पटना : मोकामा विधानसभा : बाहुबलियों की परंपरा, जनता की परीक्षा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 27 अक्टूबर 2025

पटना : मोकामा विधानसभा : बाहुबलियों की परंपरा, जनता की परीक्षा

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पटना,( आलोक कुमार) .बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही एक बार फिर मोकामा सीट सुर्खियों में है. 243 सीटों वाले इस राज्य में दो चरणों में चुनाव होने हैं — पहला चरण 6 नवंबर और दूसरा 11 नवंबर को, जबकि परिणाम 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे. लेकिन बिहार की निगाहें मोकामा पर टिकी हैं, जहाँ राजनीति, जातीय समीकरण और बाहुबल का अनोखा संगम देखने को मिलता है.गंगा नदी के दक्षिण तट पर स्थित मोकामा क्षेत्र में घोसवरी, मोकामा और पंडारक प्रखंड के कुछ गांव शामिल हैं. यह सीट अपने इतिहास और बाहुबली नेताओं के प्रभाव के लिए प्रसिद्ध रही है. यहाँ की राजनीति में बाहुबल और जनाधार का अद्भुत संतुलन हमेशा चर्चा में रहा है.


बाहुबलियों की परंपरा और मुकाबले की विरासत मोकामा का नाम आते ही अनंत सिंह उर्फ "छोटे सरकार" की याद आती है. यह सीट लंबे समय से उनके नाम से जुड़ी रही है. लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव में हालात पहले जैसे नहीं हैं.इस बार मैदान में दो बाहुबलियों का आमना-सामना होने जा रहा है — एक ओर जदयू के उम्मीदवार अनंत सिंह, तो दूसरी ओर राजद से सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी.दिलचस्प यह है कि अब दोनों ही पक्ष “बाहुबली” कहलाना पसंद नहीं करते.उनका कहना है कि असली शक्ति जनता के पास है, और वह आज की असली बाहुबली है. लेकिन इतिहास बताता है कि मोकामा की राजनीति में बाहुबली प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.इतिहास में झाँके तो...मोकामा विधानसभा सीट कभी दिलीप सिंह का गढ़ हुआ करती थी.1990 के दशक में वे लगातार चुनाव जीतते रहे. लेकिन वर्ष 2000 में सूरजभान सिंह ने उन्हें हराकर इस गढ़ में सेंध लगाई. सूरजभान सिंह बाद में 2004 में लोकसभा पहुंचे, जबकि 2005 में अनंत सिंह ने विधानसभा में दस्तक दी और तब से यह सीट उनके नाम से जानी जाने लगी.


2020 के विधानसभा चुनाव में अनंत सिंह ने राजद के टिकट पर जीत हासिल की, लेकिन 2022 में एक आपराधिक मामले में सजा होने के बाद उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गई.इसके बाद उनकी पत्नी नीलम देवी ने उपचुनाव में जीत दर्ज की और बाद में जदयू में शामिल हो गईं. अब 2025 में खुद अनंत सिंह जदयू से मैदान में हैं.नया मुकाबला, पुरानी रंजिश इस बार वीणा देवी मैदान में हैं, लेकिन मुकाबला अनंत सिंह बनाम सूरजभान सिंह ही माना जा रहा है. वीणा देवी कहती हैं — “जनता ने एक बार मौका दिया तो मोकामा की तस्वीर बदल देंगे, जैसे मैंने अपने पति सूरजभान सिंह का जीवन बदल दिया.”  दूसरी ओर, अनंत सिंह का दावा है कि मोकामा की जनता “छोटे सरकार” के साथ है और विकास के मुद्दे पर उन्हें फिर से मौका देगी.जातीय समीकरण और जनता की भूमिका भूमिहार बहुल इस क्षेत्र में जातीय समीकरण हमेशा निर्णायक रहे हैं.लेकिन अब यह लड़ाई केवल जाति या बाहुबल की नहीं, बल्कि प्रभाव और छवि की हो गई है.जनता तय करेगी कि पुराने राजनीतिक प्रतीकों को आगे बढ़ाना है या नई दिशा देनी है.

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