वाराणसी : काशी का नया आमंत्रण : तीर्थ से पर्यटन की विश्वयात्रा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 4 सितंबर 2025

वाराणसी : काशी का नया आमंत्रण : तीर्थ से पर्यटन की विश्वयात्रा

  • गंगा की लहरों पर संस्कृति, घाटों पर आस्था और गलियों में इतिहास कहती कहानियां, तीन दिन का अनूठा अनुभव बनेगा काशी की पहचान देंगे 11 वॉक और 8 यात्रा कार्यक्रम
  • कमिश्नरी सभागार में आयोजित कार्यशाला में 250 से अधिक टूर ऑपरेटर और गाइड जुटे

Kashi-yatra
वाराणसी (सुरेश गांधी)। काशी केवल एक शहर नहीं, वह भारत की आत्मा का स्वर है। यहां सूरज गंगा किनारे उगता है तो लगता है मानो आस्था की अग्नि लहरों पर तैर रही हो। शाम ढलती है तो दशाश्वमेध घाट पर आरती की गूंज में अनादि काल का संगीत जीवंत हो उठता है। मतलब साफ है गंगा की गोद में बसी काशी, जहां हर मोड़ पर इतिहास साँस लेता है और हर घाट पर आस्था की आरती जलती है, अब एक नई यात्रा की ओर अग्रसर है। यह यात्रा केवल तीर्थ तक सीमित नहीं, बल्कि पर्यटन की उस दिशा में है जो काशी को विश्व पटल पर एक अनूठी पहचान दिलाएगी। वैसे भी सदियों से यह नगरी यात्रियों को आकर्षित करती रही है, पर अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विज़न ने काशी को नया आयाम दिया है, तीर्थ से पर्यटन तक का सफ़र। इस संकल्प को मूर्त रूप देने के लिए पर्यटन मंत्रालय, उत्तर प्रदेश पर्यटन और स्थानीय प्रशासन ने एक ऐसी योजना प्रस्तुत की है, जो आस्था को संस्कृति, और संस्कृति को पर्यटन से जोड़ देगी। अभी तक पर्यटक वाराणसी आते थे, मंदिरों के दर्शन और गंगा आरती देखकर लौट जाते थे। या यूं कहे अधिकांश यात्री काशी विश्वनाथ के दर्शन और गंगा स्नान व गंगा आरती तक ही सीमित रहते थे। लेकिन अब काशी को 170 धरोहर स्थलों के मानचित्रण से नया स्वरूप दिया गया है। इसके अंतर्गत 11 वॉक और 8 यात्रा कार्यक्रम बनाए गए हैं, जिनमें पर्यटक काशी की गलियों में छुपी कहानियों से लेकर घाटों की जीवंत परंपरा तक का अनुभव करेंगे। प्रशासन चाहता है कि यात्रियों का प्रवास केवल एक दिन का न होकर हर यात्री यहां कम से कम तीन दिन ठहरे। इसके लिए सोशल मीडिया से लेकर अन्य जरुरी प्रचार-प्रसार तंत्र का सहारा ले रही है. इसी कड़ी में शहर भर के सोशल मीडिया पर एक्टिव युवाओं की टोली को दो दिवसीय प्रशिक्षण भी दिसया गया।


गलियों की कहानियां और घाटों की स्मृतियां

नई योजना में जो वॉक जोड़े गए हैं, वे केवल मार्ग नहीं हैं, वे कहानियों की कड़ियां हैं। घाट वॉक में गंगा की लहरों के साथ घाटों की ऐतिहासिक गाथाएं मिलेंगी। बुनकर वॉक में बनारसी साड़ियों की रेशमी धड़कन पर्यटक देख पाएंगे। साहित्य वॉक में तुलसीदास और कबीर की पंक्तियां गलियों में गूंज उठेंगी। भोजन वॉक में काशी की चाट, ठंडई और लस्सी का स्वाद होगा। इन मार्गों पर चलते हुए पर्यटक केवल दीवारें और मंदिर नहीं देखेंगे, बल्कि काशी की आत्मा को महसूस करेंगे। मतलब साफ है यात्री उन अनुभवों की डोर होंगे, जिनसे काशी की आत्मा झलकती है।


काशी से विंध्याचल और अयोध्या तक

काशी की परिधि अब केवल मणिकर्णिका और दशाश्वमेध तक सीमित नहीं रहेगी। आठ यात्रा कार्यक्रमों में पर्यटक विंध्याचल के मां विंध्यवासिनी मंदिर तक जाएंगे, चुनार किले की प्राचीर छूएंगे, चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य की हरियाली देखेंगे, अयोध्या व प्रयागराज की पवित्रता का अनुभव करेंगे। साथ ही सारनाथ की बौद्ध गाथा इन पैकेजों को और अधिक समृद्ध बनाएगी। यह संयोजन धार्मिक आस्था, प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक धरोहर को एक सूत्र में पिरोता है।


जिम्मेदारी गाइडों और टूर ऑपरेटरों की

वाराणसी कमिश्नरी सभागार में आयोजित कार्यशाला में 250 से अधिक टूर ऑपरेटर, गाइड और एजेंट जुटे। मंत्री रवींद्र जायसवाल ने कहा, “काशी का भविष्य पर्यटन समुदाय की सक्रियता पर निर्भर है। यदि आप इन नए वॉक और पैकेजों को अपनाएंगे तो पर्यटक केवल दर्शन नहीं करेंगे, बल्कि अनुभव लेकर लौटेंगे।” आपके प्रयासों से ही दुनिया में काशी नई पहचान बनाएगी। आप अपने पैकेजों में इन यात्राओं को शामिल करें ताकि हर पर्यटक यहां के रंग, रस और राग का अनुभव कर सके।” कमिश्नर एस. राजलिंगम ने भी आश्वस्त किया कि प्रशासन इन योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए हर संभव सुविधा मुहैया कराएगा। इस दौरान उन्होंने टूर ऑपरेटरों से फीडबैक भी साझा की और यात्रियों की सुविधा सुनिश्चित करने का आग्रह किया।


काशी का भविष्य : सांस्कृतिक कूटनीति

यह पहल केवल पर्यटन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक कूटनीति भी है। जब कोई विदेशी पर्यटक तीन दिन तक काशी में रहेगा, तो वह केवल दर्शक नहीं होगा, बल्कि सहभागी बनेगा। वह गंगा की आरती में शामिल होगा, गलियों के संगीत को सुनेगा और यहां के भोजन का स्वाद लेकर लौटेगा। यही अनुभव भारत की संस्कृति को दुनिया तक ले जाएगा।


संस्कृति से आत्मा तक

काशी की पहचान अब केवल मंदिरों और गंगा आरती तक सीमित नहीं। यह शहर अपनी कला, साहित्य, भोजन और बुनकरी के साथ पर्यटकों के लिए अनुभव का खज़ाना बन रहा है। गंगा के घाटों पर आरती की गूँज, गलियों में बजती बीन और विंध्याचल के शिखरों से आती शांति मिलकर एक ऐसा वातावरण रचते हैं, जो दुनिया में अद्वितीय है।


काशी की पुकार

गंगा की लहरें कहती हैं, “यहां आओ, केवल दर्शन न करो। ठहरो, सुनो, देखो और इस नगरी की आत्मा को महसूस करो।” अब काशी केवल तीर्थ नहीं, बल्कि अनुभव की धरती बनेगी, जहां आस्था, संस्कृति और पर्यटन एक साथ प्रवाहित होंगे। 

11 नए पैदल मार्ग : गलियों से घाटों तक

घाट वॉक : दशाश्वमेध से अस्सी तक गंगा की लहरों और आरती का आध्यात्मिक अनुभव।

मंदिर वॉक : काशी विश्वनाथ से कालभैरव तक देवालयों की परिक्रमा।

बनारस गलियारा वॉक : संकरी गलियों में जीवित इतिहास और काष्ठकला का संसार।

संगीत और कला वॉक : बनारस घराने के स्वर और शिल्प का साक्षात्कार।

सारनाथ बौद्ध वॉक : जहां भगवान बुद्ध ने धम्मचक्र प्रवर्तन किया।

किलों की यात्रा वॉक : रामनगर से चुनार किले तक साम्राज्यों की गाथा।

साहित्य वॉक : कबीर, तुलसी और संत परंपरा के पदचिह्नों पर।

बुनकर वॉक : बनारसी साड़ी और हथकरघा की अद्भुत दुनिया।

हाट-बाजार वॉक : चौक, विशेश्वरगंज और बाजारों की रौनक।

भोजन वॉक : बनारसी पान, लंगड़ा आम और चाट का स्वाद।

गंगा आरती वॉक : मंत्रोच्चार और दीपदान से आलोकित आध्यात्मिक शाम।


8 नए यात्रा कार्यक्रम

वाराणसी वन्यजीव यात्रा (5 दिन) : राजदरी, देवदारी जलप्रपात, चंद्रप्रभा अभयारण्य और चुनार किला।

वाराणसी - विंध्याचल यात्रा : मां विंध्यवासिनी धाम और पौराणिक मंदिर।

वाराणसी - सारनाथ बौद्ध परिक्रमा : स्तूप, संग्रहालय और बौद्ध धरोहर।

वाराणसी - प्रयागराज यात्रा : त्रिवेणी संगम और किले की ऐतिहासिक सैर।

वाराणसी - अयोध्या यात्रा : श्रीराम जन्मभूमि और धार्मिक परंपरा।

वाराणसी - चुनार किला विशेष : किला, घाट और ऐतिहासिक वास्तु।

वाराणसी - चंद्रप्रभा अभयारण्य : प्राकृतिक झरनों और जंगल सफारी का आनंद।

वाराणसी सांस्कृतिक परिक्रमा : संगीत, नाट्य और लोकजीवन की थिरकन।

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