- अधर्म कितना भी बलवान हो, अंत में धर्म की विजय होती है-जगदगुरु पंडित अजय पुरोहित

सीहोर। सभा में बैठे सभी वरिष्ठ जन द्रौपदी का अपमान होते देखते रहते हैं और कोई भी इसका विरोध नहीं करता है। द्रौपदी भगवान कृष्ण का स्मरण करती है और उनकी कृपा से कृष्ण उसकी लाज बचाने के लिए प्रकट होते हैं। भागवत कथा के द्रौपदी चीरहरण प्रसंग में अन्याय का विरोध करना चाहिए। यह प्रसंग नारी के सम्मान और धार्मिकता की शक्ति को दर्शाता है, जहां सभा में उपस्थित सभी लोगों के निस्तेज होने पर भी भगवान कृष्ण ने द्रौपदी के चीर को बढ़ाया और उसकी लाज बचाई। इस घटना से शिक्षा मिलती है कि अधर्म कितना भी बलवान हो, अंत में धर्म की विजय होती है और जो लोग दृढ़ विश्वास के साथ पुकारते हैं, उन्हें भगवान का साथ अवश्य मिलता है। यह बात ग्राम छतरपुर में जारी सात दिवसीय भागवत कथा के छठवे दिवस जगदगुरु पंडित अजय पुरोहित ने कही। इस मौके पर कथा का श्रवण करने पहुंचे सांसद आलोक शर्मा ने विकास कार्य के लिए करीब 20 लाख रुपए की राशि की घोषणा की। उक्त राशि से कथा स्थल परिसर की बाउंड्री बाल के अलावा क्षेत्र के विश्रामघाट के सौंदर्यकरण आदि किया जाएगा। कथा का श्रवण विधायक सुदेश राय, भाजपा जिलाध्यक्ष नरेश मेवाड़ा और भाजपा नेता माया राम गौर आदि ने किया।
कथा के दौरान जगदगुरु पंडित पुरोहित ने कहाकि जब पुण्य प्रबल होता है तो मारने वाला चाहे कितना उपक्रम कर ले, मारना तो दूर बाल भी बांका नहीं कर सकता। द्रौपदी के चीर हरण का प्रसंग ही ले लो। उस भरी सभा में उसका अपना कौन नहीं था पर कोई बचाने आगे नहीं आ सका। आम जीवन में भी ऐसा कई बार होता है जब परेशानी में अपने ही सब मुंह मोड लेते हैं। तब सिर्फ आपका पुण्य ही काम आता है। द्रोपदी ने जब खुद को महाशक्ति से जोड़ा, उसका संचित पुण्य काम आया। दुर्योधन व दुशासन थक हार गए पर अपना मकसद पूरा नहीं कर पाए। इसलिए हमेशा जुडों तो उससे जिससे पुण्य का बैलेंस बढ़े। पुण्यावणी उतार पर हो तो हीरे जवाहरात भी कोयले नजर आते हैं। काम नहीं आते। परेशानी के समय भी हम किसी से अच्छा बोलकर, सम्मान देने जैसे छोटे छोटे तरीकों से पुण्यार्जन कर स्वयं को सुरक्षित रख सकते है। ये पुण्य ऐसे समय साथ देते हैं, जब कोई दूसरा नहीं देता। श्रीकृष्ण ने सदैव अन्याय, अत्याचार व गलत पर प्रहार किया। हमें भी जब जब कुछ गलत नजर आए, उसका कड़ा विरोध करना चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें