सीहोर : आज किया जाएगा हवन के साथ महाआरती का आयोजन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 20 सितंबर 2025

सीहोर : आज किया जाएगा हवन के साथ महाआरती का आयोजन

  • पितरों के आशीर्वाद से जीवन में आने वाली समस्त प्रकार की बाधाऐं, पितृदोष आदि का शमन होता : पंडित सुनील पाराशर

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सीहोर। हर साल की तरह इस साल भी शहर के संकल्प वृद्धाश्रम में श्राद्धपक्ष के  अवसर पर 16 दिवसीय धर्मसभा का आयोजन किया जा रहा है। शनिवार को आश्रम में पंडित सुनील पाराशर के द्वारा भजन-कीर्तन के साथ प्रवचन का आयोजन किया गया। इस मौके पर उन्होंने कहाकि श्राद्ध का संबंध श्रद्धा से है, श्रद्धापूर्वक पितरों का स्मरण और उनके निमित्त जो भी दान आदि पुण्यकर्म तीर्थ आदि क्षेत्रों में किया जाता है, वह सब एकत्र होकर श्राद्ध करने वाले श्राद्धकर्ता के पितरों को सद्गति प्रदान करता है, फलस्वरूप पितरों के आशीर्वाद से जीवन में आने वाली समस्त प्रकार की बाधाऐं, पितृदोष आदि का शमन होता है। उन्होंने बताया कि गरूड़ पुराण में कहा गया है कि श्राद्धकर्म करने से संतुष्ट होकर पितृ, श्राद्धकर्ता को आयु, पुत्र, यश, मोक्ष, स्वर्ग, कीर्ति, बल, वैभव, सुख, धन और धान्य वृद्धि का आशीष प्रदान करते हैं। पूर्ण विधि-विधान करने में असमर्थ व्यक्ति भी अपनी क्षमता अनुसार तीर्थ आदि क्षेत्र में श्रद्धापूर्वक पुण्य कर्म करके पितरों को सद्गति दिला सकता है।


श्रद्धा भक्ति सेवा समिति की ओर से मनोज दीक्षित मामा ने बताया कि रविवार को अमावस्या को हवन और महाआरती का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि अध्यात्म की दृष्टि से पितृपक्ष आत्मा और आत्मिक उत्कर्ष का वो पुण्यकाल है, जिसमें कम से कम प्रयास से अधिकाधिक फलों की प्राप्ति संभव है। आध्यात्मिक दृष्टि से इस काल को जीवात्मा के कल्याण यानि मोक्ष के लिये सर्वश्रेष्ठ समय माना गया है। अर्थात् अपने पूर्वजों की आत्मिक संतुष्टि व शांति और मृत्यु के बाद उनकी निर्बाध अनन्त यात्रा के लिये पूर्ण श्रद्धा से अर्पित कामना, प्रार्थना, कर्म और प्रयास को हम श्राद्ध कहते है। इस पक्ष को इसके अदभुत गुणों के कारण ही पितृ और पूर्वजों से सम्बद्ध गतिविधियों से जोड़ा गया है। यह पक्ष सिर्फ मरे हुये लोगों का काल है, यह धारणा सही नहीं है। श्राद्ध दरअसल अपने अस्तित्व से, अपने मूल से रूबरू होने और अपनी जड़ों से जुड़ने, उसे पहचानने और सम्मान देने की एक सामाजिक मिशन, मुहिम या प्रक्रिया का हिस्सा थी, जिसने प्राणायाम, योग, व्रत, उपवास, यज्ञ और असहायों की सहायता जैसे अन्य कल्याणकारी सकारात्मक कर्मों और उपक्रमों की तरह कालांतर में आध्यात्मिक और धार्मिक चादर ओढ़ ली।

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