दुनिया भर में असर साफ़ दिखा। अमेज़न बेसिन और दक्षिणी अफ्रीका सूखे से कराहते रहे, वहीं अफ्रीका का मध्य और पूर्वी हिस्सा, यूरोप का बड़ा इलाका, पाकिस्तान, उत्तरी भारत और चीन के हिस्सों में बाढ़ जैसे हालात बने। यूरोप ने 2013 के बाद की सबसे बड़ी बाढ़ झेली, जबकि एशिया-प्रशांत में चक्रवात और रेकॉर्ड बारिश ने हज़ार से ज़्यादा लोगों की जान ली। ब्राज़ील में तो दक्षिण हिस्से में बाढ़ से 183 मौतें हुईं और उत्तर में अमेज़न का सूखा 59% हिस्से को झुलसाता रहा। WMO की प्रमुख सेलेस्टे साउलो ने साफ़ कहा, “हम पानी को मापे बिना उसे मैनेज नहीं कर सकते। अभी हालात ऐसे हैं जैसे हम बिना नक्शे के सफ़र कर रहे हों। डेटा शेयरिंग और मॉनिटरिंग में निवेश बढ़ाना होगा, वरना हम अंधेरे में ही रह जाएंगे।” आज दुनिया की लगभग 3.6 अरब आबादी साल में कम से कम एक महीने पानी की किल्लत झेल रही है। 2050 तक ये आंकड़ा 5 अरब पार कर सकता है। साफ़ है कि सतत विकास लक्ष्य 6 (सबके लिए सुरक्षित पानी और सैनिटेशन) की ओर बढ़ने का रास्ता और मुश्किल होता जा रहा है।
रिपोर्ट एक और अहम बात कहती है, हमारी झीलों और नदियों का तापमान बढ़ रहा है। जुलाई 2024 में चुनी गई 75 झीलों में से लगभग सभी सामान्य से कहीं ज़्यादा गर्म थीं। इसका असर पानी की क्वालिटी और जलीय जीवन दोनों पर पड़ा। यानी तस्वीर दो टूक है, धरती का जल चक्र अब या तो चरम सूखा देता है या चरम सैलाब। कहीं लोग प्यास से तड़पते हैं, कहीं अचानक बाढ़ से बेघर हो जाते हैं। और इस पूरे संकट का एक बड़ा कारण है हमारा अधूरा ज्ञान। डेटा कम है, शेयरिंग और भी कम। लेकिन उम्मीद अभी जिंदा है। WMO के मुताबिक अगर देश मिलकर निगरानी और डेटा साझा करने की दिशा में ईमानदारी से कदम बढ़ाएं, तो हम इस अनिश्चित जल भविष्य को समझकर बेहतर तैयारी कर सकते हैं। सवाल यही है कि दुनिया ये चेतावनी सुनती है या फिर अगली बाढ़ और अगले सूखे का इंतज़ार करती है।

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