उन्होंने बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चैधरी के उस बयान की निंदा की जिसमें कहा गया था कि नेपाल को भारत में मिलाया नहीं गया, इसलिए आज की स्थिति उत्पन्न हुई. माले महासचिव ने कहा कि इस तरह के बयान पड़ोसी देशों को भारत से दूर ही करेंगे. भारत को अपने पड़ोसियों के साथ बराबरी और सम्मान के आधार पर संबंध बनाने चाहिए. बिहार तो इनसे संभल नहीं रहा, बात कर रहे नेपाल की. यह भी कहा गया कि बिहार में वोट चोरी लगातार जारी है. पहले चरण में 65 लाख नाम काटे गए और अब ड्राफ्ट सूची से भी नाम काटने की साजिश की जा रही है. भाजपा के विधायक और बीएलए इसमें सक्रिय हैं और विशेषकर भाकपा-माले समर्थकों, मुसलमानों, दलितों और गरीबों के नाम सूची से हटाने की कोशिशें जारी हैं. उदाहरण स्वरूप, आरा विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक अमरेन्द्र प्रताप सिंह और भाजपा बीएलए ने बूथ नंबर 368 और 369 के 220 गरीब मतदाताओं का नाम हटाकर उन्हें संदेश विधानसभा में स्थानांतरित करने का आवेदन दिया है. इसी तरह, बूथ नंबर 156 पर भाजपा बीएलए मनीष कुमार ने 93 गरीबों का नाम काटने का आवेदन किया, जिसे भाकपा-माले के बीएलए के हस्तक्षेप के द्वारा खारिज करवाया गया. कुल 63 बूथों पर 887 मतदाताओं के नाम काटने का आवेदन दिया गया है, लेकिन प्रशासन उसे दावा-आपत्ति में प्रदर्शित भी नहीं कर रहा है. पूरे जिले से ऐसी ही रिपोर्ट आ रही है. भाकपा-माले ने कहा कि उनके बीएलए की सतर्कता के कारण भाजपा की योजना पूरी नहीं हो पा रही है, लेकिन गरीब मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से बाहर करने की लगातार कोशिश जारी है. संवाददाता सम्मेलन को माले राज्य सचिव कुणाल, धीरेन्द्र झा, शिवप्रकाश रंजन, कयामुद्दीन अंसारी और अभ्युदय ने संबोधित किया.
पटना, 15 सितम्बर (रजनीश के झा)। भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने आज संवाददाता सम्मेलन कर कहा कि बिहार के नौजवान गहरे असंतोष की स्थिति में हैं. बड़ी संख्या में युवाओं को नौकरी से बर्खास्त किया जा रहा है और सरकार उनकी बात सुनने के बजाय दमन पर उतारू है. भाजपा कार्यालय पर अपनी मांगों को लेकर पहुंचे नौजवानों पर बर्बर लाठीचार्ज इस बात का प्रमाण है. सरकार को चाहिए कि आंदोलनकारियों से संवाद करे और लाठी-डंडे का सहारा छोड़कर लोकतांत्रिक तरीके से समाधान निकाले. बिहार को नेपाल नहीं बनाइए. बिहार में लोकतंत्र है, चुनी हुई सरकार है तो उसकी पहली जिम्मेवारी है कि जनता में असंतोष है तो उनकी बातों को सुनिए. माले महासचिव ने नेपाल की मौजूदा राजनीतिक स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि वहाँ विद्रोह की वजह से प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा और संसद तक में आगजनी हुई. यह संक्रमण का दौर है, लेकिन नेपाल अब राजशाही की ओर नहीं जाएगा. लोकतांत्रिक व्यवस्था की रक्षा आवश्यक है.

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