विशेष : भारतीय सिनेमा का वैश्विक ब्रांड एम्बेसडर बन चुका है फिल्म "शोले" - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

विशेष : भारतीय सिनेमा का वैश्विक ब्रांड एम्बेसडर बन चुका है फिल्म "शोले"

  • "शोले की 50वीं जयंती, आज भी है दर्शकों के दिलों की धड़कन"

शोले के शूटिंग लोकेशन से "लाईव आर्यावर्त" की रिपोर्ट

बैंगलोर, विजय सिंह ,15 अगस्त ,2025 । 15 अगस्त 1975 को मुंबई के मिनर्वा थियेटर में रिलीज हुई बॉलीवुड मसाला फिल्म "शोले" इस वर्ष अपनी अप्रत्याशित सफलता की  50 वीं जयंती मना रही है, तब इस फिल्म के निर्माता निर्देशक, कलाकार , डायलॉग ,पटकथा लेखक ,गायक, संगीतकार और शोले फिल्म यूनिट के तमाम सदस्यों के साथ जिस स्थान पर शोले फिल्म की शूटिंग हुई थी, वह इलाका भी अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहा है। फिल्म के निर्देशक रमेश सिप्पी ने कई संभावित लोकेशन से इतर शोले की शूटिंग के लिए तब कर्णाटक की राजधानी बैंगलोर से लगभग 65  किलोमीटर दूर पहाड़ियों और जंगलों के बीच बसे एक छोटे से रिमोट गांव "रामनगरम" को चुना था। 1973 में शुरू हुई फिल्म की शूटिंग पूरे दो साल से कुछ ज्यादा चली और आज रामनगरम- रामदेवड़ा बेट्टा गांव , फिल्म को मिले प्यार और सफलता के साथ खुद पर भी गर्व महसूस कर प्रफुल्लित ,खिलखिलाता नजर आ रहा है। जहाँ 1973 में  एक झोपड़ी नुमा रेलवे स्टेशन हुआ करता था ,आज खूबसूरत,साफ़ सुथरा बेहतर स्टेशन खड़ा है और उसकी विकास गाथा अभी जारी ही है। बैंगलोर से रामनगरम पहुँचने के लिए कई ट्रेने, बस ,टैक्सी आदि सहज उपलब्ध हैं। ऐसे भी कर्णाटक सहित पूरे दक्षिण भारतीय राज्यों में सरकारी बस सेवा का जाल बिछा हुआ है और जो भी पर्यटक बैंगलोर या कर्णाटक घूमने आते हैं तो रामनगरम जाना उनकी लिस्ट में शामिल होता ही है। हमने भी स्वयं, शोले के पचास वर्ष पूर्ण होने पर, शूटिंग स्थल रामनगरम- रामदेवड़ा बेट्टा जाने का मन बनाया और पहुँच गए शोले के "रामगढ" यानि  बैंगलोर के उपनगर रामनगरम। फिल्म में निर्माता निर्देशक ने शूटिंग स्थल का नाम रामगढ़ ही रखा था। आज "रामगढ" में हर दिन लोगों का आना जाना लगा रहता है और छुट्टियों में तो पर्यटकों की अच्छी खासी भीड़ देखने को मिलती है। रामनगरम रेलवे स्टेशन से लगभग 10 किलोमीटर दूर राज्य उच्च पथ संख्या 3 से सटी फिल्म शोले के शूटिंग स्थल "रामदेवड़ा बेट्टा पहाड़ियों" की तलहटी में पहुंचते ही अजीब सी झनझनाहट दिलो दिमाग में छाती गई और अनायास ही शोले के डायलॉग स्मृति पटल पर जीवंत होकर स्वरबद्ध होकर कानों में गूंजने लगे -- "यहाँ से पचास-पचास कोस दूर गांव में, जब बच्चा रोता है, तो माँ कहती है, बेटा सो जा, सो जा नहीं तो गब्बर सिंह आ जाएगा .......।" 400 सीढ़ियां चढ़ कर पहाड़ी के ऊपरी तल पर विशालकाय शिलाओं के नजदीक पहुंचते ही स्वत: स्वर फूट पड़े - " कितने आदमी थे... " ..."अरे वो सांभा, बता तो कितना ईनाम रखे हैं, सरकार ने हम पर...।"


Film-sholey-location
यकीन मानिए, मुझ सहित, सच में ये डायलॉग, तमाम पर्यटकों पर हावी हो रहे थे I फिल्म रिलीज होने के 50 वर्ष गुजरने के बाद आज भी किसी फिल्म के दृश्य, डायलॉग, कलाकार ,शूटिंग स्थल यदि आज वहां मौजूद हर किसी के दिलो दिमाग पर छाये हुए हों, तो निसंदेह  यह एक स्वत: हिप्नोटिज्म जैसा ही कहा जा सकता है I मुझे  स्वयं एक अद्भुत खिंचाव महसूस हो रहा था। संभलपुर, उड़ीसा से काम की तलाश में कर्नाटक आए 24 वर्षीय दामन, बताते हैं कि शोले फिल्म उन्होंने डीवीडी, वीसीआर में देखी थी, और वह उन्हें बेहद पसंद है I पसंदीदा सीन के बारे में पूछने पर थोड़ा शर्माते हुए कहते हैं कि वीरू (धर्मेंद्र ) का पानी टंकी पर चढ़ कर " गांव वालों बसंती से मेरा लगन लगा था...." वाला सीन पसंद है। बैंगलोर के आई टी सेक्टर में काम करने वाले 25 वर्षीय अबरार, जो अपने साथियों के साथ आए थे, कहते हैं कि शोले की कहानी, गाने, डायलॉग के अलावा वीरू व जय, दो दोस्तों की कहानी ने उन्हें काफी  प्रभावित किया, इसलिए शूटिंग स्थल, रामनगरम की पहाड़ियां घूमने व ट्रैकिंग करने यहां पहुंचे हैं। रामनगरम के पास ही सुगुनाहल्ली निवासी नारायण बताते हैं कि जब फिल्म की शूटिंग शुरु हुई थी तब वे घर में बिना बताए यहां शूटिंग देखने आया करते थे और यूनिट के सदस्यों के साथ काम में सहयोग भी कर देते थे I पहाड़ियों के बीच स्थित श्री हनुमान मंदिर के युवा पुजारी किरण कहते हैं कि लोग शूटिंग की जगह और ट्रैकिंग के लिए शोले की पहाड़ियों में आते हैं, रील बनाते हैं और फिल्म के डायलॉग खुद बोलकर यहां पहाड़ में एक्टिंग करते हैं।


Film-sholey-location
सच में शोले के गब्बर यानि इस महत्वपूर्ण भूमिका को निभाने वाले, तब फिल्मों में काम की तलाश में भटकते, नवोदित कलाकार  35  वर्षीय अमजद खान ने, शोले में डाकू की ऐसी जीवंत भूमिका निभाई कि वह एक प्रतीक, एक मिशाल बन गयी और आज तक डाकू के रोल के लिए न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी गब्बर सिंह अर्थात अमजद खान एक मील का पत्थर माने जाते हैं। किसी भी फिल्म में एक रोल पाने की तलाश करते अपेक्षाकृत एक नवोदित कलाकार अमजद खान पर जब गब्बर सिंह के रोल के लिए निर्देशक रमेश सिप्पी ने फाइनल मुहर लगा दी, तब शायद स्वंय सिप्पी साहब ने भी यह नहीं सोचा होगा कि डाकू गब्बर सिंह का पात्र निभाने वाले अमजद खान इस रोल के लिए अपरिहार्य बन जाएंगे। जब फ़िल्म की शूटिंग शुरू हुई तो रामनगर के निवासी, सत्यनारायण (अब काफी वृद्ध हो चुके) बताते हैं कि शॉट देते समय अमजद खान इतने आत्मविश्वास के साथ अपना काम करते थे जैसे उनका जन्म या परवरिश डाकुओं के बीच ही हुआ हो और वे सच में डाकू हों। अगर हमारे पाठक फिल्म में भी अमजद खान की एक्टिंग को नोट करेंगें तो उन्हें गब्बर के रूप में परदे पर उनकी उपस्थिति ,डायलॉग बोलने, हंसने ,चलने का अंदाज,आदि एकदम एक डाकू की भूमिका को पूरी ईमानदारी और सिद्दत के साथ रूपांतरित करती दीख पड़ेगी। तभी तो आज तक दूसरा गब्बर हुआ ही नहीं। दुर्भाग्य से 12  नवम्बर 1940  को जन्में अमजद खान मात्र 51  वर्ष की उम्र में  27  नवंबर 1992  को दुनिया से रुखसत हो गए। ऑटो ड्राइवर वैंकटेश बताते हैं कि प्रतिदिन पर्यटक शूटिंग स्थान देखने,  ट्रैकिंग करने व छुट्टी मनाने यहां आते हैं पर सप्ताहांत में ज्यादा पर्यटक आते हैं I वे स्वीकारते हैं कि शोले की लोकप्रियता की वजह से लोग शूटिंग स्थल देखने घूमने आते हैं, इससे हमारी आमदनी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है I 85 वर्षीय सत्यनारायण स्वामी बताते हैं कि फिल्म निर्माण के दौरान काफी चहल पहल थी, फिल्म यूनिट के लोग काफी अच्छे थे और गांव वाले सुगमता से जाकर शूटिंग देख सकते थे और भागीदारी भी करते थे, जिससे कईयों को कुछ आमदनी भी हुई और कुछेक लोग बाद में सिनेमा उधोग में भी विभिन्न कामों में रोजगार पा सके I वे बताते हैं कि फिल्म के कलाकार लंबे समय तक रामनगरम में रहे, दिन में पहाड़ियों में  शूटिंग होती थी, जिसे तब रामगढ़ गांव के रूप में बसाया गया था  और अभिनेता व अन्य कलाकार रामनगरम के एक तत्कालीन बेहतर उपलब्ध होटल ( शायद होटल अशोक) में ही रहते थे। वे कहते हैं कि तब ज्यादा तामझाम नहीं था, कलाकारों से मिलना बहुत मुश्किल नहीं था।


कहते हैं कि "होईए सोई जो राम रचि राखा", जी, हाँ यही सच है। 

Film-sholey-location
रमेश सिप्पी ने डाकू के रोल के लिए पहले डैनी को चुना था परंतु उनके इन्कार के बाद अमजद खान को लिया गया। इसी तरह फिल्म में जय का पात्र निभाने के लिए निर्माता निर्देशक ने शत्रुघ्न सिन्हा को रोल ऑफर किया था परंतु शत्रुघ्न सिन्हा अन्य फिल्मों में व्यस्त होने की वजह से अंततः समय नहीं निकाल पाए और जय का रोल अमिताभ बच्चन को मिल गया I अबरार और दामन कहते हैं कि फिल्म में हर किसी का -चाहे वह धर्मेंद्र हों या अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, हेमामालिनी, अमजद खान, संजीव कुमार, असरानी, एके हंगल हों या जगदीप सभी का रोल अतुलनीय और कभी भी नहीं भूलने वाला रहा। 


फिल्म के पचास साल पूरे होने पर पिछले दिनों एक चैनल को दिए गए साक्षात्कार में अभिनेत्री हेमामालिनी ने शोले की सफलता पर बात करते हुए कहा कि शोले में शामिल सभी कलाकारों ने अविस्मरणीय भूमिका निभाई, इसीलिए दर्शकों ने उन्हें इतना प्यार दिया और आज भी शोले दर्शकों के दिलों पर राज कर रहा है। अमजद खान के बेटे शादाब खान ने भी शोले में उनके पिता द्वारा अभिनीत डाकू गब्बर सिंह की भूमिका को अतुलनीय करार दिया है। स्वयं शत्रुघ्न सिन्हा ने शोले में काम नहीं करने और ऑफर ठुकराने पर रजत शर्मा के आप की अदालत में अफसोस जाहिर किया था। बहरहाल, शोले के फिल्मी परदे पर अवतरित होने के पचास साल पूरे हो गए लेकिन रामनगरम व रामदेवड़ा बेट्टा निवासियों के मन में आज भी उसकी याद बिल्कुल ताजा है। "लाईव आर्यावर्त" और हमारे पाठकों की तरफ से शोले फिल्म के तमाम दर्शकों, निर्माता जीपी सिप्पी, निर्देशक रमेश सिप्पी सहित सभी कलाकारों को उनके अविस्मरणीय अभिनय व पचास वर्ष पूरे होने पर हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं।

कोई टिप्पणी नहीं: