भविष्य के युद्ध तोप और टैंकों से नहीं, इन्हीं माइक्रोचिप्स से लड़े जाएंगे। माइक्रोचिप्स आधुनिक तकनीक का आधार हैं। स्मार्टफोन से लेकर मिसाइलों तक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) से लेकर ड्रोन तक, हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वैश्विक सेमीकंडक्टर बाजार 2025 में 600 अरब डॉलर का हो चुका है और 2030 तक इसके 1,000 अरब डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है। यही सेमीकंडक्टर उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया में और ऊंचे स्थान पर ले जाएगा। यही वजह है कि चिप निर्माण के इको सिस्टम को और मजबूत बनाने के लिए सरकार इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (आइएसएम) के दूसरे चरण के लिए काम कर रही है। इसके तहत स्वीकृत परियोजनाओं की संख्या अब 10 हो गई है, जिनमें छह राज्यों में चिप से जुड़े पूरे इको सिस्टम को कवर किया जाएगा और इंसेंटिव भी दिए जाएंगे। पहले चरण के तहत भारत सरकार ने सेमीकंडक्टर से जुड़े प्लांट को 75,000 करोड़ से अधिक के इंसेंटिव देने का प्रविधान किया था। इनमें से 65,000 करोड़ चिप के निर्माण तो 10,000 करोड़ मोहाली स्थित सेमीकंडक्टर प्रयोगशाला के आधुनिकीकरण के लिए आवंटित किए गए। इन यूनिटों में आटो सेक्टर से लेकर बिजली, इलेक्ट्रानिक्स, उपभोक्ता वस्तु व रक्षा सभी जगह पर इस्तेमाल होने वाले चिप का निर्माण होगा। फ़िलहाल 28 स्टार्टअप चिप डिजाइनिंग के सेक्टर में काम कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मांग के आधार पर इनको पूरा प्रोत्साहन भी मिल रहा है। चिप निर्माण एक बेहद जटिल प्रक्रिया है। चिप निर्माण में 500 केमिकल्स और 50 प्रकार की गैसों का उपयोग होता है और इन सभी के निर्माण के लिए भारत में फैक्ट्रियां लगाई जा रही हैं। भविष्य में चिप निर्माण से जुड़ी मशीनें भी भारत में बनेंगी। अभी विक्रम 3201 की साइज़ तुलनात्मक रूप से काफी बड़ी कही जा सकती है लेकिन यह चिप आम जनता के लिए नहीं, अंतरिक्ष यानों और रक्षा संबधी उपकरणों के प्रयोजन की है।
वर्तमान में सबसे छोटी साइज की सेमीकंडक्टर चिप 2 नैनोमीटर की है। इसे ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी द्वारा बनाई जा रही है। हालांकि 2 नैनोमीटर नैनोशीट तकनीक पर आधारित दुनिया की पहली चिप का प्रोटोटाइप आईबीएम ने तैयार किया। यह चिप 50 बिलियन ट्रांजिस्टर को एक नाखून के आकार के चिप में समेट सकती है और यह आज की 7 नैनोमीटर चिप्स की तुलना में 45 प्रतिशत से अधिक प्रदर्शन और 75 फीसदी कम ऊर्जा खर्च करती है।
भारत में भी छोटी चिप्स के विकास की दिशा में प्रगति हो रही है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु एंग्स्ट्रॉम-स्केल (लगभग 0.1 नैनोमीटर) चिप विकसित करने पर काम कर रहा है, जो मौजूदा 2 नैनोमीटर चिप्स से भी 10 गुना छोटी होगी। यह परियोजना अभी प्रारंभिक चरण में है। भारत में ही रेनेसास इलेक्ट्रॉनिक्स (जापान) नोएडा और बेंगलुरु में 3 नैनोमीटर चिप डिजाइन पर काम कर रही है। इस प्रकार, चिप निर्माण का पूरा इको सिस्टम हजारों रोजगार के अवसर पैदा करेगा और दुनिया को कुशल श्रमिकों की सप्लाई करेगा। बावजूद इसके, अभी भारत को बहुत लंबा सफ़र तय करना है। क्योंकि वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग पर ताइवान, अमेरिका, दक्षिण कोरिया, चीन और जापान का वर्चस्व है। भारत अभी इस दौड़ में नया है और उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी मात्र 0.1 फीसदी है। भविष्य के लिए भारत की योजनाएँ बहुत महत्वाकांक्षी हैं, जिसमें 2030 तक अपने बाजार को 100 बिलियन डॉलर तक पहुँचाना और वैश्विक आपूर्ति शृंखला में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में उभरना शामिल है। अब सरकारी समर्थन और बड़े पैमाने पर निवेश से भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र के तेजी से विकास की उम्मीद बंधी है। भारत में इंजीनियरिंग, विज्ञान और गणित में हर वर्ष 25 लाख से अधिक युवा ग्रेजुएट होते हैं जोकि किसी अन्य देश की तुलना में काफी अधिक है। जाहिर है,ये युवा हो ‘डिजिटल डायमंड’के माध्यम से भारत को वैश्विक शक्ति बनाने का दम रखते हैं।
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