एडवोकेट अशुतोष पांडे का कहना है कि इस पूरे मामले में दिल्ली पुलिस की उदासीनता और लापरवाही साफ झलकती है। उन्होंने कहा कि नोटिस भेजे जाने के बावजूद न तो पुलिस विभाग ने समय पर जवाब दिया और न ही गंभीरता दिखाई। जबकि कानून के अनुसार किसी भी कानूनी नोटिस का निर्धारित अवधि में जवाब देना अनिवार्य है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की लापरवाही न केवल कानून के शासन की अवमानना है बल्कि आम नागरिकों और वकीलों के अधिकारों का हनन भी है। दिल्ली पुलिस की चुप्पी और टालमटोल से यह साफ संकेत मिलता है कि या तो विभाग मामले को दबाना चाहता है या फिर अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहा है। इस घटना के बाद अब सवाल यह उठ रहा है कि जब राजधानी में वकीलों और आम नागरिकों के नोटिस को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा, तो आम जनता की शिकायतों का क्या हश्र होता होगा। दिल्ली पुलिस पहले ही कई बार पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को लेकर आलोचना का सामना कर चुकी है, और यह मामला उसकी छवि को और धूमिल करता है। एडवोकेट पांडे ने मांग की है कि उपराज्यपाल इस मामले में सख्त हस्तक्षेप करें और दिल्ली पुलिस को जवाबदेह ठहराएं। उन्होंने कहा कि यह केवल एक वकील का मुद्दा नहीं है बल्कि पूरे न्याय व्यवस्था से जुड़े विश्वास का प्रश्न है। फिलहाल यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि दिल्ली पुलिस इस नोटिस पर क्या जवाब देती है और क्या कोई ठोस कार्रवाई होती है या मामला एक बार फिर फाइलों में दबकर रह जाएगा।
नई दिल्ली (अशोक कुमार निर्भय)। राजधानी में एक बार फिर दिल्ली पुलिस की कार्यशैली और लापरवाही पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। मामला ताज़ा उस कानूनी नोटिस से जुड़ा है, जो एडवोकेट अशुतोष पांडे द्वारा दायर किया गया था। यह नोटिस दिल्ली पुलिस अधिनियम की धारा 140 के तहत दिनांक 23 सितम्बर 2025 को भेजा गया था। लेकिन नोटिस का निपटारा करने के बजाय दिल्ली पुलिस ने इसे टालमटोल और लापरवाही के रवैये के साथ निपटाया। मामले का खुलासा तब हुआ जब उपराज्यपाल सचिवालय से 3 अक्टूबर 2025 को भेजे गए एक आधिकारिक पत्र में स्पष्ट लिखा गया कि एडवोकेट द्वारा भेजे गए नोटिस को प्राप्त कर लिया गया है और इसे पुलिस आयुक्त (दिल्ली) को अग्रेषित कर दिया गया है। पत्र में यह भी कहा गया है कि इस मामले से जुड़े सभी रिकार्ड दिल्ली पुलिस के पास उपलब्ध हैं और उचित जवाब वही देंगे। पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले उपराज्यपाल सचिवालय के नोडल अधिकारी अशोक कुमार यादव ने साफ शब्दों में कहा कि सचिवालय के पास इस प्रकरण से संबंधित कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है और मामला पूरी तरह से दिल्ली पुलिस के अधिकार क्षेत्र में आता है।

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