महाराष्ट्र के जलगांव स्थित गाँधी रिसर्च फाउंडेशन के सहायक डीन अश्विन झाला ने "लाइव आर्यावर्त" को जानकारी दी कि सच है कि ब्रिटिश शासन ने 1930 में गांधी जी के येरवदा जेल प्रवास के दौरान उनके निजी खर्च के लिए ब्रिटिश शासन की तरफ से राज्य बंदियों को मिलने वाली सुविधा के अंतर्गत सौ रुपये प्रतिमाह दिए जाने की पेशकश की गयी थी, लेकिन गांधी जी ने विनम्रता के साथ ब्रिटिश हुकूमत के इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया था। वास्तव में मई 1930 में जारी यह आधिकारिक पत्र, गांधी जी को सीधे नहीं भेज कर, बॉम्बे सरकार में गृह विभाग के तत्कालीन सचिव, जीएफ कॉलिन्स ने भारत के राजनीतिक मामलों के सचिव, गृह विभाग को लिखी थी।
इस सरकारी पत्र में कॉलिन्स ने महात्मा गांधी के भरण-पोषण के लिए 100 रुपये भत्ता की राशि आवंटित करने का सुझाव दिया था, जो, तब महाराष्ट्र के यरवदा केंद्रीय कारा में राजनीतिक बंदी के तौर पर कैद थे। पाठकों की जानकारी के लिए यह बताना जरूरी है कि पत्र में उल्लिखित सौ रुपये दिए जाने का प्रावधान उस दौर के सभी राजनीतिक बंदियों पर समान रूप से लागू होते थे। गाँधी रिसर्च फाउंडेशन से मिली जानकारी के अनुसार ब्रिटिश शासन के दौर में दि स्टेट प्रिज़नर्स रेगुलेशन एक्ट 1818 के अंतर्गत तथा बॉम्बे रेगुलेशन XXV (25 ) के नियमानुसार सभी राजनीतिक बंदियों को उनके भरण पोषण, उपचार, दवा और अन्य जरूरतों के लिए रकम दिए जाने का नियम समान रूप से सभी राजनीतिक बंदियों पर लागू होता था। मिली जानकारी के मुताबिक गांधीजी ने उन्हें अंग्रेज शासन द्वारा प्रस्तावित 100 रुपये प्रतिमाह को ठुकराते एक पत्र मेजर डॉयल को लिखा था और अपनी असहमति से ब्रिटिश हुकूमत को अवगत करवाया था। उल्लेखनीय है कि बॉम्बे प्रेसिडफेंसी के तत्कालीन जेल महानिरीक्षक ई ई डॉयल ने गाँधीजी से जेल में मुलाकात कर इस सन्दर्भ में बात भी की थी और उन्हें सरकार की तरफ से जेल में निजी खर्च के लिए राजनीतिक बंदी के तौर पर सौ रुपये प्रतिमाह आवंटित किये जाने संबंधी जानकारी दी थी ,जिसे गाँधी जी ने अस्वीकार कर दिया था। 1996 में लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ ओरिएण्टल एंड अफ्रीकन स्टडीज के लिए उज्जवल कुमार सिंह के शोध पत्र " पोलिटिकल प्रिजनर्स इन इंडिया 1920 -1977 " में भी इस बात का उल्लेख है।
"लाइव आर्यावर्त" ने नई दिल्ली स्थित भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार, जिनके पास ऐसे महत्वपूर्ण और पूर्ववर्ती दस्तावेजों को सहेजने और संरक्षित करने की जिम्मेदारी व अधिकार है, से भी इस संदर्भ में जानकारी लेने का प्रयास किया लेकिन समाचार लिखे जाने तक उनकी प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी।


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