१-छरिए फर त गोछन वर
पेट खाली किंतु मुछों पर ताव
मुँह चिकना, पेट खाली
२-खर क्या जानी जफरानुक स्वाद?
गधा क्या जाने केसर का स्वाद?
बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद?
३-बेहन खोत बेगारय जान
(खाली)बैठने से बेगार अच्छी,
बेकार से बेगार भली
४-चूठिस बुछिय छु चूठ रंग रटान
सेब को देखकर सेब का रंग पकड़ता है।
खरबूजे को देखकर अरबूजा रंग पकड़ता है।
५-अपजिस छुन कुनि गौड़
झूठ का कहीं पर भी आदि-अन्त नहीं है।
झूठ के पांव कहां?
६-ओन दांद रावरि सासस दादस वथ
अन्धा बैल हजार बैलों की रह भटका देता है।
जिसका अगुआ अन्धों उसका लश्कर कुएं में।
७-मूलस द्रोत त पत्रन सग
मूल को काटे पत्तों को सीँचे
सीस कटे बालों की रक्षा
८-बिहित वोन्य पोन्य तोलि,
खाली बैठा बनिया तो भी पानी ही तोले।
बैठा-ठाला बनिया सेर-बांट ही तोले।
९-बोय बायिस पुशपनाह त बोय बायिस दुश्मनाह,
भाई–भाई का सहयोगी तो भाई–भाई का दुश्मन भी।
भाई बराबर प्रेमी नहीं,भाई बराबर बैरी नही।
१०-चेर पपनस त कूर पपनस छु न केंह ति लगान,
खूबानी पकते तथा पुत्री के बढ़ने में देर नहीं लगती है।
बेटी और ककड़ी की बेल बराबर।
११-गुरेन न पोशान त ल्येज फलेन चोब,
घोड़ों पर वश नहीं और लीद को पीटे।
धोबन पर बस न चले और गधिये के कान उमेठे।
१२-शिकसलद खच्यो वन,मक्ची फुटु दन
कर्महीन जंगल गया लकड़ियाँ काटने,कुल्हाडी का डंडा ही टूट गया।
कर्महीन खेती करे, बलद मरे या सूखा पड़े।
—डॉ० शिबन कृष्ण रैणा—

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