शिकायतकर्ता एवं आरडब्ल्यूए के महासचिव देवेन्द्र कुमार के अनुसार, उन्होंने जुलाई 2023 से लगातार शिकायतें दर्ज कराई हैं, जिसमें स्पष्ट रूप से माँग की गई कि सार्वजनिक चौपाल से अवैध रूप से बाँधे गए पशुओं को हटाया जाए, ताकि ग्रामीणों के सामुदायिक उपयोग के लिए निर्धारित स्थान का मूल उद्देश्य बहाल हो सके। इतने लंबे समय तक मामला लंबित रहने के बावजूद, न तो राजस्व विभाग, विशेषकर पश्चिमी जिला के उपायुक्त ने प्रभावी हस्तक्षेप किया और न ही पशु चिकित्सा अधिकारी ने नियमों के अनुरूप कार्रवाई सुनिश्चित की। हालात यह हैं कि शिकायतकर्ता को आरटीआई के जवाब में यह कहकर गुमराह किया गया कि कार्रवाई की जा चुकी है, जबकि मौके की वास्तविक स्थिति इसके ठीक उलट है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि पशु चिकित्सा विभाग और एमटीआई की टीम मौके पर औपचारिकता निभाने के लिए केवल कागज़ी कार्रवाई का सहारा लेती रही, लेकिन न तो अवैध पशु हटाए गए और न ही चौपाल को व्यवस्थागत रूप से खाली कराया गया। चौपाल के सरकारी रिकॉर्ड में इसे सार्वजनिक उपयोग के लिए दर्ज किया गया है, इसके बावजूद निजी हितों को बढ़ावा देने और अवैध कब्ज़ा जारी रखने जैसी चिंताजनक स्थिति बनी हुई है। ग्रामीणों ने यह भी सवाल उठाया कि क्या यह विभागीय मिलीभगत नहीं है कि ढाई वर्ष बीत जाने के बाद भी किसी भी स्तर पर वास्तविक कार्रवाई नहीं की गई।
मामले को और गंभीर बनाता है पशु चिकित्सा अधिकारी का वह जवाब जिसमें उन्होंने दावा किया कि एमसीडी के केशवपुरम ज़ोन की वेटरनरी टीम द्वारा कार्रवाई की जा चुकी है। जबकि चौपाल की मौजूदा स्थिति बताती है कि न तो पशुओं को हटाया गया है और न ही अवैध कब्ज़ा समाप्त हुआ है। यह सीधा संकेत है कि अधिकारी झूठी जानकारी देकर जिम्मेदारियों से बचने का प्रयास कर रहे हैं, जो दिल्ली नगर निगम अधिनियम और सेवा नियमों दोनों का स्पष्ट उल्लंघन है। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरटीआई के माध्यम से गलत सूचना देना गंभीर अपराध है और इसमें शामिल अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई आवश्यक है। ग्रामीणों और आरटीआई कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि पश्चिमी जिला के उपायुक्त राजस्व तत्काल इस मामले में संज्ञान लें, चौपाल का स्थलीय निरीक्षण कराएं, अवैध कब्जे को हटाने की कार्यवाही सुनिश्चित करें और झूठी सूचना देने वाले वेटरनरी अफसर तथा एमटीआई के खिलाफ सख्त विभागीय कार्रवाई की जाए। ज्वाला हेड़ी के लोगों का कहना है कि यदि सार्वजनिक चौपाल तक को बचाने में विभाग नाकाम रहते हैं, तो ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य सरकारी स्थलों की सुरक्षा और उपयोगिता कैसे सुनिश्चित हो पाएगी।

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