रिन्यूबल एनर्जी को लेकर फैली भ्रांतियाँ टूट रहीं, ताज़ा रिपोर्ट में सामने आए तथ्य - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 20 सितंबर 2025

रिन्यूबल एनर्जी को लेकर फैली भ्रांतियाँ टूट रहीं, ताज़ा रिपोर्ट में सामने आए तथ्य

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रिन्यूबल एनर्जी को लेकर अब भी कई पुराने मिथक लोगों की सोच पर हावी हैं-जैसे कि सोलर और विंड एनर्जी महँगी है, भरोसेमंद नहीं है या फिर पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित होती है। लेकिन ज़ीरो कार्बन एनालिटिक्स (ZCA) की नई रिपोर्ट ने इन धारणाओं को तथ्यों के साथ खारिज किया है। रिपोर्ट कहती है कि आज की तारीख में रिन्यूबल एनर्जी दुनिया की सबसे सस्ती और सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली बिजली का स्रोत बन चुकी है। 2010 के बाद से सोलर एनर्जी की लागत 90% और विंड एनर्जी की लागत 70% तक गिर गई है। 2023 में ऑनशोर विंड से बिजली बनाने का खर्च फॉसिल फ्यूल विकल्पों से 67% कम और सोलर एनर्जी का खर्च 56% कम रहा। 2000 से अब तक रिन्यूबल एनर्जी के विस्तार से वैश्विक बिजली क्षेत्र को कम-से-कम 409 अरब अमेरिकी डॉलर की ईंधन लागत बचत हुई है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि रिन्यूबल एनर्जी प्रणाली अब तकनीकी रूप से भरोसेमंद है। बैटरी स्टोरेज, स्मार्ट ग्रिड और विविध स्रोतों की मदद से बिजली आपूर्ति लगातार बनाए रखी जा सकती है। 2024 में अकेले 450 गीगावॉट नई सोलर क्षमता स्थापित हुई, जिसने वैश्विक एनर्जी सुरक्षा को नई दिशा दी।


वन्यजीवों पर असर को लेकर उठाए जाने वाले सवालों को भी रिपोर्ट ने संज्ञान में लिया। आँकड़ों के मुताबिक फॉसिल फ्यूल से उत्पन्न हर गीगावॉट-घंटा बिजली पर औसतन 5.2 पक्षियों की मौत होती है, जबकि विंड एनर्जी में यह संख्या महज़ 0.3 से 0.4 है। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन खुद जैव विविधता के लिए कहीं बड़ा ख़तरा है और रिन्यूबल एनर्जी उसे रोकने में अहम भूमिका निभा सकती है। जहाँ तक कचरे की बात है, कोयले की राख और तेल से निकलने वाले अवशेषों की तुलना में सोलर पैनलों या विंड टर्बाइन से निकलने वाला कचरा नगण्य है। अनुमान है कि 2050 तक कोयले की राख 45 अरब टन तक पहुँच जाएगी, जबकि सोलर पैनलों से निकलने वाला कचरा केवल 160 मिलियन टन होगा। आधुनिक तकनीकों से सोलर और विंड उपकरणों के 95% तक हिस्सों को रीसाइक्ल किया जा सकता है। ZCA की रिपोर्ट का निष्कर्ष साफ है: रिन्यूबल एनर्जी अब न महँगी है, न अविश्वसनीय और न ही प्रकृति के लिए असहनीय। बल्कि यह एनर्जी परिवर्तन की रीढ़ है और वैश्विक जलवायु संकट से निपटने का सबसे ठोस उपाय भी।

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