पटना, (आलोक कुमार). 1909 में जब सोनोरा स्मार्ट डोड ने मदर्स डे पर एक उपदेश सुना, तो उनके मन में यह प्रश्न उठा कि पिताओं के लिए भी कोई दिन क्यों न हो? माँ के प्रेम की तरह पिता का समर्पण भी तो समान रूप से आदरणीय है। इसी भाव से उन्होंने फादर्स डे की नींव रखी।उनकी प्रेरणा के केंद्र में उनके अपने पिता विलियम जैक्सन स्मार्ट थे — गृह युद्ध के एक सैनिक, जिन्होंने पत्नी के निधन के बाद छह बच्चों का पालन-पोषण अकेले किया. इस त्याग ने बेटी को यह सोचने पर विवश किया कि पिता के मौन संघर्ष को भी समाज की मान्यता मिलनी चाहिए।उनके अथक प्रयासों का परिणाम था — 19 जून 1910, जब स्पोकेन, वाशिंगटन में पहला फादर्स डे मनाया गया. लेकिन इसे आधिकारिक मान्यता मिलने में लंबा समय लगा. अंततः 1972 में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इसे अमेरिका का राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया.आज भारत सहित अनेक देशों में यह पर्व जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है. 2025 में यह दिन 15 जून को पड़ा.वहीं, कुछ यूरोपीय देशों में इसे 19 मार्च को मनाने की परंपरा है. हाल में कलकत्ता महाधर्मप्रांत में भी इस दिवस का उत्साह देखा गया.सेंट पॉल चर्च, कमर चौकी में 28 अक्टूबर 2025 को फादर्स डे समारोह आयोजित हुआ. समुदाय ने अपने पिताओं के प्रति सम्मान और कृतज्ञता प्रकट की.फिर भी, कुछ लोगों ने यह प्रश्न उठाया है कि क्या इस अवसर की व्यापकता पूरे महाधर्मप्रांत तक पहुंच पा रही है? शिवचरण हांसदा ने चिंता जताई कि कुछ चुनिंदा चर्चों तक ही गतिविधियां सीमित हैं.दरअसल, फादर्स डे केवल उत्सव नहीं, बल्कि उस मौन शक्ति का सम्मान है जो परिवार को थामे रखती है. पिता अक्सर भावनाएँ नहीं जताते, पर हर जिम्मेदारी को निभाने में वे उदाहरण बन जाते हैं. समय है कि हम उस मौन त्याग को भी मुखर सम्मान दें — क्योंकि पिता का प्रेम दिखता नहीं, पर हर सफलता के पीछे उसका हाथ होता है.
गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025
पटना : त्याग और अनुशासन का मौन स्तंभ
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