंगी क्यों?

45% : प्रस्तावित कटौती की मांग

4489 करोड़ : सरकारी विभागों का बकाया

8115 करोड़ : बकाया सब्सिडी सरकार से

722 विद्युत दुर्घटनाएं : सिर्फ 2023-24 में

7% : बिजली चोरी की दर पूर्वांचल में

जय श्रीराम” कहने वाले ऊर्जा मंत्री से उपभोक्ता परेशान 

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