पटना : मांग आज भी प्रासंगिक - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 24 जुलाई 2025

पटना : मांग आज भी प्रासंगिक

  • आवासीय भूमिहीनों को जमीन दिलाने एकता परिषद का गांधीवादी आंदोलन ग्वालियर से दिल्ली तक
  • जन सत्याग्रह, पी. वी. राजगोपाल के नेतृत्व में देशभर से हजारों लोगों की पदयात्रा होती थी

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पटना, (आलोक कुमार). आवासीय भूमिहीनों को न्यूनतम तीन डिसमिल भूमि दिलाने की मांग को लेकर जन संगठन एकता परिषद ने बीते दो दशकों में कई बड़े आंदोलनों का नेतृत्व किया है.इस आंदोलन की अगुवाई देश के वरिष्ठ गांधीवादी नेता पी. वी. राजगोपाल ने की, जिसका उद्देश्य था – शांतिपूर्ण सत्याग्रह के माध्यम से गरीबों और हाशिए पर खड़े समुदायों के भूमि अधिकार सुनिश्चित करना.


2007 से लगातार उठती रही आवाज

2007 में जनादेश यात्रा के नाम से पहला बड़ा अभियान शुरू हुआ, जिसमें देशभर के हजारों भूमिहीनों ने भाग लिया.इस अभियान के तहत सरकार से आवास और आजीविका के लिए भूमि देने की नीति तैयार करने की मांग की गई.


2012 में ‘जन सत्याग्रह’ बनी निर्णायक घड़ी

इस आंदोलन की सबसे अहम कड़ी 2012 में देखने को मिली, जब ग्वालियर से दिल्ली तक लगभग 50,000 लोगों ने पैदल मार्च किया। इसे जन सत्याग्रह का नाम दिया गया. शांतिपूर्ण पदयात्रा के इस आयोजन ने देश का ध्यान आकर्षित किया.अंततः केंद्र सरकार ने आंदोलनकारियों से बातचीत की और कुछ बिंदुओं पर सहमति जताई, जिसमें भूमि सुधार नीति, भूमिहीनों की पहचान और भूमि आवंटन की प्रक्रिया तेज करने के वादे शामिल थे.


2018 में ‘जनांदोलन’ के रूप में फिर उठी मांग

2018 में जनांदोलन के नाम से एक और चरण शुरू किया गया.इसमें फिर से भूमि अधिकार, वन अधिकार और आजीविका सुरक्षा को लेकर मांगें उठाई गई.यह आंदोलन भी पूरी तरह अहिंसात्मक रहा और गांधीवादी मूल्यों पर आधारित था.


गांधी के रास्ते पर राजगोपाल

पी. वी. राजगोपाल, जो कभी चंबल के डकैतों के पुनर्वास में सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं, ने जीवन भर अहिंसा और जन संगठन की ताकत को मजबूत किया.उनका मानना है कि भारत में भूमि के बिना न तो आत्मसम्मान संभव है और न ही स्थायी विकास.


मांग आज भी प्रासंगिक

एकता परिषद की प्रमुख मांग रही है कि हर भूमिहीन परिवार को कम-से-कम तीन डिसमिल भूमि आवास के लिए दी जाए.आज भी देश के कई हिस्सों में लाखों परिवार ऐसे हैं, जो बिना किसी वैध जमीन के बसे हैं.यह आंदोलन न केवल जमीन की मांग है, बल्कि गरिमा और अधिकार की भी मांग है. 

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