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शनिवार, 13 सितंबर 2025

विचार : अमेरिका में भारतीय समुदाय निशाने पर

Chetan-anand
वाशिंग मशीन के मामली विवाद पर योरडानिस कोबोस मार्टिनेज नाम के व्यक्ति ने भारतीय मूल के पचास वर्षीय चंद्रमौली की कुल्हाड़ी से गरदन काट दी। इसके बाद से अमेरिका में एक बार फिर भारतीय समुदाय की सुरक्षा का मुद्दा गरमा गया है। हालांकि अमेरिका इसे मात्र कैपिटल मर्डर का  मामूली अपराध मान रहा है और इसे पूर्व नियोजित हत्या की श्रेणी में लाकर इसकी जांच में जुटा है। लेकिन अमेरिका की इस प्रकार की बचकाना हरकत से भारत में काफी उबाल है। अमेरिका को दुनिया का सबसे विकसित लोकतंत्र और बहुलतावादी समाज माना जाता है। यहाँ विभिन्न देशों से आए प्रवासी न केवल रहते हैं, बल्कि राजनीति, शिक्षा, विज्ञान और व्यवसाय में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। भारतीय मूल के लोग भी अमेरिका के सबसे सफल समुदायों में गिने जाते हैं। फिर भी पिछले कुछ वर्षों में एक चिंताजनक प्रवृत्ति सामने आई है। भारतीयों और व्यापक दक्षिण एशियाई समुदाय के खिलाफ बढ़ते भेदभाव, नफ़रत अपराध और हिंसा। आइये, इसे आँकड़ों, घटनाओं और सामाजिक परिप्रेक्ष्य के साथ समझने का प्रयास करें।


भारतीय समुदाय की स्थिति

2020 की अमेरिकी जनगणना के अनुसार, अमेरिका में लगभग 48 लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं, जो एशियाई अमेरिकियों का एक बड़ा हिस्सा हैं। भारतीय अमेरिकी उच्च शिक्षा, आईटी और स्वास्थ्य सेवाओं में सबसे आगे माने जाते हैं। परन्तु सफलता के बावजूद यह समुदाय भी नस्लीय और धार्मिक पूर्वाग्रह का शिकार होता रहा है। पिउ रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट (2024) बताती है कि 50 प्रतिशत भारतीय अमेरिकी वयस्कों ने कभी न कभी नस्ल या राष्ट्रीयता आधारित भेदभाव का अनुभव किया। यह आंकड़ा इस धारणा को तोड़ता है कि “सफल” प्रवासी समुदाय अपने आप सुरक्षित है। लगभग 43 प्रतिशत दक्षिण एशियाई वयस्कों ने भेदभाव या नफ़रत आधारित घटनाओं का अनुभव किया। रिपोर्ट में मंदिरों और गुरुद्वारों पर वैंडलिज़्म, सार्वजनिक स्थानों पर अपमानजनक टिप्पणियाँ और सोशल मीडिया पर नफ़रत भरे संदेश प्रमुख रूप से दर्ज किए गए। यहूदी और मुस्लिमों के बाद सिख समुदाय धार्मिक आधार पर तीसरे सबसे अधिक निशाने पर रहा। हिंदुओं के खिलाफ लगभग 25 घटनाएँ रिपोर्ट की गईं। एंटी एंड एशियन घटनाओं की कुल संख्या 2021-23 के बीच लगातार ऊँची बनी रही।


राज्यवार तस्वीर

1-कैलिफ़ोर्निया-स्टॉप एप्पी हेट की 2024 रिपोर्ट के अनुसार, कैलिफ़ोर्निया में लगभग आधे एप्पी वयस्कों ने किसी न किसी रूप में नफ़रत का सामना किया। वहां की हेल्पलाइन को 2023-24 में लगभग 2000 से अधिक कॉल्स प्राप्त हुए, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा हिंदू और सिख समुदाय से संबंधित था। फ्रीमोंट, सैन जोस और लॉस एंजेलिस जैसे शहरों में मंदिर तोड़फोड़ और ग्रैफिटी की घटनाएँ सामने आईं।

2. न्यूयॉर्क-न्यूयॉर्क सिटी में 2023 नफरती अपराध में ऊपर की ओर रुझान दिखा। यहूदी और मुस्लिम समुदायों के बाद एशियाई मूल के लोग भी कई बार निशाने पर आए। कई मामलों में भारतीय रेस्त्रां मालिकों और दुकानदारों के साथ भेदभावपूर्ण दुर्व्यवहार दर्ज किया गया।

3. न्यू जर्सी-न्यू जर्सी अटॉर्नी जनरल की 2023 की रिपोर्ट में बाइस एंड इंसीडेंट्स में तेज़ वृद्धि दर्ज की गई। भारतीय और दक्षिण एशियाई समुदाय से जुड़े दर्जनों मामले रिपोर्ट हुए, जिनमें जातीय टिप्पणी और कार्यस्थल पर भेदभाव शामिल था।

4. टेक्सास-टेक्सास डिपार्टमेंट ऑफ़ पब्लिक सेफ़्टी की रिपोर्ट (2023) में कई घटनाएँ दर्ज हुईं, हालांकि कुल संख्या कैलिफ़ोर्निया और न्यूयॉर्क से कम थीं। यहाँ मुख्यतः डलास और ह्यूस्टन क्षेत्रों में भारतीयों के खिलाफ घटनाएँ सामने आईं।

5. वॉशिंगटन-सिएटल और उसके आसपास किए गए सर्वे में बड़ी संख्या में एशियाई अमेरिकियों ने असुरक्षा की भावना व्यक्त की। वॉशिंगटन राज्य सरकार ने 2024 में विशेष हेट क्राइम हेल्पलाइन शुरू की, ताकि पीड़ित सीधे रिपोर्ट कर सकें।


प्रमुख घटनाएँ

1-ओलाथे, कंसास शुटिंग (2017)ः भारतीय अभियंता श्रीनिवास कुचिभोटला की हत्या, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा।

2-कैलिफ़ोर्निया मंदिर वैंडलिज़्म (2023-24), कई हिंदू मंदिरों पर तोड़फोड़ और अपमानजनक नारे लिखे गए।

3-मैकडॉनल्ड्स हमला (कैलिफ़ोर्निया, 2024), एक दक्षिण एशियाई माँ और बेटी पर नस्लीय टिप्पणी के बाद शारीरिक हमला हुआ। आरोपी पर हेट क्राइम का मुकदमा चला।


कारण और पृष्ठभूमि-विशेषज्ञों के अनुसार इन घटनाओं के पीछे कई कारण काम कर रहे हैं। पहली, आर्थिक प्रतिस्पर्धा। भारतीयों की सफलता से यह धारणा बनती है कि वे “अमेरिकी नागरिकों की नौकरियाँ छीन रहे हैं।” दूसरी, राजनीतिक बयानबाज़ी। कुछ राजनीतिक समूह प्रवासियों के खिलाफ नकारात्मक प्रचार करते हैं। तीसरी, धार्मिक व सांस्कृतिक पहचान। सिखों की पगड़ी या हिंदुओं के धार्मिक प्रतीक उन्हें तुरंत “अलग” बना देते हैं, जिससे वे निशाना बनते हैं। चौथी, सोशल मीडिया। ऑनलाइन नफ़रत और ट्रोलिंग ने वास्तविक जीवन में हिंसा को बढ़ावा दिया है। समुदाय की प्रतिक्रिया-भारतीय और दक्षिण एशियाई संगठन लगातार आवाज़ उठा रहे हैं। सिख कॉयलीशन और हिन्दू-अमेरिकन फाउंडेशन ने सरकार से अधिक सख़्त क़ानूनी कार्रवाई की माँग की है। सामुदायिक स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम और सुरक्षा उपाय अपनाए जा रहे हैं। कई भारतीय मूल के सांसद और स्थानीय नेता सार्वजनिक मंचों पर इन घटनाओं की निंदा कर चुके हैं। 


समाधान की दिशा-सख्त कानून और रिपोर्टिंग हो। राज्य सरकारों को हेट क्राइम रिपोर्टिंग सिस्टम और अधिक पारदर्शी बनाना होगा। शिक्षा और जागरूकता पर ध्यान दिया जाए। स्कूल और कॉलेज स्तर पर बहुलतावाद और विविधता की शिक्षा को बढ़ावा देना ज़रूरी है। समुदाय की भागीदारी तय हो। भारतीय समुदाय को स्थानीय राजनीति और प्रशासन में और सक्रिय होना होगा। मीडिया की भूमिका अहम है। मीडिया को भी इन घटनाओं की लगातार रिपोर्टिंग करनी चाहिए, ताकि समस्या दब न जाए। भारतीय मूल के लोग अमेरिका के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का अहम हिस्सा हैं। लेकिन उनके खिलाफ बढ़ते हमले और भेदभाव लोकतांत्रिक मूल्यों पर सवाल खड़ा करते हैं। आँकड़े और घटनाएँ बताती हैं कि समस्या वास्तविक और गहरी है। समाधान केवल क़ानून से नहीं, बल्कि समाज में स्वीकृति और सहिष्णुता की संस्कृति विकसित करने से ही संभव होगा। भारतीय समुदाय की सफलता को नकारात्मक दृष्टि से नहीं, बल्कि अमेरिका की प्रगति में योगदान के रूप में देखना चाहिए। तभी यह देश वास्तव में “विविधता में एकता” का उदाहरण बन सकेगा।





लेखक

डॉ. चेतन आनंद

(कवि एवं पत्रकार)

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