वाराणसी : बीएचयू ट्रॉमा सेंटर : इलाज से पहले बेबसी का दर्द, टूटा कमोड, उखड़े दरवाजे, गायब वॉशबेसिन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 18 सितंबर 2025

वाराणसी : बीएचयू ट्रॉमा सेंटर : इलाज से पहले बेबसी का दर्द, टूटा कमोड, उखड़े दरवाजे, गायब वॉशबेसिन

  • मनोविज्ञान वार्ड की बदहाली, मरीज और परिजन परेशान, शिकायतों पर खामोश प्रशासन
  • बीएचयू की साख पर गहरा सवाल : बुनियादी सुविधाएं नदारद : शिकायतों पर चुप प्रशासन, दुनिया को चिकित्सा का पाठ पढ़ाने वाला संस्थान, खुद जर्जर वार्डों का कैदी

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वाराणसी (सुरेश गांधी). काशी हिंदू विश्वविद्यालय का नाम चिकित्सा शिक्षा और शोध का मानक माना जाता है। मगर इसी नामचीन संस्थान के ट्रॉमा सेंटर के मनोविज्ञान वार्ड की हकीकत उस मानक का मज़ाक उड़ाती है। यहां न इलाज की सहजता दिखती है, न ही मानवीय गरिमा का सम्मान। वार्ड की स्थिति भयावह है. कहीं कमोड टूटा पड़ा है, कहीं दरवाजे गायब, तो कई कमरों में वॉशबेसिन तक उखड़ा हुआ। मरीज और परिजन शौचालय और स्नान जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए अस्पताल के बाहर सुलभ शौचालय का रुख करने को मजबूर हैं। यह मानसिक रूप से पीड़ित लोगों के लिए अपमान और अतिरिक्त कष्ट दोनों है।


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सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यहां विभिन्न प्रकृति के मनोवैज्ञानिक रोगियों, अवसाद, सिज़ोफ्रेनिया, उन्माद या गहरे आघात से गुजरने वाले, सभी को एक ही वार्ड और लगभग एक ही श्रेणी में रख दिया गया है। अलग-अलग जरूरतों वाले मरीजों को एक साथ ठूंस देना न केवल चिकित्सा विज्ञान के सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि कई मामलों में खतरनाक भी हो सकता है। ऐसे माहौल में जिन मरीजों को शांति, निजता और विशिष्ट देखभाल चाहिए, वे भय, असुरक्षा और असुविधा का शिकार हो रहे हैं। शिकायतें बार-बार हुईं, पर प्रशासन अब तक कानों में तेल डाले बैठा है। करोड़ों की योजनाएं और ऊंचे दावे कागजों पर चमकते हैं, लेकिन एक शौचालय ठीक कराने, वार्डों की श्रेणीकरण व्यवस्था सुधारने और न्यूनतम मानवीय गरिमा सुनिश्चित करने की फुर्सत किसी को नहीं। यह केवल लापरवाही नहीं, संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। बीएचयू को तुरंत कदम उठाते हुए वार्ड की मरम्मत, शौचालय व्यवस्था और मरीजों के लिए अलग-अलग श्रेणीकरण की वैज्ञानिक व्यवस्था करनी चाहिए। अन्यथा यह बदनामी न सिर्फ बीएचयू की प्रतिष्ठा को कलंकित करेगी, बल्कि पूरे चिकित्सा तंत्र पर प्रश्नचिन्ह लगाएगी।


विशेषज्ञों का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य का इलाज वहां शुरू होता है, जहां इंसान को सम्मान और सुरक्षित वातावरण मिले। बीएचयू को याद रखना चाहिए, बिना संवेदना के कोई उपचार पूरा नहीं होता। हद नहीं तो और क्या है? मरीजों और उनके साथ आए परिजनों को शौचालय व स्नान जैसी बुनियादी सुविधा न मिलने के कारण अस्पताल परिसर के बाहर बने सुलभ शौचालय का सहारा लेना पड़ रहा है। इससे न केवल गंभीर रूप से बीमार मरीजों को अतिरिक्त कष्ट उठाना पड़ रहा है, बल्कि साफ-सफाई और संक्रमण का खतरा भी बढ़ गया है। परेशान परिजनों ने अस्पताल प्रशासन से कई बार शिकायत की, मगर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। मरीजों का कहना है कि बड़े संस्थान और नामी विश्वविद्यालय के अस्पताल में ऐसी स्थिति स्वास्थ्य सेवाओं की लापरवाही को उजागर करती है। स्थानीय लोगों का आग्रह है कि अस्पताल प्रबंधन तुरंत वार्ड की मरम्मत कर मरीजों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराए, ताकि मानसिक स्वास्थ्य का उपचार लेने आए लोग और उनके परिजन स्वच्छ व सुरक्षित वातावरण में रह सकें।

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