कटिहार की घटना : धर्म की आड़ में हिंसा, संविधान पर प्रहार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 14 अगस्त 2025

कटिहार की घटना : धर्म की आड़ में हिंसा, संविधान पर प्रहार

Religon-and-violance
कटिहार, (आलोक कुमार). कटिहार जिले में टीवी टावर क्षेत्र में हुई घटना ने एक बार फिर हमारे समाज के सामने कई असहज प्रश्न खड़े कर दिए हैं.जानकारी के अनुसार, रविवार को प्रार्थना सभा के दौरान कुछ लोगों ने जबरन घुसकर आदिवासी समाज के शांतिपूर्वक प्रार्थना कर रहे लोगों पर हमला किया और उन पर धर्मांतरण का आरोप लगाया.यह सिर्फ एक हमला नहीं, बल्कि हमारे संवैधानिक मूल्यों और मानवीय गरिमा पर गहरा प्रहार है. हर रविवार चर्च में प्रार्थना होना एक सामान्य परंपरा है. इसमें भाग लेना किसी व्यक्ति के धर्म की स्वतंत्रता का हिस्सा है, जिसे भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 पूरी तरह से सुनिश्चित करता है.ऐसे में किसी को उसके धार्मिक विश्वास या उपासना पद्धति के आधार पर हिंसा का शिकार बनाना न सिर्फ असंवैधानिक है, बल्कि अमानवीय भी है. धर्म की रक्षा या सत्ता का खेल? जिन संगठनों का दावा है कि वे आदिवासी धर्म की रक्षा कर रहे हैं, उनसे एक सीधा सवाल है—जब आदिवासी समाज की बहन-बेटियों के साथ बलात्कार जैसी वीभत्स घटनाएँ होती हैं, तब ये संगठन कहाँ होते हैं? जब जंगलों से आदिवासियों को उजाड़ा जाता है और उनकी ज़मीनें छीनी जाती हैं, तब उनकी आवाज़ कौन उठाता है?जब आदिवासियों को उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित किया जाता है, तब ये तथाकथित संरक्षक किस कोने में छिपे रहते हैं?


यह दोहरापन बताता है कि वास्तविक मुद्दा धार्मिक आस्था की रक्षा नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करना है. भारत का धर्मनिरपेक्ष चरित्र खतरे में है.भारत एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश है. हमारे संविधान ने हर नागरिक को अपने धर्म का पालन करने, प्रचार करने और अपने विश्वास के अनुसार जीवन जीने का अधिकार दिया है.लेकिन जब किसी की पहचान के आधार पर उस पर हमला किया जाता है, तो यह सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला नहीं, बल्कि पूरे संवैधानिक ढाँचे पर चोट है. ऐसी घटनाएँ समाज को बांटती हैं, घृणा फैलाती हैं और अंततः देश को कमजोर करती हैं.हमें याद रखना होगा कि धर्म की रक्षा हिंसा से नहीं, न्याय और संवेदनशीलता से होती है. सरकार और प्रशासन को ऐसे मामलों में कठोर और निष्पक्ष कार्रवाई करनी चाहिए.दोषियों को सख्त सज़ा मिले, ताकि यह संदेश जाए कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.साथ ही, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आदिवासी समुदाय के अधिकारों और गरिमा की रक्षा केवल कागज़ों में नहीं, बल्कि ज़मीन पर भी हो. भारत तभी मजबूत रहेगा जब हम धर्म के नाम पर हिंसा के बजाय संविधान की मर्यादा का सम्मान करेंगे.

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