- कानून की रक्षा करने वाले ही कानून के शिकंजे से ऊपर क्यों?
वकालत की आड़ में आपराधिक चेहरों का जाल
पुलिस सूत्रों के अनुसार कचहरी में 20 से 30 फीसदी चेहरे ऐसे हैं जिनका मकसद वकालत नहीं, बल्कि दबंगई, जमीन कब्जा और आपराधिक मंसूबों को अंजाम देना है। काला कोट अब न्याय का प्रतीक कम, अपराध का कवच अधिक बनता दिख रहा है। वरिष्ठ अधिवक्ता भी स्वीकारते हैं कि “कुछ अराजकतत्व पेशे की गरिमा को कलंकित कर रहे हैं।” सवाल है, बार एसोसिएशन कब तक आंखें मूंदे बैठे रहेंगे?
पुलिस और वकील, विश्वास का संकट
दरोगा के परिजन का दर्द भरा सवाल गूंजता है : “वर्दी की सुरक्षा कौन करेगा?” जिस जगह पुलिसकर्मी ही सुरक्षित नहीं, वहां आम नागरिक का भरोसा किस पर टिकेगा? पुलिस और वकील दोनों ही न्याय की रीढ़ हैं, लेकिन दोनों के बीच बढ़ता अविश्वास और टकराव न्याय प्रणाली की नींव को हिला रहा है।
बार एसोसिएशन की जिम्मेदारी
सेंट्रल और बनारस बार ने घटना की निंदा करते हुए 11 सदस्यीय संयुक्त समिति गठित की है, जो विवेचना पर निगरानी रखेगी और जांच में सहयोग का वादा करती है। परंतु यह भी तय हुआ कि विवेचना पूरी होने तक गिरफ्तारी न होकृयह शर्त न्याय को टालने का बहाना न बन जाए, इस पर समाज की नजर रहनी चाहिए।
धरना और जांच कमेटी : दो अहम पहलू
1- भाई का धरना
बीएचयू ट्रॉमा सेंटर में भर्ती दरोगा मिथलेश प्रजापति के भाई ने गुरुवार सुबह परिजनों के साथ पुलिस कमिश्नरेट कार्यालय के बाहर धरना दिया। उनका सवाल था, “वर्दी की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा? आज मेरे भाई के साथ यह नृशंस घटना हुई, कल किसी और के साथ हो सकती है।” परिवार ने दोषियों की तुरंत गिरफ्तारी और कड़ी कार्रवाई की मांग की।
2- 11 सदस्यीय जांच कमेटी
सेंट्रल बार और बनारस बार एसोसिएशन ने पुलिस - अधिवक्ता गतिरोध सुलझाने और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए 11 सदस्यीय संयुक्त समिति गठित की है। जिसमें अध्यक्ष : मंगलेश दुबे, महामंत्री : राजेश गुप्ता, सदस्य : सतीश तिवारी, शशांक श्रीवास्तव, रामजन्म सिंह, सुरेश श्रीवास्तव, मोहन यादव, विवेक शंकर तिवारी, अवधेश सिंह, राजेश मिश्रा, नित्यानंद राय शामिल हैं। समिति ने पुलिस विवेचना पर निगरानी रखने, साक्ष्यों के परीक्षण और दोनों पक्षों के बीच संवाद कायम रखने का दायित्व लिया है।
सख्त कार्रवाई ही समाधान
वाराणसी की यह घटना चेतावनी है कि न्याय व्यवस्था में छिपे असामाजिक तत्वों को अब पहचानकर कठोर कार्रवाई करनी ही होगी। बार और पुलिस, दोनों को आत्ममंथन करना होगा। अगर वकीलों की वेशभूषा अपराध का कवच बनती रही तो अदालतें न्यायालय नहीं, स्थायी रणक्षेत्र बन जाएंगी।

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