- माले व अखिल भारतीय किसान महासभा का 22 सितंबर को राज्यव्यापी प्रदर्शन
- जमीन न होने का बहाना बनाकर 2600 स्कूलों का मर्जर, अडानी को जमीन ही जमीन
- बिहार सरकार को सालाना 5 हजार करोड़ का होगा नुकसान, पर्यावरण की तबाही अलग

पटना 21 सितंबर (रजनीश के झा)। आज पटना में माले विधायक रामबलि सिंह यादव, किसान महासभा के नेता शिवसागर शर्मा व राजेन्द्र पटेल ने भागलपुर में अडानी को पावर प्लांट के लिए दी जा रही जमीन से संबंधित अपनी जांच रिपोर्ट पेश की. इस टीम में इन नेताओं के अलावा आरा के सांसद का. सुदामा प्रसाद, भागलपुर के जिला सचिव महेश यादव, किसान नेता रणधीर यादव, विंदेश्वरी मंडल, रणवीर कुशवाहा और संजीव कुमार शामिल थे जिन्होंने 18 सितंबर को वहां दौरा किया था और पूरे मामले की सघन जांच की थी। 1 रुपये प्रति वर्ष के हिसाब से अडाणी को भागलपुर पावर प्लांट में 1050 एकड़ जमीन सरकार ने 30 सालों के लिए दे दी है और 6 रु. प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदने का एग्रीमेंट किया है. ठीक यही बात झारखंड के गोड्डा पावर प्लांट के लिए एमओयू करते वक्त रघुवर सरकार की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा और अडाणी ग्रुप के सीईओ राजेशचंद्र झा ने 12 दिसंबर 2017 को कही थी (बिजनस स्टैंडार्ड). सच्चाई लेकिन इसके ठीक विपरीत निकली. अडानी ग्रुप जो दावा करता भी है, वह झूठ का पुलिंदा होता है. एक अनुमान के मुताबिक बिहार सरकार को सालाना 5000 करोड़ रु. का नुकसान होगा यदि वह 6 रु. प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदती है. गोड्डा का उदाहरण हम सबके सामने है. वहां अडानी के धोखे के खिलाफ आंदोलन जारी है. बिहार इस धोखे को कबूल नहीं करेगा। भागलपुर में अडाणी के पावर प्रोजेक्ट के नाम पर मोदी-नीतीश डबल ठगी की तैयारी कर रहे हैं. एक ओर तो वे फसली जमीन छीन कर अडाणी को सौंप रहे हैं और गंगा के पानी का औद्योगिक दोहन से बिहार के पूर्वांचल में नया जल संकट पैदा करेंगे. प्लांट के निर्माण में 10000-12000 मजदूरों की बात की जा रही है. जाहिर है, अस्थायी और अल्पकालिक ठेका श्रम की बात कर रहे हैं. संचालन काल में 3000 नौकरी की बात की जा रही है. सच्चाई यह है कि इस मामले में स्थानीय लोगों को बिरले ही मौका मिलता है. बिहार की जनता मोदानी को आंखों में धूल झोंक कर भागने का मौका नहीं देगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अडानी समूह द्वारा बनाए जा रहे पावर प्लांट के लिए शिलान्यास किया. इस दौरान भाजपा विधायक ललन पासवान ने किसानों को धमकी दी और जमीन खाली करने के लिए कहा. उन्होंने यह भी दावा किया कि इस परियोजना से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा. शिलान्यास के वक्त भी सरकार को किसानों के विरोध का अंदेशा था. इसलिए दो दिन पहले उज्जवला गांव निवासी मुखिया दीपक सिंह (हरिन कोल पंचायत ) को एक फर्जी मुकदमें में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. जिला प्रशासन और भाजपा नेताओं-कार्यकर्ताओं ने गाँवो में घूम-घूम कर ऐसा माहौल बनाया और लोगों को यह धमकी भी दी कि इस बगीचा अथवा जमीन के इर्द-गिर्द भी अगर कोई बाहरी व्यक्ति दिखा तो उसके साथ ही दिखाने वालों को भी जेल भेज दिया जायेगा. ऐसी ही धमकी भरा प्रचार कुछ पत्रकारों द्वारा भी किया जा रहा है। इस जमीन पर 10 लाख से अधिक पेड़ हैं. ये पेड़ आम, अमरुद, लीची, शीशम, महोगनी, सखुआ तथा सागवान आदि के हैं. इसके बाद जो जमीन खाली है उसमें ईख की फसल लगी हुई है. यह जमीन 7 पंचायतों के अंतर्गत 76 गांव टोलों के करीब 1200 किसानों की है. इसमें बड़ी जोतवाले कुछ किसान भी हैं लेकिन बड़ी संख्या में छोटी जोतवाले गरीब किसान हैं. जो यादव जाति से तथा दलित, आदिवासी व मुस्लिम समुदाय से आते है।
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