भारतीय ज्ञान परंपरा एवं सतत आर्थिक विकास विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल के क्षेत्रीय नियोजन एवं आर्थिक विकास विभाग द्वारा उद्यमिता विकास केन्द्र मध्यप्रदेश, सेडमैप के सहयोग से आयोजित की गई. विशेष अतिथि प्रो. अनिल शिवानी ने आर्थिक विकास में भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता पर उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट किया कि भारतीय ज्ञान परंपरा के सिद्धांत आज के आर्थिक विमर्श और नीतिनिर्माण में प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं। संगोष्ठी के समापन सत्र में तीन श्रेष्ठ शोध पत्र प्रस्तुतियों (Best Paper Presentations) को उनके उत्कृष्ट अकादमिक योगदान हेतु पुरस्कृत भी किया गया, जिससे प्रतिभागियों का उत्साह और अधिक बढ़ा। संगोष्ठी की संयोजिका डॉ. रूपाली शेवलकर रहीं। आयोजन सचिव डॉ. अर्चना सेन (क्षेत्रीय नियोजन एवं आर्थिक विकास विभाग) तथा श्री अरुण गुप्ता (सेडमैप) के कुशल समन्वय से कार्यक्रम का सफल संचालन संभव हुआ। आयोजन समिति में डॉ. पिंकी गोखले, डॉ. सी. एस. आर्मो, डॉ. नमिता सेन एवं डॉ. इशरत कुरैशी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। यह संगोष्ठी भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक आर्थिक विकास की अवधारणाओं से जोड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण एवं सार्थक प्रयास सिद्ध हुई।
भोपाल. सतत विकास के लिए आवश्यक है कि हम नैतिक मूल्यों के साथ सामाजिक कल्याण के भाव को अपनाएं और महत्व दें. यह बात भारतीय ज्ञान परंपरा से प्रेरित “शुभ–लाभ” दृष्टिकोण पर आधारित व्याख्यान में मुख्य वक्ता तुलसी तावरी ने कही. संगोष्ठी में देशभर से आए शिक्षाविदों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों ने दो दिनों में लगभग 50 शोध पत्रों की प्रस्तुतियाँ दीं. उद्घाटन सत्र में कुलगुरु प्रो. एस. के. जैन ने विद्यार्थियों को भारतीय ज्ञान परंपरा को समझने एवं नैतिक जीवन मूल्यों को अपनाने हेतु प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को अपनाना न केवल अकादमिक अध्ययन का विषय है, बल्कि जीवन को मूल्याधारित दिशा देने का सशक्त माध्यम भी है।

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