- काशी को नई उड़ान : हरदीप पुरी ने दी योजनाओं को मार्च 2026 तक पूरा करने का लक्ष्य
- “गंगा किनारे बढ़ता काशी का कद : दिशा समिति ने दिखाया भविष्य का नक्शा
पुरी ने स्पष्ट निर्देश दिया कि जल जीवन मिशन के अंतर्गत निर्माणाधीन 531 परियोजनाएं हर हाल में मार्च 2026 तक पूरी हों। उन्होंने सड़कों की मरम्मत और जल आपूर्ति के साथ-साथ “फ्लोटिंग जनसंख्या” यानी प्रतिदिन आने-जाने वाले लाखों लोगों को भी योजना में शामिल करने का सुझाव देकर वाराणसी के बदलते स्वरूप पर दूरदृष्टि दिखाई। बता दें, काशी की पहचान केवल घाटों और मंदिरों तक सीमित नहीं रही। यह शहर अब देश की विकास गाथा का धड़कता अध्याय है। दिशा समिति की यह बैठक हमें याद दिलाती है कि योजनाएं केवल बजट और समय-सीमा से पूरी नहीं होतीं; उनमें जनसहभागिता, पारदर्शिता और निरंतर निगरानी अनिवार्य है। मतलब साफ है विकास केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर नागरिक का साझा संकल्प है। गंगा की तरह बहती यह प्रक्रिया तभी सार्थक होगी जब हम सब मिलकर इसकी धारा को स्वच्छ, संतुलित और निरंतर बनाए रखें।
आंकड़ों के पीछे मेहनत और उम्मीद
जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार ने प्रस्तुति में बताया कि जिले में 96 योजनाओं पर कार्य चल रहा है। मनरेगा से लेकर प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, ई-नाम और पीएम स्वनिधि जैसी योजनाओं की प्रगति उल्लेखनीय है। 20 किस्तों में 3.05 लाख किसानों को 897 करोड़ रुपये से अधिक की सहायता, 55,674 स्ट्रीट वेंडर्स को स्वनिधि का लाभ और 3,952 बच्चों को बाल संरक्षण योजना के तहत सहयोगकृये आंकड़े केवल संख्याएं नहीं, बल्कि बदले हुए जीवन की कहानियां हैं।
जनता की भागीदारी ही असली सफलता
बैठक में जनप्रतिनिधियों ने फसल क्षति पर मुआवजा बंटाईदारों और कॉन्ट्रैक्ट किसानों तक पहुँचाने की मांग रखी। यह पहल याद दिलाती है कि विकास केवल सरकारी खाका नहीं, बल्कि जनता की ज़रूरतों और सुझावों से ही सार्थक होता है। प्रधानमंत्री आवास योजना में “सभी पात्र लाभार्थियों को आच्छादित करने” का दोहराया गया संकल्प इसी भावना का विस्तार है।
काशी के लिए भविष्य का संकल्प
वाराणसी आज केवल धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर नहीं, बल्कि आधुनिक शहरी विकास का प्रयोगशाला बन चुकी है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, स्वच्छ भारत, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, अटल मिशन, विरासत शहर योजना जैसी योजनाएं यहां एक साथ गति पकड़ रही हैं। हरदीप सिंह पुरी का यह कथन कि “2014 तक देश में केवल 14 फीसदी वेस्ट प्रोसेसिंग थी, जो अब 80 फीसदी तक पहुंच चुकी है” इस बदलाव का राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य भी सामने रखता है।

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