विशेष : कहावतें मानवता के अश्रु - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 30 जुलाई 2025

विशेष : कहावतें मानवता के अश्रु

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कहावत मानव-जीवन के अनुभवों की मार्मिक,सूत्रात्मक तथा सहज अभिव्यक्ति है।यह एक ऐसा सजीव तथा चुभता हुआ व्यवहारिक अनुभवसूत्र है जो जनता की देन और धरोहर है।कहावतों को मानवता के अश्रु भी कहा जाता है। दो भाषाओं की कहावतों के तुलनात्मक अध्ययन से मानवमन की विभिन्न प्रवृतियों,उसकी समानताओं,उसकी विषमताओं आदि का विश्लेषण कर सांस्कृतिक एकता के मूलभूत तत्वों को खोजा जा सकता है।देश-भेद के आवरण के पीछे मानव-स्वभाव एक है, इसकी पूरी-पूरी जाँच कहावतों के तुलनात्मक अध्ययन से संभव है। कश्मीरी भाषा में कहावतों का यथेष्ट भंडार है।सर चार्ज ग्रियर्सन के अनुसार कश्मीर कहावतों की भूमि है।यहाँ की बोलचाल में इनका विशेष प्राधान्य है।जीवन के प्रत्येक व्यवहार क्षेत्र में इनका प्रयोग किया जाता है।कश्मीरी तथा हिन्दी कहवतों के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर कतिपय मिलती-जुलती कहावतों का संचयन किया गया है।पढिये और आनंद लें:


१-छरिए फर त गोछन वर

    पेट खाली किंतु मुछों पर ताव

   मुँह चिकना, पेट खाली

२-खर क्या जानी जफरानुक स्वाद?

    गधा क्या जाने केसर का स्वाद?

   बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद?

३-बेहन खोत बेगारय जान

   (खाली)बैठने से बेगार अच्छी,

    बेकार से बेगार भली

४-चूठिस बुछिय छु चूठ रंग रटान

     सेब को देखकर सेब का रंग पकड़ता है।

    खरबूजे को देखकर अरबूजा रंग पकड़ता      है।

५-अपजिस छुन कुनि गौड़

     झूठ का कहीं पर भी आदि-अन्त नहीं है।

     झूठ के पांव कहां?

६-ओन दांद रावरि सासस दादस वथ

     अन्धा बैल हजार बैलों की रह भटका देता है।

     जिसका अगुआ अन्धों उसका लश्कर कुएं में।

७-मूलस द्रोत त पत्रन सग

     मूल को काटे पत्तों को सीँचे

     सीस कटे बालों की रक्षा

८-बिहित वोन्य पोन्य तोलि,

      खाली बैठा बनिया तो भी पानी ही तोले।

      बैठा-ठाला बनिया सेर-बांट ही तोले।

९-बोय बायिस पुशपनाह त बोय बायिस दुश्मनाह,

     भाई–भाई का सहयोगी तो भाई–भाई का दुश्मन भी।

     भाई बराबर प्रेमी नहीं,भाई बराबर बैरी नही।

१०-चेर पपनस त कूर पपनस छु न केंह ति लगान,

      खूबानी पकते तथा पुत्री के बढ़ने में देर नहीं लगती है।

      बेटी और ककड़ी की बेल बराबर।

११-गुरेन न पोशान त  ल्येज फलेन चोब,

      घोड़ों पर वश नहीं और लीद को पीटे।

      धोबन पर बस न चले और गधिये के कान उमेठे।

१२-शिकसलद खच्यो वन,मक्ची फुटु दन

      कर्महीन जंगल गया लकड़ियाँ काटने,कुल्हाडी का डंडा ही टूट गया।

      कर्महीन खेती करे, बलद मरे या सूखा पड़े।





—डॉ० शिबन कृष्ण रैणा—

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