कलियुग में हमें हजारों साल की साधना और तपस्या की आवश्यकता नहीं है, अगर हम सच्चे भाव से भगवान के नाम का जप और कीर्तन करें-अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रासीहोर। हिन्दू धर्म में सूर्य उपासना का बहुत महत्व है। देशवासी द्वारा इसको पूरी आस्था और उत्साह के साथ मनाया जाता है। सूर्य की ऊर्जा से निकलने वाली किरणे मानव जीवन को आरोग्य प्रदान करने के साथ-साथ जीवन को चलायमान बनाने में भी अहम भूमिका निभाती है। छठ व्रत के दौरान सूर्य की उपासना की जाती है। संसार में छठ व्रत एकमात्र व्रत है। जिसमें जिसकी उपासना की जाती हो वह देवता साक्षात हमारे नजरों के सामने होते हैं। उक्त विचार जिला मुख्यालय के समीपस्थ कुबेरेश्वरधाम पर जारी आन लाइन शिव महापुराण के तीसरे दिन अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहे। उन्होंने सभी देशवासियों को छठ पर्व की बधाई दी।
इस मौके पर पंडित श्री मिश्रा ने कहाकि दुनिया में एक मात्र कुबेरेश्वरधाम ही ऐसा है जो सभी का अपना घर है, यहां पर भगवान शिव की कृपा है। कथा के दौरान पंडित श्री मिश्रा ने कहाकि एक बार भीम ने युधिष्ठिर से कहाकि शिव पूजा का नियम क्या है, भगवान शिव की पूजा-अर्चना कैसे करना चाहिए तो युधिष्ठिर ने भीम का बताया कि भगवान शिव की भक्ति से पहले मन, दृष्टि और हृदय की पवित्र होना चाहिए। कलियुग में हमें हजारों साल की साधना और तपस्या की आवश्यकता नहीं है, अगर हम सच्चे भाव से भगवान के नाम का जप और कीर्तन करें। इस युग में ईश्वर प्राप्ति का सबसे सरल और श्रेष्ठ मार्ग है। एक लोटा जल हर समस्या का हल है और सबसे सरल मार्ग बताया गया है। यह माना जाता है कि पिछले युगों, जैसे सतयुग और त्रेतायुग, में लोग लंबे जीवनकाल और अनुकूल परिस्थितियों के कारण कठोर तपस्या और बड़े-बड़े यज्ञ करके मोक्ष प्राप्त करते थे। लेकिन कलियुग में मनुष्य की आयु कम होती है, और मन अशांत और चंचल रहता है। इसलिए, भगवान ने स्वयं इस युग में कृपा करते हुए भक्ति के मार्ग को सुलभ बना दिया है। भगवान के चरणों में जितना समय बीत जाए उतना अच्छा है। इस संसार में एक-एक पल बहुत कीमती है। जो बीत गया सो बीत गया। इसलिए जीवन को व्यर्थ में बर्बाद नहीं करना चाहिए। भगवान द्वारा प्रदान किए गए जीवन को भगवान के साथ और भगवान के सत्संग में ही व्यतीत करना चाहिए। कलयुग के प्राणी का कल्याण कैसे होगा। इसमें सतयुग, त्रेता और द्वापर युग की चर्चा ही नहीं की गई है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि बार-बार यही चर्चा क्यों की जाती है, अन्य किसी की क्यों नहीं। इसके कई कारण हैं जैसे अल्प आयु, भाग्यहीन और रोगी। कलयुग केवक नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा।
कलियुग में भक्ति मार्ग का महत्व:-
नाम-स्मरण: भगवान का नाम जपना ही अपने आप में एक शक्तिशाली साधना है। नाम और भगवान एक समान होते हैं, इसलिए सच्चे मन से उनका नाम लेने पर भी उनकी कृपा प्राप्त होती है।
सरलता: भक्ति के लिए बाहरी साधनों, धन या जटिल अनुष्ठानों की आवश्यकता नहीं होती। इसे कोई भी व्यक्ति अपनी दिनचर्या के दौरान भी कर सकता है।
समर्पण: भगवान के प्रति प्रेम, श्रद्धा और पूर्ण समर्पण ही इस मार्ग का आधार है। भगवान के नाम, रूप, गुण और लीलाओं का गुणगान) को एकमात्र तपस्या बताया गया है। इसी वजह से कलियुग को अन्य युगों से श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि इसमें मुक्ति का मार्ग सबसे आसान है।

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