वाराणसी : स्वर्वेद महाधाम में सज उठा ज्योतिर्मय अध्यात्म - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 25 नवंबर 2025

वाराणसी : स्वर्वेद महाधाम में सज उठा ज्योतिर्मय अध्यात्म

  • 19 देशों की आस्था, 25 हजार कुंडों का महायज्ञ और सद्गुरुओं की दिव्य वाणी से गूँजा उमरहां

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वाराणसी (सुरेश गांधी)। जैसे ही संध्या का पहला तारा आकाश में झिलमिलाया, स्वर्वेद महामंदिर धाम अनगिनत दीपों के प्रकाश में स्नान करता हुआ किसी दिव्य लोक की अनुभूति कराने लगा। उमरहां की धरती पर इन दिनों श्रद्धा, संस्कृति और साधना का अनूठा संगम उतरा है। समर्पण दीप अध्यात्म महोत्सव के साथ विहंगम योग के 102वें वार्षिकोत्सव का शुभारंभ हुआ तो भक्ति की ऐसी लहर उठी कि उमरहां से डुबकियां बाजार तक तीन किलोमीटर का क्षेत्र मानो अध्यात्म की सुगंध से भर उठा। रंग-बिरंगी रोशनी से नहाया महामंदिर किसी चमकते हुए रत्न की तरह जगमगा रहा है। अमेरिका से स्विट्जरलैंड तक, जर्मनी से इंडोनेशिया तक, 19 देशों से आए साधक सफेद ध्वज थामे “जय सदगुरुदेव” का उच्चारण करते जब धाम की ओर बढ़े तो वातावरण में ऐसी पवित्र ऊर्जा व्याप्त हुई, जैसे स्वयं स्वर्वेद की पंक्तियाँ वायु में गूँज उठी हों।  


रोशनी में नहाई रात, आस्था से दिपदिपाता धाम

महोत्सव की पूर्व संध्या पर सद्गुरु आचार्य स्वतंत्र देव महाराज ने ‘अ’ अंकित श्वेत ध्वजा फहराकर आध्यात्मिक पर्व का शुभारंभ किया। उनके साथ संत प्रवर विज्ञान देव महाराज की दिव्य उपस्थिति ने भक्तों को उस अध्यात्म की ओर उन्मुख किया, जहाँ मन, आत्मा और ब्रह्म का अद्भुत संगम होता है। कथामृत के प्रथम दिवस पर जब संत प्रवर ने कहा, “सत्य पर पूर्ण विश्वास ही श्रद्धा है, और श्रद्धावान ही शांति का अनुभव करता है...” तो पूरे पंडाल में सन्नाटा घुल गया। हर शब्द जैसे भीतर उतरकर मन के कोलाहल को शांत कर रहा था। उन्होंने मन की साधना का रहस्य बताते हुए कहा, “बाहर की लड़ाइयाँ भीतर की हार से जन्म लेती हैं। जब मन साध लो, तो जग स्वयं सरल हो जाता है।”


स्वर्वेद की वाणी बनी मधुर संगीत-धारा

ढाई घंटे तक चली आध्यात्मिक वाणी और स्वर्वेद के दोहों की संगीतमय प्रस्तुति ने श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। कहीं आत्मा का आर्तनाद सुनाई देता, कहीं ब्रह्म के आनंदस्वरूप का स्पंदन महसूस होता। संत प्रवर विज्ञान देव महाराज ने भारत की आध्यात्मिक विरासत को स्मरण कराते हुए कहा, “भारत मात्र भूमि नहीं, मातृभूमि है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर कण में सनातन सभ्यता सांस लेती है।”


साधना, सेवा और सांस्कृतिक रंगों का अनुपम संगम

सुबह का समय योग, प्राणायाम और ध्यान के अभ्यास में बीत रहा है। हजारों साधक कुशल प्रशिक्षकों से जीवन को रोगमुक्त और शांतिमय बनाने के उपाय सीख रहे हैं। आयुर्वेद, पंचगव्य और होम्योपैथ चिकित्सा शिविरों में निःशुल्क उपचार व्यवस्था ने महोत्सव को सेवा का भी अपूर्व स्वरूप दे दिया है। सायंकालीन सत्र में सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने जैसे संपूर्ण भारत को एक मंच पर समेट लिया। राजस्थान के लोकनृत्य से लेकर दक्षिण के भरतनाट्यम तक, हर प्रस्तुति में भारतीय संस्कृति की दिव्यता टपक रही थी।


आज होगा 25,000 कुण्डीय महायज्ञ का शुभारंभ, वैदिक घोष से गूँजेगा आकाश

बुधवार सुबह 10 बजे से वह घड़ी आएगी जब 25,000 यज्ञकुंडों में वैदिक मंत्रों के साथ आहुतियाँ आरंभ होंगी। सद्गुरु आचार्य स्वतंत्र देव महाराज और संत प्रवर विज्ञान देव महाराज की उपस्थिति में होने वाले इस महामंत्रोच्चार से वातावरण में ऐसी शांति और दिव्यता फैलने वाली है, जिसका अनुभव सिर्फ सौभाग्यशाली साधक ही कर पाएँगे। गुरुकुल के 101 बाल-बटुक वेदों की ऋचाओं से आकाश को पवित्र करेंगे। अनुमान है कि लगभग डेढ़ लाख श्रद्धालु इस महान यज्ञ में आहुति देकर विश्व शांति की कामना करेंगे।


सेवा में तत्पर व्यवस्था : श्रद्धालुओं की सुविधा सर्वोपरि

आश्रम ने 30 ब्छळ ऑटो से परिवहन व्यवस्था सुनिश्चित की है, जबकि 500 विहंगम सुरक्षा बल व पुलिस-प्रशासन सुरक्षा में तैनात हैं। वहीं दूसरी ओर देशभर के व्यंजनों वाली भारतीय सांस्कृतिक व्यंजनशाला में श्रद्धालु स्वाद और परंपरा दोनों का आनंद ले रहे हैं।

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