- जैसा भोजन मनुष्य ग्रहण करता है वैसी मन स्थिति होती है-मुनिश्री 108 अक्षय सागर महाराज

सीहोर। शहर के सैकड़ाखेड़ी स्थित संकल्प वृद्धाश्रम में श्राद्ध पक्ष के अवसर पर लगातार 16 दिवसीय धर्मसभा का आयोजन किया जा रहा है। सोमवार को आश्रम में आचार्य विद्यासागर महाराज, आचार्य समय सागर महाराज के मंगल आशीर्वाद से मुनिश्री 108 अक्षय सागर महाराज, ऐलक उपशम सागर महाराज का संत समागम किया गया। इस मौके पर यहां पर उपस्थित केन्द्र के संचालक राहुल सिंह ने मुनि श्री से पूछा की जैन मुनि खड़े होकर भोजन क्यों करते है। जैसा भोजन मनुष्य ग्रहण करता है वैसी मन स्थिति होती है, इसलिए आपको शाकाहर रहकर अपनी काया को पोषित करना चाहिए। शाकाहारी भोजन की बहुत ही महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह जल्दी से पच जाता है, इसके अतिरिक्त यह दिमाग को सचेत रखता है जिससे व्यक्ति बुद्धिमान बन जाता है। शाकाहारी भोजन करने वाले व्यक्ति अवसाद के शिकार नहीं होते तथा वे हमेशा अपने आपका तरोताजा महसूस करते हैं। इस मौके पर उन्होंने कहाकि दिन में एक बार आहार करने के पीछे कई कारण है। शरीर से ममत्व भाव को कम करना। धर्म साधना करते समय आलस्य ना आ जाए। इसलिए भोजन को शुद्धता के साथ बनाया जाता बहुत जरूरी होता है। जैन संत स्वाद के लिए भोजन नही करते है। ये धर्म साधना के लिए भोजन करते है। संत आगमन पर केन्द्र के संस्थापक वीपी सिंह, श्रीमती विमला सिंह, श्रीमती निशा सिंह, केन्द्र के मार्गदर्शक जितेन्द्र तिवारी, मनोज दीक्षित मामा, धर्मेन्द्र माहेश्वरी, प्रदीप साबू, हार्दिक, आकाश राय, बाबू सिंह आदि ने जैन समाज के अध्यक्ष अजय जैन, मनोज जैन, अशोक जैन, स्पनिल जैन, ईशान और वैभव आदि का सम्मान किया और दोनों संतों का श्रीफल देकर स्वागत किया।
साधु एक ही स्थान पर खड़े होकर दोनों हाथों को मिलाकर अंजुली बनाते
इस मौके पर संतों ने बताया कि साधु की आहारचर्या अल्प आहार क्रिया कहते हैं। साधु एक ही स्थान पर खड़े होकर दोनों हाथों को मिलाकर अंजुली बनाते हैं, उसी में भोजन करते हैं। यदि अंजुली में भोजन के साथ चींटी, बाल, कोई अपवित्र पदार्थ या अन्य कोई जीव आ जाए तो उसी समय भोजन लेना बंद कर देते हैं। अपने हाथ छोड़ देते हैं। उसके बाद पानी भी नहीं पीते है। इस विधि से भोजन करने से साधु की भोजन के प्रति आसक्ति दूर होती है।
अच्छे व्यक्तियों के संपर्क में रहे
इस मौके पर ऐलक श्री 105 उपशम सागर महाराज ने कहाकि अच्छे व्यक्तियों के संपर्क में रहने से कुछ न कुछ अच्छाइयां उसके जीवन में आ ही जाती हैं। इसलिए जहां तक बने जीवन में कभी गलत संगति में नहीं पड़ना चाहिए। मुनिश्री की बातों को जीवन में उतारने से सभी का जीवन सफल हो जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने यहां पर मौजूद हितग्राहियों को जीवन उत्थान के लिए प्रेरित किया।
शाकाहार को अपनाए
उन्होंने कहाकि हमारा शरीर सात्विक भोजन से ठीक प्रकार से चलता है। जैसा भोजन मनुष्य ग्रहण करता है वैसी मन स्थिति होती है। भोजन तीन प्रकार के होते हैं। तामसिक भोजन करने वाला भोगी होता है, राजसी भोजन करने वाला रोगी और सात्विक भोजन करने वाला योगी होता है। अपने भोजन का चयन बड़ी सावधानी से करना चाहिए, ताकि दूसरे जीवों को कष्ट न पहुंचे।
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