- भक्ति कविता में व्यक्ति की इयत्ता और गरिमा की सहज स्वीकृति : अशोक वाजपेयी
उन्होंने कहा भक्ति की कविता-सत्ता अपने सत्व में, प्रभाव में और व्याप्ति में जनतांत्रिक थी उसने धर्म, अध्यात्म, सामाजिक आचार-विचार, व्यवस्था आदि का जनतंत्रीकरण किया। वह एक साथ सौंदर्य, संघर्ष, आस्था, अध्यात्म, प्रश्नवाचकता की विधा बनी। यह अपने आप में किसी क्रांति से कम नहीं है। इस नई जनतांत्रिकता में व्यक्ति की इयत्ता और गरिमा का सहज स्वीकार भी था प्रायः सभी भक्त कवि अपनी रचनाओं में निस्संकोच अपने नाम का उल्लेख करते हैं। वाजपेयी ने संपादक माधव हाड़ा को निर्धारित समय में संचयन का कार्य पूरा कर सुंदर ढंग से प्रस्तुत करने के लिए मुक्त सराहना की। परिचर्चा में संपादक प्रो माधव हाड़ा ने कहा कि भक्ति कविता परलोक व्यग्र कविता नहीं है अपितु यह जीवन की कविता है। भक्ति कविता का ईश्वर भक्तों का सखा, मित्र और प्रेमी है तथा उनकी पहुँच के भीतर है। हाड़ा ने कहा कि भक्ति कविता की निर्मिति में परंपरा से प्रदत्त स्मृति और संस्कार की भी निर्णायक भूमिका है। आयोजन का एक और आकर्षण शास्त्रीय गायिका कलापिनी कोमकली का गायन भी था। कोमकली में गोरखनाथ का पद कौन सुनता कौन जागे हैं, नानकदेव का अब मैं कौन उपाय करूँ, कबीर का गगन की ओट निसाना है भाई जैसे कुछ पदों के गायन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। आयोजन में प्रसिद्ध रंगकर्मी प्रसन्ना, आलोचक मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, रेखा अवस्थी, कवि प्रयाग शुक्ल, आलोचक अपूर्वानंद, कवि लीलाधर मंडलोई, सुमन केशरी, कथाकार प्रवीण कुमार, सोपान जोशी, पीयूष दईया, सिने विशेषज्ञ मिहिर पण्ड्या सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।

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