दूसरा कारण - एसआईआर ने एक काम किया, वोट के मामले में लोगों की जागरूकता को बढ़ा दिया. लोगों को लगा कि वोट छीनने की साजिश के खिलाफ रक्षा करनी होगी. गरीबों, प्रवासियों, मुस्लिमों में काफी उत्साह व जागरूकता दिखी. बावजूद इसके, कई लोगों के वोटर लिस्ट में नाम नहीं पाए गए - खासकर प्रवासियों के. तीसरा, जो आंकड़ों का गणित है, वह यह है कि 47 लाख वोटर कम हो गए, तो जब इलेक्टोरल वोट कम हो गया तो परसेंटेज अधिक दिखेगा. फर्जी वोटिंग का डटकर लोगों ने मुकाबला किया. इसी कारण कई जगह तनाव दिखा, मतदाताओं और उम्मीदवारों पर हमले हुए. एनडीए के नेताओं की जो भाषा सुनाई पड़ी - मोदी, शाह, योगी या फिर ललन सिंह और अनंत सिंह की - वह धमकी देने की भाषा थी. “बिजली काट देंगे, घर से निकलने नहीं देंगे” जैसी भाषा क्यों? यदि विकास इतना हुआ था, तो प्रधानमंत्री अंडरवर्ल्ड की भाषा में बात क्यों कर रहे थे? यह खतरनाक संकेत है.
बिहार का चुनाव दिखाता है कि लोग जगे हुए हैं और पूरे देश को जगाने के लिए जनादेश आएगा. संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए मीना तिवारी ने कहा कि 10 हजार रु. का कहीं कोई प्रभाव नहीं दिखा. महिलाओं के भीतर 20 साल की सरकार के खिलाफ काफी गुस्सा दिखा. हकीकत यह है कि पिछली बार से महिलाओं का प्रतिशत थोड़ा घटा है क्योंकि उनकी संख्या भी घट गई. आम तौर पर 20 से 25 प्रतिशत महिलाओं ने ही कहा कि उन्हें दस हजार मिले हैं. और उसमें जो भारी अनियमितता तथा पात्रता की शर्तें थीं, उसके कारण कई लोगों को कुछ भी नहीं मिला. कर्ज के खिलाफ बिहार में महिलाओं का आंदोलन था, इसलिए यह नारा आया - “दस हजार में दम नहीं, कर्ज माफी से कम नहीं!” यह चुनाव का प्रमुख एजेंडा बना रहा. दीघा से माले प्रत्याशी दिव्या गौतम ने कहा कि इस चुनाव में युवाओं ने बदलाव के लिए बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. बिहार की जनता पूरी तरह बदलाव चाहती है.

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