इस सेमिनार में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णयों को सरल तरीके से समझाते हुए वक्ताओं ने बताया कि बार परीक्षा में लगातार ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं जो हालिया न्यायिक निर्णयों से संबंधित होते हैं। इसके अतिरिक्त, न्यायिक व्यवहारिकता-यानी वकालत के वास्तविक कार्य–पद्धति, कोर्टरूम शिष्टाचार, दस्तावेज़ प्रबंधन तथा मुवक्किल से संवाद- पर भी विस्तृत चर्चा की गई। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व सचिव एवं वरिष्ठ अधिवक्ता रोहित पांडेय के सहयोग और मार्गदर्शन ने इस आयोजन को और प्रभावी बनाया, जिससे प्रतिभागियों को आगामी बार परीक्षा का सामना करने के लिए ठोस और व्यावहारिक दिशा मिली। इस कार्यक्रम संयोजकों में अधिवक्ता बसंत बल्लभ मिश्रा, एडवोकेट आशुतोष पांडे,,मुन्ना सिंह,राहुल,मुकेश कुमार झा,राज कुमार सिंह,अक्षय तिवारी,सुश्री रुबिया,सतीश कुमार शर्मा,रोहन, नितिन आदि ने अग्रणी रूप से शामिल रहे।
कार्यक्रम की मुख्य वक्ता दिल्ली की पूर्व अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश डॉ. अर्चना सिन्हा ने बार परीक्षा को केवल किताबों पर आधारित परीक्षा न मानकर, उसे एक व्यापक मूल्यांकन प्रक्रिया बताया जिसमें कानून की भाषा को समझने, तर्क विकसित करने, केस लॉ को पहचानने और उसका अनुप्रयोग करने की क्षमता को परखा जाता है। कार्यक्रम में दूसरे प्रमुख वक्ता के रूप में दिल्ली हाई कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे अधिवक्ता राहुल कुमार वर्मा ने छात्रों को बार परीक्षा के संपूर्ण सिलेबस, पिछले वर्षों के प्रश्नपत्रों के पैटर्न, मॉडल क्वेश्चन सेट्स की उपयोगिता और समय के प्रभावी वितरण पर विस्तार से मार्गदर्शन दिया। कार्यक्रम में दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिवक्ता मृत्युंजय कुमार सिंह ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि बार परीक्षा पास करने के बाद असली चुनौती अदालत के व्यवहार, प्रक्रियाओं और त्वरित निर्णय क्षमता को विकसित करने की होती है। एम्बिशन लॉ संस्थान के निदेशक आलोक रंजन ने कार्यक्रम में उपस्थित छात्रों को परीक्षा में लॉजिक और इंटरप्रिटेशन की भूमिका समझाते हुए बताया कि कई प्रश्न सीधे तौर पर नहीं पूछे जाते, बल्कि वे विश्लेषणात्मक सोच और कानूनी सिद्धांतों के अप्रत्यक्ष अनुप्रयोग पर आधारित होते हैं। कार्यक्रम के सफल संचालन की जिम्मेदारी दिल्ली बार एसोसिएशन के कई वरिष्ठ एवं युवा अधिवक्ताओं ने निभाई।

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