गोड्डा : एनकाउंटर या हत्या? , सूर्या हांसदा प्रकरण पर उठते सवाल और सियासी संग्राम - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 19 अगस्त 2025

गोड्डा : एनकाउंटर या हत्या? , सूर्या हांसदा प्रकरण पर उठते सवाल और सियासी संग्राम

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गोड्डा, (आलोक कुमार)। क्या यह कानून की जीत है या न्याय की हत्या? आदिवासी नेता सूर्या हांसदा की मौत ने झारखंड की राजनीति को झकझोर कर रख दिया है। 10 अगस्त की शाम गोड्डा जिले के ललमटिया गांव में हुई पुलिस कार्रवाई को प्रशासन ‘एनकाउंटर’ कह रहा है, लेकिन हकीकत इससे उलट भी हो सकती है। यही वजह है कि सवालों का अंबार लग गया है और अब मामला गरमाने वाला है। प्रदेश भाजपा ने सूर्या हांसदा के प्रकरण को सियासी मुद्दा बना लिया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने सात सदस्यीय टीम गठित की, जो 17 अगस्त को मृतक के गांव पहुंची। टीम में पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, पूर्व मंत्री अमर बाउरी, रणधीर सिंह, पूर्व सांसद सुनील सोरेन, पूर्व विधायक भानु प्रताप शाही और अन्य नेता शामिल रहे। इस शिष्टमंडल ने हांसदा के परिजनों से मुलाकात की और घटनाक्रम की जानकारी ली। भाजपा ने साफ कर दिया है कि यह सिर्फ एक आदमी की मौत नहीं, बल्कि एक विचारधारा की हत्या है। प्रदेश भाजपा के मीडिया प्रभारी शिवपूजन पाठक ने पुलिस प्रशासन पर सीधा वार करते हुए कहा—“जो समाज के रक्षक हैं, वे ही जब जल्लाद बन जाएं, तो न्याय की उम्मीद किससे की जाए?”उन्होंने आरोप लगाया कि यह घटना एनकाउंटर के नाम पर ठंडी सांसों में दबी हुई एक साजिश है।


भाजपा ने यह संकेत भी दे दिया है कि आने वाले विधानसभा मानसून सत्र में यह मामला गूंजेगा। न केवल सदन में हंगामा होगा, बल्कि राज्यपाल से मिलकर सीबीआई जांच की मांग भी रखी जाएगी। भाजपा का दावा है कि अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में गांव जाकर जो तथ्य सामने आए हैं, वे इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह मुठभेड़ नहीं, हत्या है। सूर्या हांसदा कोई आम नाम नहीं थे। आदिवासी समाज में उनकी अपनी हैसियत थी। वे बच्चों को मुफ्त शिक्षा और आवास देने वाला स्कूल चलाते थे। हालांकि, उनका आपराधिक रिकॉर्ड भी लंबा था— हत्या, अपहरण, रंगदारी और दंगा फैलाने के 25 मामले दर्ज थे। राजनीति में भी उन्होंने कई रंग बदले, झारखंड विकास मोर्चा से भाजपा तक का सफर तय किया और 2019 का विधानसभा चुनाव भी लड़ा। परंतु सवाल यह है कि कानून के नाम पर क्या किसी को गोलियों से भून देना न्याय है? क्या पुलिस सचमुच मजबूर थी या पर्दे के पीछे कोई और खेल चल रहा है? एनकाउंटर के नाम पर सच छुपाने की कोशिश क्यों? यह सिर्फ एक एनकाउंटर नहीं, लोकतंत्र और न्याय की कसौटी पर खड़ा एक बड़ा सवाल है।सरकार को चाहिए कि सीबीआई जांच कराए और सच्चाई सामने लाए, क्योंकि सच को जितना दबाओगे, वह उतनी ही ताकत से बाहर आएगा।

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